सदस्य

 

शनिवार, 29 मई 2010

क्या गलत कहा था मैंने..................शहादत का धर्मं नहीं होता ??







( चित्रों को बड़ा करने के लिए उन पर क्लिक करें )


आज एक आजीब घटना हुयी मेरे साथ .................समझ नहीं पाया क्या वजह रही होगी जो ऐसा करने पर वह मजबूर हुयी |

मैं एक खुले दिल और दिमाग वाला आदमी हूँ ज्यादा छल प्रपंच ना मैं कर पाता हूँ ना मुझे समझ आते है | जो बात अच्छी लगी सो बोल दी जो बुरी लगी वह भी बोल दी ...........................यहाँ शायद गलती हो जाती है ..............जो बात बुरी लगे उसको दिल में रखो ..................बोलो मत ...................यही कानून है ना आज के दौर का !!

खैर साहब मुद्दे पर आता हूँ , आज अलग अलग ब्लोगों को पढ़ते पढ़ते मेरा फिरदौस खान जी के ब्लॉग पर भी जाना हुआ , उनकी आज की पोस्ट काफी बढ़िया थी पर ना जाने क्यों एक बात बार बार मुझे खलती रही कि जब यहाँ बात शहादत की हो रही है तो इस में भी धर्मं क्यों घुसाया जा रहा है ??

शहादत तो साहब शहादत है .............क्या हिन्दू की .........क्या मुसलमान की ..............या किसी की भी | "वतन पर मरने वाला हर वीर था भारत वासी"..............................यही सुना था बचपन से ................ आज वह भारत वासी अचानक मेरे सामने कर अपने आप को हिन्दू या मुसलमान या सिख या इसाई साबित करने लगे तो क्या हैरत नहीं होनी चाहिए मुझको ??

क्या जरूरी है कि हम हर जगह धर्म का चोगा धारण करें ?? अगर शहादत को भी हम धर्म का चोगा धारण करवाने लगे तो क्या होगा इस देश का ??

मेरे लिए सब धर्म एक सामान है ...............कोई छोटा या बड़ा नहीं !! आज पता नहीं क्यों मुझे भी एक कट्टरवादी हिन्दू कहा गया जबकि जो मुझे जानते है वह इस बात कि गवाही दे सकते है कि मैंने अपने ब्लॉग पर कभी भी किसी भी धर्मं या समुदाय के खिलाफ कुछ भी नहीं लिखा है .........................जिन लोगो को मेरी नीयत पर शक है वह पूरी तसल्ली से मेरे ब्लॉग की हर एक पोस्ट को पढ़ सकते है | मैंने लगभग हर पोस्ट पर आपको केवल कुछ ना कुछ जानकारी देने की कोशिश ही की है कभी भी गुमराह करने की कोशिश नहीं की | आज कुछ साथीयो ने बिना कुछ सोच जाने क्या क्या आरोप नहीं लगाये मेरे बारे में | एक बार मेरे ब्लॉग पर आ जाते जान तो लेते मैं क्या सोचता हूँ ...............क्या लिखता हूँ ............... बस मेरी २ टिप्पणियां जो वहाँ दिखी क्या वह काफी थी मेरे बारे में कोई भी राय बनने के लिए ...............................मैंने तो वहाँ और भी कुछ कहा था क्या आपने वह पढ़ा ..............नहीं ..................नहीं पढ़ा होगा .....................वहाँ मेरी सोच को दर्शाने वाली टिपण्णी हटा दी गयी थी एक बार नहीं २ बार छप जाने के बाद .................जबकि ज्ञात हो वहाँ मोदेरेसन चालू है | मैंने ना जाने क्यों उन टिप्पणियों को सेव कर लिया था, शायद इसी को सिक्स्थ सेन्से कहते हो !! आज जिस तरह से तथ्यो को छिपाया गया है केवल मुझे एक और ही रूप देने के लिए उसकी वजह समझ से परे है जब आपके ब्लॉग पर मोदेरेसन चालू है तो आपने पहले मेरी टिप्पणियों को छापा ही क्यों ?? और बाद में किन कारणों से उन टिप्पणियों को मिटाया गया ??

खैर साहब यहाँ ऊपर उन टिप्पणियों को लगा रहा हूँ ताकि अपनी बात साफ़ साफ़ सबूतों के साथ कह सकू वहाँ तो मेरी कही हुयी बात भी मिटा दी जाती है !!!!

