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स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री मायावती की ओर से की गई इस घोषणा पर संतोष व्यक्त नहीं किया जा सकता कि वर्ष 2014 तक राज्य में बिजली की किल्लत खत्म हो जाएगी। इस घोषणा का सीधा अर्थ यही है कि मायावती के इस कार्यकाल में उत्तर प्रदेश को बिजली संकट से निजात नहीं मिलने वाली। यह संभवत: पहली बार है जब किसी प्रांत के मुख्यमंत्री ने किसी गंभीर समस्या के समाधान की अवधि अपने निर्धारित कार्यकाल के बाद की अवधि में तय की हो। मुख्यमंत्री की उक्त घोषणा में यह स्वत: निहित है कि उनकी सरकार अपने शेष कार्यकाल में अर्थात लगभग तीन वर्षो में ऐसा कुछ नहीं करने जा रही अथवा कर पाएगी जिससे कि उत्तर प्रदेश को बिजली की किल्लत से मुक्ति मिल सके। यह घोर निराशाजनक है कि पिछले लगभग छह-सात वर्षो से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के मुख से यही सुनने को मिल रहा है कि अगले दो तीन वर्षो में राज्य में व्याप्त बिजली संकट दूर हो जाएगा, लेकिन सच्चाई यह है कि देश के इस महत्वपूर्ण राज्य में वर्ष दर वर्ष बिजली की उपलब्धता कम होती जा रही है।
यह विचित्र है कि एक ओर तो मुख्यमंत्री मायावती ने यह कहा कि उनकी सरकार ने उत्तर प्रदेश में बिजली की समस्या के स्थायी समाधान के लिए युद्ध स्तर पर कदम उठाए हैं, लेकिन दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि बिजली संकट का समाधान वर्ष 2014 अर्थात अब से पांच वर्ष बाद हो सकेगा। आखिर ये कैसे युद्ध स्तरीय उपाय हैं कि उनके नतीजे आने में इतने वर्ष लग जाएंगे? आखिर यह क्यों न मान लिया जाए कि पिछली सरकार की तरह वर्तमान सरकार भी विद्युत उत्पादन क्षमता बढ़ाने की दिशा में कुछ भी नहीं कर पा रही है। इससे तो यही लगता है कि बिजली उपलब्धता के लिए वर्तमान सरकार भी सिर्फ कागजों में ही प्रयास कर रही है। यदि उत्तर प्रदेश अगले कुछ वर्षो तक बिजली किल्लत से इसी तरह जूझता रहता है तो फिर अन्य क्षेत्रों और विशेष रूप से प्रदेश के औद्योगिक विकास की उम्मीद भी नहीं की जा सकती, क्योंकि आज के युग में बिजली के बगैर विकास की अपेक्षा करना पूरी तरह से बेमानी है।
ठीक केंद्र सरकार और अन्य राज्य सरकारों की तरह....है न
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