अभी तक राजनैतिक दलों के समर्थक ही स्वार्थ वश आस्थाएं बदलते थे लेकिन अब बदलते स्वार्थ वादी युवा में धार्मिक गुरुओं के प्रति आस्थाएं बदलने में भी लोग नहीं हिचक रहे हैं।
लगभग बीस वर्ष पूर्व बाबा जय गुरुदेव के पूरे क्षेत्र में शिष्यों की संख्या हजारों में भी जिसे देखो घर के पूजा घर में दुकानों आदि पर बाबा जय गुरुदेव की फोटो लगाकर पूजा करते नजर आते थे। मथुरा भी कुछ लोग जाते थे लेकिन धीरे-धीरे उनके प्रति आस्था कम हुई अब उनके शिष्यों की संख्या दर्जनों में रह गयी है।
फिर नंबर आया आशाराम बापू का बापू के शिष्यों की संख्या बढ़ती गयी जिसे देखो बापू की हर गतिविधि पर जान निछावर करता दिखा अब बापू के शिष्यों की संख्या भी न के बराबर हो गयी गग्गरपुर वाले बाबा जी, ब्रह्मा देव आश्रम के महंत जगदेवानंद, विदुर आश्रम के त्यागी जी महाराज के अलावा समय-समय पर धार्मिक कार्यक्रम करने आए कथा वाचकों में संत महात्माओं के शिष्य बनने की होड़ थी। स्थानीय लोगों में खूब रही ऐसे-ऐसे लोग भी है जो अपन जीवन में चार छ गुरु बना कर फिर छोड़ चुके हैं। बाबा रामदेव के भी कुछ शिष्य है साई बाबा के भी उपासक हाल फिलहाल में बढ़े हैं।
आस्थाओं के बदलने का कारण के बल स्वार्थ ही बताया गया है लोग अपनी कामना हेतु गुरु बनाते हैं। काम पूरा न होने पर तुरंत बदल लेते हैं। हां कुछ ऐसे भी धर्मावलंबी है जो वर्षो से एक ही संस्था से जुडे़ हैं प्रमुख रूप से इनमें युगनिर्माण योजना हरिद्वार के लोग उल्लेखनीय है।
"आस्थाओं के बदलने का कारण के बल स्वार्थ ही बताया गया है लोग अपनी कामना हेतु गुरु बनाते हैं। काम पूरा न होने पर तुरंत बदल लेते हैं। हां कुछ ऐसे भी धर्मावलंबी है"
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सटीक लिखा है।