एक बेहद जरूरी बात ---------- मेरी इस पोस्ट को कृपया कर कोई भी नामी या बेनामी ब्लॉगर साथी धार्मिक रंग में ना रंगें | यह पोस्ट सिर्फ़ मैंने अपनी बात साफ़ साफ़ कहने के लिए लगाई है | जो फिरदौस जी के ब्लॉग पर मुझे कहने नहीं दी गयी ................... ना जाने किस कारण से !!


और हाँ मैं कट्टरवादी हूँ ..........................मैं एक कट्टरवादी इंसान हूँ ...................मैं एक कट्टरवादी हिन्दुस्तानी हूँ ........................... जब जब मेरे 'कट्टरवाद' को ललकारा जायेगा मैं और 'कट्टर' बनुगा ...............यह वादा है आपने आपसे और आप से भी !!


जय हिंद !!


शुक्रवार, 28 मई 2010

एक खुशखबरी :- हिंदी ब्लॉग्गिंग को मिला 'परमाणु'

जी हाँ, दोस्तों यह १००% सच है ...................हमारे और आपके बीच एक नए ब्लॉगर आ गए है ............ श्री शलभ शर्मा 'परमाणु' | मेरे काफी पुराने मित्र है और आज कल नॉएडा में रहते है | शुरू से ही मैं इन के विचारो से काफी प्रभावित रहा हूँ ख़ास कर राजनीती से जुड़े हुए मुद्दों पर आप अपनी राय बेहद विश्लेषण कर देते है | बहुत दिनों से मैं इन को एक ब्लॉग शुरू करने का आग्रह कर रहा था पर अपनी नौकरी के कारण यह हर बार मना कर देते थे | पर आज मान गए इस शर्त पर कि "अभी फिलहाल तुम्हारे ही ब्लॉग पर लिखुगा|", मैंने भी तुरंत हामी भरी ...........एक बार ब्लॉग्गिंग शुरू तो करने दीजिये ......................चस्का तो अपने आप लग ही जायेगा !!
वैसे आज के माहौल में ब्लॉग्गिंग शुरू करना अपने आप में काफी हिम्मत का काम है ....... है कि नहीं ??
-------------------------------------------------------------------------------------------------


तो
साहब आप से मिलवाता हूँ श्री शलभ शर्मा 'परमाणु' को उनके ही खुद के शब्दों में |
मित्रो नमस्कार,
मेरा
नाम शलभ शर्मा है मेरा जन्म अगस्त १९७८ को मैनपुरी में हुआ मेरे पिता का नाम देवेन्द्र शर्मा है
मेरी स्नातक तक की शिक्षा मैनपुरी में हुई मेंने 2003 में MCA किया और विप्रो ज्वाइन की|
अभी
में नॉएडा में PBBI में काम कर रहा हूँ| मैं हमेशा से एक पत्रकार बनना चाहता था। लेकिन कुछ पारिवारिक परिस्तिथितियोँ और आज के कुछ भ्रष्ट एवम धन लोलुप पत्रकारों के आचार विचारों के कारण ये हो सका ! आज कंप्यूटर के युग में अपने मन की पीड़ा/विचार / भावना व्यक्त करने का एक शशक्त माध्यम, ब्लॉग, ज्वाइन करने का विचार मेरे मित्र शिवम् मिश्र ने दिया

पत्रकारिता
के इस नवीन रूप को मेरा कोई आचरण /व्यवहार /लेखन कलुषित करे ऐसी मेरी ईश्वर से प्रार्थना है
आशा है आप सब का सहयोग मुझे भी मिलेगा !
धन्यवाद |

आपका
अपना
शलभ शर्मा उर्फ़ 'परमाणु'
परमाणु -> "लघु परन्तु संहारक "
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

आइये स्वागत करे
'परमाणु' का |



गुरुवार, 27 मई 2010

एक रिपोस्ट :- 450 वी पोस्ट



















क्या हिंद का जिन्दा कॉप रहा है ????

गूंज रही है तदबिरे,


उकताए है शायद कुछ कैदी.......


और तोड़ रहे है जंजीरे !!!!!


दीवारों के नीचे आ आ कर यू जमा हुए है ज़िन्दानी .....


सीनों में तलातुम बिज़ली का,


आखो में जलाकती शमशीरे !!!!


क्या उनको ख़बर थी होठो पे जो मोहर लगाया करते थे ....


एक रोज़ इसी खामोशी से टपकेगी दहकती तकरीरे!!!


