बहुजन समाज पार्टी के महासचिव सतीश मिश्र की यह सफाई गले से उतरना मुश्किल है कि उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर पत्थर के हाथियों का निर्माण चुनावी लाभ हासिल करने के लिए नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति के एक प्रतीक की महत्ता दर्शाने के लिए किया जा रहा है। बसपा तो वह राजनीतिक दल है जो इस तरह की प्राथमिकताओं के लिए कभी नहीं जाना गया। क्या यह मान लिया जाए कि बसपा भारतीय संस्कृति के प्रतीकों के प्रसार का कार्य अपने एजेंडे में शामिल कर चुकी है? सच तो यह है कि बसपा की ओर से यह सफाई इसलिए दी गई, क्योंकि चुनाव आयोग ने उससे इस संदर्भ में जवाब तलब किया है कि राजधानी लखनऊ में सरकारी धन से पत्थर के हाथियों का निर्माण अतिरिक्त राजनीतिक लाभ लेने के लिए किया जा रहा है। फिलहाल यह कहना कठिन है कि बसपा को पत्थर के हाथियों के निर्माण से चुनावी लाभ हासिल होगा या नहीं, लेकिन जब उत्तर प्रदेश के 50 से अधिक जिले सूखा ग्रस्त घोषित किए जा चुके हैं तब राज्य सरकार का हाथियों के निर्माण के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करना गले नहीं उतरता। यह निराशाजनक है कि ऐसे और अधिक निर्माण करने का संकल्प व्यक्त किया जा रहा है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश सरकार ने स्मारकों और मूर्तियों के निर्माण के लिए पांच अरब रुपये के पूरक बजट की जो व्यवस्था की उससे लगता है कि उसकी प्राथमिकताएं बदल चुकी हैं।
जहां तक निर्वाचन आयोग द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार से पत्थर के हाथियों के निर्माण के संदर्भ में जवाब तलब करने का प्रश्न है तो बेहतर हो कि वह उन शिकायतों पर भी गौर करे जिनके तहत यह कहा जा रहा है कि केंद्र और राज्यों में कांग्रेस की सरकारों ने नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के नाम पर सैकड़ों योजनाएं चला रखी हैं अथवा विश्वविद्यालय, स्मारक और पार्क उनके नाम पर संचालित किए जा रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक ऐसी योजनाओं-परियोजनाओं तथा स्मारकों की संख्या चार सौ के ऊपर है जो नेहरू-गांधी परिवार के इन तीन सदस्यों के नाम पर हैं। निर्वाचन आयोग को यह स्पष्ट करना चाहिए कि उसने अब तक इस पर गौर क्यों नहीं किया?
एक अनुमान के मुताबिक ऐसी योजनाओं-परियोजनाओं तथा स्मारकों की संख्या चार सौ के ऊपर है जो नेहरू-गांधी परिवार के इन तीन सदस्यों के नाम पर हैं। निर्वाचन आयोग को यह स्पष्ट करना चाहिए कि उसने अब तक इस पर गौर क्यों नहीं किया?
जवाब देंहटाएंमाया का साथी।
हाथ पर भारी हाथी।
जय हो।