संप्रग सरकार की दूसरी पारी का पहला बजट सत्र शुक्रवार को 'थोड़ी खुशी थोड़ा गम' के साथ अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया जिस दौरान संभवत: पहली बार व्यापारिक घरानों की आपसी लड़ाई का साया संसद की कार्यवाही पर पड़ा।
अध्यक्ष चुने जाने के बाद लोकसभा के पहले नियमित सत्र को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने से पहले मीरा कुमार ने सदन के कामकाज में व्यवधान डालने पर खेद व्यक्त करते हुए सदस्यों से अपील की कि चाहे जो वजह हो वे सदन के कार्य को बाधित नहीं करें। उन्होंने कहा कि सदन के कामकाज में 'नुकसान पहुंचाने का किसी को अधिकार नहीं है।' उन्होंने कहा कि चर्चा और बहस ही जनता के मुद्दे उठाने का सर्वोत्तम तरीका है।
संप्रग सरकार के लिए खुशी की बात यह रही कि उसका वित्तीय कामकाज बिना किसी समस्या के निबट गया और उसने छह से 14 साल तक केच्बच्चों की नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा संबंधी ऐतिहासिक विधेयक पर संसद की मुहर लगवाई।
उसके लिए सालने वाली बात यह होगी कि न्यायाधीश सम्पत्ति एवं देनदारी घोषणा से जुड़ा उसका विधेयक विपक्ष के साथ ही अपनों के विरोध की वजह से राज्यसभा में पेश करने से पीछे हटना पड़ा जबकि लोकसभा में उसके दो मंत्रियों के विदेश में होने के कारण रबड़ संशोधन विधेयक पर चर्चा स्थगित करनी पड़ी। शर्म अल शेख में जारी भारत पाकिस्तान संयुक्त बयान भी संप्रग सरकार की गले का हड्डी बना जिस पर उसकी सफाई को विपक्ष के अलावा उसे समर्थन दे रहे दलों ने भी ठुकरा दिया। संयुक्त बयान में बलूचिस्तान के उल्लेख से हालांकि सरकार के संकट मोचक माने जाने वाले वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने इसे एकतरफा बताकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की लेकिन बात बनती नहीं दिखी।
भारतीय संसद के इतिहास में संभवत: यह पहला मौका भी रहा जब निजी क्षेत्र की आपसी लड़ाई का साया संसद की कार्यवाही पर पड़ा और नौबत यहां तक पहुंची की पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा को लोकसभा में बयान देकर कहना पड़ा कि दो उद्योगों या उद्योगपतियों की निजी लड़ाई से सरकार का कोई लेना देना नहीं है।
अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की भारत यात्रा के दौरान हुए 'एंडयूज समझौते' पर भी वामदलों के साथ साथ विपक्ष ने भी देश की संप्रभुता पर समझौता करार दिया। आम आदमी की जेब पर सीधे असर डालने वाली महंगाई के मुद्दे का आलम यह रहा कि कई दिनों तक टलने के बाद आखिरकार सत्र के आखिरी दिनों में इस पर चर्चा हो पाई।
मीरा कुमार को इस सत्र के दौरान सदन के सुचारू संचालन के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी जिसमें वह कुछ हद तक सफल भी रहीं। फिर भी सदन के साढ़े 23 घंटे का समय व्यवधान और हंगामें के कारण बर्बाद हो गया। हालांकि सदन ने लगभग 31 घंटे अधिक बैठकर इसकी भरपाई की। सत्र के दौरान 26 बैठकों में कुल 161 घंटे कामकाज हुआ।
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