संभालो के वोह जिन्दा गूंज उठा,


झपटो के वोह कैदी छूट गए ,


उठो के वोह बैठी दीवारे ,


दौड्रो के वोह टूटी जंजीरे !!!!!










यह नज़्म आज़ादी से पहेले की है जिस में कि शायर देशवासियों को यह बता रहा है कि तैयार हो जाओ अपने जो साथी क़ैद में है वोह जल्द ही जिन्दा तोड़ कर, क़ैद से आजाद हो, आ जायेगे और तब हम सब मिल कर लड़ेगे और अपने हक की आवाज़ बुलंद करेगे |

आज आज़ादी के ६२ साल बाद भी क्या हम सब में इतना एका है की हम अपने हक कि आवाज को मिल कर बुलंद करे ????
आज हम में से हर एक अपनी - अपनी आवाज़ की बुलंदी की परवाह करता है | इतना समय किस के पास है की किसी और की ओर भी देख ले ?? क्या फर्क पड़ता है साहब, जो पड़ोसी किसी मुश्किल में है, हम तो ठीक है न बस इतना काफ़ी है | आज 'मैं , मेरा और मेरे लिए' का ज़माना है | अब 'हम' बहुवचन नहीं एकवचन हो गया है |

आज के समय की मांग है कि "हम" को दोबारा बहुवचन बनाया जाए | हम सब फ़िर मिले और सब का एक ही मकसद हो ------- देश की उन्नति में अपना योगदान देना | आज भी हम सब पूरे तरीके से आजाद नहीं है , आज भी हमारे कुछ साथी किसी न किसी जिन्दान में क़ैद है | यह क़ैद जाहिलपन की हो सकती है , यह क़ैद बेरोज़गारी की हो सकती है , यह क़ैद किसी भी तरह की हो सकती है | एसा नहीं है कि सिर्फ़ हमारे हुक्मरान ही हमारे उन साथियो को उनकी क़ैद से आजाद करवा सकते है .......हम सब भी अपने - अपने तरीके से उनकी आज़ादी के लिए बहुत कुछ कर सकते है बस जरूरत है सिर्फ़ एक जज्बे कि एक सोच , एक ख्याल कि मैं भी कुछ करना चाहता हूँ उन लोगो के लिए जो अपनी मदद ख़ुद नहीं कर पा रहे है |

आईये एक अहद करे अपने आप से कि जब जब मौका मिलेगा उन लोगो के लिए कुछ न कुछ करेगे जो किसी न किसी कारण से अपने लिए बहुत कुछ नहीं कर पा रहे है |

जय हिंद |

रविवार, 23 मई 2010

शरद भाई ( कोकास ) की 22वीं वैवाहिक वर्षगांठ की गिफ्ट

शरद भाई यह गिफ्ट क़ुबूल करें !!

अक्सर
परम आदरणीय के ब्लॉग से पता चलता रहता है कि आप एक नया कैमरा खरीदने का विचार बना रहे हो पर अभी तक मन पक्का नहीं कर पाए तो सोचा आज के दिन इस से बढ़िया गिफ्ट आपको क्या दे सकता हूँ , कि कुछ टिप्स आपकी नज़र करू एक बढ़िया कैमरा खरीदने के बारे में !


आपको और भाभी जी को 22वीं वैवाहिक वर्षगांठ की हार्दिक शुभकामनाएं और बहुत बहुत बधाइयाँ !!

और यह रहा आप का गिफ्ट :-

समर वैकेशन में अगर आपकी हिल स्टेशन जाने की प्लानिंग है तो साथ में एक अच्छा कैमरा भी ले लें, ताकि वहां की खूबसूरत वादियों में बिताए पलों को आप कैद करके घर ले आएं। लेकिन कैसे खरीदें अच्छा कैमरा?

