आज २६ दिसम्बर है ... आज अमर शहीद ऊधम सिंह जी की ११४ वीं जयंती है |
लोगों
में आम धारणा है कि ऊधम सिंह ने जनरल डायर को मारकर जलियांवाला बाग
हत्याकांड का बदला लिया था, लेकिन भारत के इस सपूत ने डायर को नहीं, बल्कि
माइकल ओडवायर को मारा था जो अमृतसर में बैसाखी के दिन हुए नरसंहार के समय
पंजाब प्रांत का गवर्नर था।
ओडवायर के आदेश पर ही जनरल डायर ने
जलियांवाला बाग में सभा कर रहे निर्दोष लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई
थीं। ऊधम सिंह इस घटना के लिए ओडवायर को जिम्मेदार मानते थे।
26
दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में जन्मे ऊधम सिंह ने
जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार का बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी, जिसे
उन्होंने अपने सैकड़ों देशवासियों की सामूहिक हत्या के 21 साल बाद खुद
अंग्रेजों के घर में जाकर पूरा किया।
इतिहासकार डा. सर्वदानंदन के
अनुसार ऊधम सिंह सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम
बदलकर राम मोहम्मद आजाद सिंह रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मो का
प्रतीक है।
ऊधम सिंह अनाथ थे। सन 1901 में ऊधम सिंह की माता और
1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई
के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी।
ऊधम सिंह के बचपन
का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्ता सिंह था, जिन्हें अनाथालय में
क्रमश: ऊधम सिंह और साधु सिंह के रूप में नए नाम मिले।
अनाथालय
में ऊधम सिंह की जिंदगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी
देहांत हो गया और वह दुनिया में एकदम अकेले रह गए। 1919 में उन्होंने
अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शामिल
हो गए।
डा. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी तथा रोलट
एक्ट के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग में लोगों ने 13 अप्रैल 1919
को बैसाखी के दिन एक सभा रखी जिसमें ऊधम सिंह लोगों को पानी पिलाने का काम
कर रहे थे।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhw9pwCkNnMaLWLe8cYl0Bd88I0AmNky9wr_KT5-PpPls7lAmxeIjYRHgk66bAv1ZhVvHodrClaDOui5BnWHLL-O6gT1eqYzqYXNC3DDsTSycZRVL5QGI4IpDajHsK1yD7qCK6ixZQMqzM/s1600/220px-Sir-Michael-ODwyer.jpg) |
माइकल
ओडवायर |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEihghj4JB_UjBvHg1RBxP0rEKs3pppCqsFm1nwQ-VLbikj4Abug5xFYV9dq07idRRFDPb2bsKdxX5P2RR4nGpfnjoVGOl7RsXlWBdgi7wOFsN_fXNikGMKTSx742GiCnDURWKjyKEyR6Yk/s1600/General-Reginald-Dyer.jpg) |
ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड डायर |
इस सभा से तिलमिलाए पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल
ओडवायर ने ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड डायर को आदेश दिया कि वह भारतीयों को
सबक सिखा दे। इस पर जनरल डायर ने 90 सैनिकों को लेकर जलियांवाला बाग को घेर
लिया और मशीनगनों से अंधाधुंध गोलीबारी कर दी, जिसमें सैकड़ों भारतीय मारे
गए।
जान बचाने के लिए बहुत से लोगों ने पार्क में मौजूद कुएं में
छलांग लगा दी। बाग में लगी पट्टिका पर लिखा है कि 120 शव तो सिर्फ कुएं से
ही मिले।
आधिकारिक रूप से मरने वालों की संख्या 379 बताई गई, जबकि
पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोग मारे गए थे। स्वामी
श्रद्धानंद के अनुसार मरने वालों की संख्या 1500 से अधिक थी, जबकि अमृतसर
के तत्कालीन सिविल सर्जन डाक्टर स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800
से अधिक थी। राजनीतिक कारणों से जलियांवाला बाग में मारे गए लोगों की सही
संख्या कभी सामने नहीं आ पाई।
इस घटना से वीर ऊधम सिंह तिलमिला गए
और उन्होंने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओडवायर को सबक
सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। ऊधम सिंह अपने काम को अंजाम देने के उद्देश्य
से 1934 में लंदन पहुंचे। वहां उन्होंने एक कार और एक रिवाल्वर खरीदी तथा
उचित समय का इंतजार करने लगे।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiXachT6eYGXP1PTwLEMvvzhGToG8ALKhXNcdDsaZ8swEUUqBX78Ysm6a23yU0B6byk7XoLXGfjOgPcEodrkQdfkWJhNbY7GHYc6Riw_MBf31-zDsgEhKeN4fW8VFHxGjc4icphfSerAEo/s1600/Udham_Singh_taken_away_from_Taxon_Hall.jpg) |
गिरफ्तारी के तुरंत बाद का चित्र |
भारत के इस योद्धा को जिस मौके का
इंतजार था, वह उन्हें 13 मार्च 1940 को उस समय मिला, जब माइकल ओडवायर लंदन
के काक्सटन हाल में एक सभा में शामिल होने के लिए गया।
ऊधम सिंह
ने एक मोटी किताब के पन्नों को रिवाल्वर के आकार में काटा और उनमें
रिवाल्वर छिपाकर हाल के भीतर घुसने में कामयाब हो गए। सभा के अंत में
मोर्चा संभालकर उन्होंने ओडवायर को निशाना बनाकर गोलियां दागनी शुरू कर
दीं।
ओडवायर को दो गोलियां लगीं और वह वहीं ढेर हो गया। अदालत में
ऊधम सिंह से पूछा गया कि जब उनके पास और भी गोलियां बचीं थीं, तो उन्होंने
उस महिला को गोली क्यों नहीं मारी जिसने उन्हें पकड़ा था। इस पर ऊधम सिंह
ने जवाब दिया कि हां ऐसा कर मैं भाग सकता था, लेकिन भारतीय संस्कृति में
महिलाओं पर हमला करना पाप है।
31 जुलाई 1940 को पेंटविले जेल में
ऊधम सिंह को फांसी पर चढ़ा दिया गया जिसे उन्होंने हंसते हंसते स्वीकार कर
लिया। ऊधम सिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दुनिया को संदेश दिया कि
अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी बख्शा नहीं करते। 31 जुलाई 1974 को ब्रिटेन
ने ऊधम सिंह के अवशेष भारत को सौंप दिए। ओडवायर को जहां ऊधम सिंह ने गोली
से उड़ा दिया, वहीं जनरल डायर कई तरह की बीमारियों से घिर कर तड़प तड़प कर
बुरी मौत मारा गया।
भारत माँ के इस सच्चे सपूत को हमारा शत शत नमन |
इंकलाब ज़िंदाबाद !!!