पॉलीथिन का प्रचलन अपने चरम पर है। बाजार में भले ही आप दो रुपये का धनियां मिर्च खरीदें, दुकानदार एक पॉलीथिन में ही रखकर आपको देगा घर पहुंचते-पहुंचते 10-12 पॉलीथिन बैग आपके घर पहुंच जायेंगे। मिष्ठान खरीदना है तो डिब्बा में रखने के उपरांत भी थैली प्लास्टिक की आपको थमा ही जायेगी। दवाई लेकर आए तो मेडीकल जायेगी दवाई लेकर आए तो मेडीकल स्टोर से भी पॉलीथिन दी जायेगी। जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं जहां पर आपको पॉलीथिन से दो चार न होना पडे़। आधुनिकता के इस दौर में हमें इससे सतर्क रहना ही पड़ेगा अन्यथा इसके भयंकर परिणामों से नहीं बचा जा सकता है। प्राचीन सभ्यता के अनुपालन में हम मिट्टी के अस्थाई वर्तन पेड़ की पत्तियों से निर्मित अस्थाई बर्तनों का प्रयोग करके निष्प्रोज्य होने पर जहां भी निस्तारित करते थे तो मिट्टी तथा पत्ती गलकर स्वत: नष्ट हो जाती थी तथा शत प्रतिशत शुद्धता भी प्रदान करती थी।
इन प्लास्टिक बैग का प्रचलन मानव जीवन के लिए गंभीर खतरा हो गया है। विभिन्न प्रकार के बीमारियों के विषाणु पुन: प्रयुक्त प्लास्टिक से हमारे पास आ रहे हैं। अस्पतालों से एकत्रित कचरे का पुन: प्रयोग होने के उपरांत निष्प्रोज्य जूता चपल के पुन: प्रयोग से इन घातक पॉलीथिन का निर्माण होता है जिनमें हम खाने की वस्तुएं रखकर लाते हैं क्या ये प्रदूषित नहीं हो रही है। जानवरों के मुंह में जाने से पाचन तंत्र को बाधित कर देती है। जिससे पशु धन की आकस्मिक मौत हो जाती है। नाली नालों में वहीं प्लास्टिक अवरोध बन जाती है और गंदगी पैदा कर देती है।
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