[स्टेप-1 : समझें तकनीकी पहलू]

बेहतर होगा कि शोरूम में कदम रखने से पहले कुछ टेक्निकल नॉलेज ले लें। ये तकनीकी पेचिदगिया आपको बेहतर कैमरा दिलवाने में मददगार साबित हो सकती हैं।

[अपरचर]

कैमरे के मुंह पर एक एडजस्टेबल ओपनर होता है, जिसके जरिए लाइट लेंस तक पहुंचती है। यह वैसे ही काम करता है, जैसे आंखों में पुतली। जिस तरह कम रोशनी होने पर पुतली फैल जाती है और ज्यादा रोशनी में सिकुड़ जाती है, उसी तरह यह कैमरे में लाइट का कैरियर है। अपरचर और शटर स्पीड दोनों साथ-साथ काम करते हैं। सभी डिजिटल कैमरों में एक एक्पोसजर मोड होता है, जो अपरचर और शटर स्पीड को ऑटोमैटिक कंट्रोल करता है। अपरचर को f-stops में मापा जाता है।

[इमेज सेंसर]

यह एक सेमीकंडक्टर चिप होती है, जो ऑप्टिकल इमेज को इलेक्ट्रिक सिग्नल में कनवर्ट करती है। सेंसर जितना बड़ा होगा, पिक्चर में नॉइज उतना ही कम होगा और क्लिैरिटी ज्यादा। निकॉन के डी-90 में सेंसर का साइज 15.8 एमएम गुना 23.6 एमएम है, जबकि कैनन ईओएस आईडीएस में 30 गुना 24 एमएम। इन दिनों डिजिटल कैमरों में चार्ज कपल्ड डिवाइस और कॉम्प्लीमेंटरी मैटल ऑक्साइड सेमीकंडक्टर (सीएमओएस) यूज किया जाता है। सीसीडी टेक्नोलॉजी सीमोस से ज्यादा एडवास है।

[आईएसओ]

ज्यादातर कैमरे ISO 100 से 3200 को सपोर्ट करते हैं, लेकिन आजकल ISO 50 भी उपलब्ध है। ISO आपके फोटो की क्वालिटी तय करता है। इसका मतलब इमेज सेंसर पर पड़ने वाली लाइट की मात्रा से है। ISO 50 या उससे कम की तस्वीरें ज्यादा साफ होंगी। अगर आप वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी के शौकीन हैं और रात के अंधेरे में फ्लैश का इस्तेमाल नहीं करना चाहते, ऐसे में आप हाई ISO का यूज कर सकते हैं। हालाकि कई कैमरों में ISO Auto का भी ऑप्शन होता है।

[एलसीडी व्यूफाइंडर]

कैमरे के पीछे आप जो एक स्माल स्क्रीन देखते हैं, यही एलसीडी व्यूफाइंडर है। कैमरे के लेंस से ली गई तस्वीरों को यह डिस्प्ले करता है। इसके जरिए पिक्चर के प्रीव्यू के अलावा फोकस, फ्रेम की सेटिंग भी की जा सकती है। इसका इस्तेमाल मेमोरी कार्ड में स्टोर पिक्चर को देखने में भी किया जा सकता है।

[मेमोरी या स्टोरेज कार्ड]

मेमोरी जितनी ज्यादा होगी, उतनी ज्यादा पिक्चर्स स्टोर कर पाएंगे। एक जीबी से 16 जीबी तक के मेमोरी कार्ड बाजार में आसानी से मिल जाते हैं। अगर आप सीरीयस फोटोग्राफर हैं, तो एक हाई कैपिसिटी का एक्स्ट्रा मेमोरी कार्ड रिजर्व में रख सकते हैं।

[जूम]

ज़ूम लेंस का काम होता है ऑब्जेक्ट को पास या दूर करके दिखाना। जूम दो तरह के होते हैं, डिजिटल और ऑप्टिकल। डिजिटल जूम से तस्वीर का रिजॉल्यूशन कम हो जाता है। वहीं ऑप्टिकल जूम में कैमरा फोकल लेंथ चेंज करता है और तस्वीर की क्वालिटी ज्यादा स्पष्ट होती है। ऑप्टिकल जूम जितना ज्यादा होगा, उतनी दूर की चीजें आप कैमरे में कैद कर पाएंगे। जूम को ङ्ग में मापा जाता है। बाजार में 3ङ्ग से 20ङ्ग वाले डिजिटल कैमरे भी उपलब्ध हैं, जो डी-एसएलआर का मुकाबला करते हैं।

[शटर स्पीड]

कैमरे में जितने वक्त तक ऑब्जेक्ट लाइट इमेज सेंसर पर पड़ रही होती है, उसे शटर स्पीड कहते हैं। अगर आप ताजमहल का फोटो खींच रहे हैं और कैमरा स्टैंड पर फिक्स किया हुआ है, तो 30 सेकेंड तक शटर खोल सकते हैं। वहीं अगर मूवमेंट वाली चीजों की फोटोग्राफ्स लेनी हैं, तो 1/250 सेकंड पर कैमरा सेट करना होगा। भागती हुई ट्रेन की फोटो चाहिए तो 1/1000 सेकंड शटर स्पीड ठीक है।

