गरीब मरीजों के इलाज की उचित व्यवस्था न करने पर उच्च न्यायालय द्वारा राजधानी के अपोलो अस्पताल से जवाब तलब करने पर किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। सरकार द्वारा राजधानी के तमाम निजी अस्पतालों को इसी शर्त पर सस्ती जमीन और आर्थिक सहायता मुहैया कराई जाती है कि वे एक निश्चित संख्या में गरीब मरीजों को मुफ्त इलाज की सुविधा प्रदान करेंगे, लेकिन कोई भी अस्पताल इस कसौटी पर खरा उतरता नहीं दिख रहा। विडंबना यह है कि इस बारे में की जाने वाली शिकायतों पर सरकार द्वारा भी कोई कार्रवाई नहीं की जाती। ऐसे में निजी अस्पताल गरीबों के इलाज के नाम पर महज रस्म अदायगी कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। ऐसे में उच्च न्यायालय द्वारा अपोलो को कटघरे में खड़ा कर उससे यह स्पष्टीकरण मांगना पूर्णतया उचित है कि वहां गरीब मरीजों के इलाज के लिए किस तरह की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है?
इस संदर्भ में सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर जब मुफ्त जमीन देते समय ही निजी अस्पतालों के लिए गरीबों का इलाज करना अनिवार्य बना दिया गया है तब वे इस बारे में ना-नुकर क्यों करते हैं? यह सही है कि ऐसे अस्पतालों में इलाज कराना महंगा है, लेकिन शर्त से बंधे होने के बावजूद गरीबों का इलाज न करने पर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की जाती? ऐसा न करने पर उच्च न्यायालय ने 2007 में ही ऐसे अस्पतालों को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी थी, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या इसके लिए बनी कमेटी ने कभी ऐसे अस्पतालों की जांच की? अगर नहीं तो इसका मतलब तो यही है कि इसके लिए सरकार और संबंधित विभाग सीधे दोषी हैं। अदालती निर्देश पर कमेटी द्वारा अपोलो अस्पताल के दौरे में जो अनियमितताएं सामने आई वे चौंकाने वाली हैं। इससे तो यही लगता है कि वहां गरीबों के इलाज, बिस्तरों, ओपीडी और दवाइयों के नाम पर रस्म अदायगी ही की जाती रही है। फिर उन्हें सस्ती भूमि और अन्य सुविधाएं देने का क्या मतलब? गरीबों के नाम पर सुविधाएं हड़पने, पर उनके इलाज के लिए नाक भौं सिकोड़ने वाले तथाकथित महंगे अस्पतालों के खिलाफ जब तक कड़ी कार्रवाई नहीं की जाएगी तब तक वे हीलाहवाली से बाज नहीं आएंगे।
Iske liye kade kadam uthaane chaahiye.
जवाब देंहटाएंThink Scientific Act Scientific
तथाकथित महंगे अस्पतालों के खिलाफ जब तक कड़ी कार्रवाई नहीं की जाएगी तब तक वे हीलाहवाली से बाज नहीं आएंगे।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगा।
आगे भी लिखते रहें।
बधाई।