विभाजन की त्रासदी पर 'तमस' जैसी कालजई रचना लिखने वाले भीष्म साहनी आधुनिक हिंदी साहित्य में सशक्त अभिव्यक्ति और बेहद सादगी पसंद रचनाकार के रूप में विख्यात हैं।
समीक्षकों के अनुसार साहनी एक प्रतिबद्ध लेखक थे जिन्होंने अपने साहित्य में हमेशा मानवीय मूल्यों को प्राथमिकता दी। उपन्यासों के अलावा ' अहं ब्रह्मास्मि', 'अमृतसर आ गया'और 'चीफ की दावत' जैसी उनकी कहानियां सशक्त अभिव्यक्ति के कारण काफी चर्चित रहीं।
वरिष्ठ कहानीकार एवं 'नया ज्ञानोदय' पत्रिका के संपादक रविन्द्र कालिया के अनुसार भीष्म साहनी मूलत: प्रतिबद्ध रचनाकार थे। उन्होंने कुछ मूल्यों के साथ साहित्य रचा। वह बेहद सादगी पसंद रचनाकार थे। उन्होंने कहा कि साहनी ने जीवन में हमेशा धर्मनिरपेक्षता को महत्व दिया और उनका धर्मनिरपेक्ष नजरिया उनके साहित्य में भी बखूबी झलकता है। उन्होंने नई कहानियां, पत्रिका का संपादन किया और अंतिम दम तक लिखते रहे। 'अमृतसर आ गया' जैसी उनकी कहानियां शिल्प ही नहीं अभिव्यक्ति की दृष्टि से काफी आकर्षित करती हैं।
कालिया ने उनके साथ अपने संबंधों की याद ताजा करते हुए बताया कि साहनी अपनी पत्नी के साथ इलाहाबाद में उनके घर पर रूके थे। इस दौरान साहित्यिक चर्चा के अलावा उन्होंने तमाम पंजाबी लोकगीत सुनाए। इससे पता चलता है कि साहनी लोकगीतों और लोकजीवन के भी मर्मज्ञ थे।
भीष्म साहनी का जन्म आठ अगस्त 1915 को रावलपिंडी में हुआ था। विभाजन के पहले अवैतनिक शिक्षक होने के साथ वह व्यापार भी करते थे। विभाजन के बाद वह भारत आ गए और सामाचार पत्रों में लिखने लगे। बाद में वह भारतीय जन नाट्य संघ [इप्टा] के सदस्य बन गए।
साहनी दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर रहे। उन्होंने मास्को के फॉरेन लैंग्वेजेस पब्लिकेशन हाउस में अनुवादक के तौर पर दो दर्जन रूसी किताबों का हिंदी में अनुवाद किया। इसमें टालस्टॉय और आस्ट्रोवस्की जैसे लेखकों की रचनाएं शामिल हैं। उन्होंने टालस्टॉय के एक परिपक्व उपन्यास का अनुवाद ' पुनरूत्थान' नाम से किया था।
उनके उपन्यास झरोखे, तमस, बसंती, मैय्यादास की माड़ी, कहानी संग्रह भाग्यरेखा, वांगचू और निशाचर, नाटक, हानूश, माधवी', कबीरा खड़ा बाजार में, आत्मकथा बलराज माई ब्रदर और बालकथा गुलेल का खेल ने हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया।
उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। साहनी ने कुछ समय अपने बड़े भाई एवं फिल्म अभिनेता बलराज सहानी के साथ मुंबई में रंगमंच पर भी काम किया था। साहनी की कृति पर आधारित 'तमस' धारावाहिक काफी चर्चित रहा था। उनके 'बसंती' उपन्यास पर भी धारावाहिक बना था। उन्होंने मोहन जोशी हाजिर हो, कस्बा और मिस्टर एंड मिसेज अय्यर फिल्म में अभिनय भी किया था।
प्रेमचंद की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले इस लेखक का निधन 11 जुलाई 2003 को दिल्ली में हुआ।
मैनपुरी वासीयों का आप को शत शत नमन |
(नीचे दी हुयी पोस्ट भी जरूर देखे)
प्रेमचंद की परंपरा के लेखक थे भीष्म साहनी ( ०८/०८/१९१५ - ११/०७/२००३ )
भीष्म साहनी जी की आज बहुत ही उम्दा जानकारी मिली .....शुक्रिया .....!!
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