[स्टेप-2 :] एसएलआर Vs डिजिटल

एसएलआर कैमरों की सबसे बड़ी खूबी है यूज ऑफ मल्टीपल लैंसेज। प्रफेशनल फोटोग्राफर्स के लिए एसएलआर बेस्ट है। एसएलआर चलाने के लिए फोटोग्राफी की बेसिक नॉलेज जरूरी है, एसएलआर में ज्यादातर कंट्रोल आपके हाथ में होता है, इसलिए मैनुअली सेटिंग्स से आप अपनी क्रिएटिविटी दिखा सकते हैं। वहीं डिजिटल कैमरों में फिक्स्ड लेंस होते हैं और पिक्चर की क्वालिटी लेंस पर ही निर्भर होती है। इसके अलावा डिजिटल कैमरों में प्रोसेसर स्पीड स्लो होती है, जबकि एसएलआर में प्रति सेकेंड के हिसाब से फ्रेम्स बना सकते हैं। एसएलआर बूटअप होने में माइक्रोसेकंड का वक्त लेता है, वहीं डिजिटल ज्यादा टाइम लेता है।

[स्टेप-3 :] मेगापिक्सल पजल

शोरूम में दुकानदार आपसे कहेगा कि इसका मेगापिक्सल ज्यादा है, इसलिए इसकी परफॉरमेंस भी बढि़या है। लेकिन एक्सपर्ट के नजरिए से यह बात बेदम है। एक मेगापिक्सल में 10 लाख पिक्सल्स होते हैं, और इन्हें डिजिटल इमेजिंग की रिजॉल्यूशन कैपेबिलिटी में इस्तेमाल किया जाता है। आम भाषा में कहें, तो फोटो कितनी बड़ी होगी, यह पिक्सल पर निर्भर करता है। जितने ज्यादा मेगापिक्सल का कैमरा होगा, वह फोटो में ऑब्जेक्ट की डीटेल उतनी ही ज्यादा पकड़ेगा और जितनी ज्यादा डिटेल होगी, फोटो उतनी ही क्लियर और बड़ी हो सकती है। 8 मेगापिक्सल कैमरे से खींची गई फोटो का एक अच्छा खासा बड़ा पोस्टर साइज प्रिंटआउट निकाला जा सकता है। 2 या 3 मैगापिक्सल कैमरे से ए4 या ए3 साइज का प्रिंट लिया जा सकता है। अगर आपको पोस्टर साइज इमेजेज चाहिए, तो ज्यादा मेगापिक्सल वाला कैमरा आपकी पॉकेट के लिए बेस्ट रहेगा। वहीं अल्बम साइज फोटो प्रिंट्स के लिए 4-5 मैगापिक्सल वाला कैमरा भी आपकी जरूरत पूरी कर सकता है।


आशा है इस लेख से आपको जरूर कुछ ना कुछ लाभ होगा और आप जल्द ही एक नया कैमरा लेने की सूचना हम सब को देगें |

एक बार फिर .................................


शुक्रवार, 21 मई 2010

नहीं रहे एटीएम के जनक - जान शेफर्ड बैरन


भारत में जन्मे स्काटिश व्यवसायी जान शेफर्ड बैरन दुनिया को अलविदा कह चुके हैं लेकिन उनके द्वारा अविष्कार की गई एटीएम मशीन स्मृति के रूप में लोगों के दिलो दिमाग में बसी रहेगी। संक्षिप्त बीमारी के कारण बैरन की 84 वर्ष की अवस्था में शनिवार को निधन हो गया। उनके परिवार में पत्नी, तीन बेटे और छह पोते पोतियां हैं।

बीते शनिवार को उत्तरी स्काटलैंड में इनवरनेस के रेगमोरे अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। बैरन रोस शिरे में पोर्टमाहोमैक में रह रहे थे। बैरन के अंतिम संस्कार के जानकार एलसडेयर राइंड ने मीडिया को उनके निधन के बारे में जानकारी दी।

उल्लेखनीय बैंकों में टीलर या रोकड़िया रहता है जो पैसे गिनने और ग्राहकों को भुगतान करता है। इसी से प्रेरित होकर बैरन ने एटीएम-आटोमेटेड टैलर मशीन का अविष्कार किया।

1965 में ही उनके दिमाग में आटोमेटिक पैसे के भुगतान करने की मशीन का विचार आया था। वह उस समय प्रिंटिंग कंपनी डे ला रू में कार्यरत थे। उन्हें पैसा निकालने बैंक जाना था लेकिन स्नान करते वक्त काफी देर हो गई, जिसके बाद उनके दिमाग में यह विचार आया था।

वर्ष 2007 में बैरन ने एक साक्षात्कार में कहा था, 'मेरे दिमाग में यह बात कौंध गई थी क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मैं अपना पैसा विश्व या ब्रिटेन के किसी भी हिस्से में आसानी से निकाल सकूं। नकदी के बदले चाकलेट देने वाली मशीन से यह विचार में दिमाग में आया था।'

वर्ष 1967 में लंदन स्थित बैंक में पहली एटीएम स्थापित की गई। उस समय के लोकप्रिय टीवी कलाकार रेग वार्ने एटीएम से पैसा निकालने वाले पहले व्यक्ति बने थे। पिन और विशेष चेक के माध्यम से एटीएम ने पहला भुगतान किया था। इसके कारण प्लास्टिक कार्ड या एटीएम कार्ड से पैसे निकालने के युग का सूत्रपात हुआ। विशेष पिन [निजी पहचान संख्या] से आज पैसे निकालने का काम बहुत ही सरल हो चुका है। पूरे विश्व में यह प्रचलित है।

बैरन का जन्म 1925 में भारत में हुआ था। उनके माता-पिता स्काटिश थे। कैरोलिन मरे से बैरन का विवाह हुआ था। बैरन को आर्डर आफ ब्रिटिश एंपायर [ओबीई] से भी सम्मानित किया गया।

दे दो कसाब को फ़ासी !!


आपने भी सोचा होगा कि यदि हाथ आ जाए, तो मुंबई हमले के दोषी पाकिस्तानी आतंकी अजमल कसाब को फांसी पर चढ़ा दें। आप अपनी यह ख्वाहिश इंटरनेट के गेम 'हैंग कसाब' में पूरी कर सकते हैं। गेम में आप जितनी बार चाहें, उतनी बार कसाब को फांसी दे सकते हैं। हर बार फांसी देने पर प्वाइंट भी मिलेंगे। इंटरनेट पर यह गेम काफी लोकप्रिय हो रहा है।

आनलाइनरियलगेम्स डाट काम पर 'हैंग कसाब' उपलब्ध है। वैसे यह गेम बहुत आसान भी नहीं है क्योंकि इसमें 'कसाब' फांसी पर चढ़ने से बचने की हरसंभव कोशिश करता है। फांसी देने में कामयाब होने पर खिलाड़ी को सौ प्वांइट मिलते हैं। गेम का समय एक मिनट है।

गेम को बनाने वाले सेवनसी टेक्नोलाजी के प्रबंधक निदेशक मारुति शंकर कहते हैं, 'कसाब को फांसी कौन देगा? इस पर कई खबरें आ रही थी। सो, हमने फैसला किया क्यों न ऐसा गेम बनाया जाए, जिसमें हर भारतीय को आतंकी कसाब को फांसी देने और उस पर अपना गुस्सा उतारने का मौका मिले।'

उन्होंने बताया कि इस गेम का प्रचार नहीं किया जा रहा है क्योंकि यह व्यावसायिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि देशभक्ति की भावना से विकसित किया गया है। इस गेम के माध्यम से प्रतिदिन एक लाख लोग रोज कसाब को फांसी दे रहे हैं। इस गेम को कोई भी आनलाइन खेल सकता है।

गुरुवार, 20 मई 2010

गांधी जी के प्रथम आलोचकों में से एक - बिपिन चंद्र पाल

बिपिन चंद्र पाल क्रांतिकारी तिकड़ी 'लाल', 'बाल', 'पाल' के अहम किरदार थे जिन्होंने ब्रितानिया हुकूमत की चूलें हिलाकर रख दी थीं। उन्हें गांधी जी के प्रथम आलोचकों में से एक माना जाता है।

बिपिन चंद्र पाल का जन्म सात नवंबर 1858 को हबीबगंज जिले के पोइल गांव में हुआ था, जो वर्तमान में बांग्लादेश में पड़ता है। वह एक शिक्षक, पत्रकार, लेखक और मशहूर वक्ता होने के साथ ही एक क्रांतिकारी भी थे जिन्होंने लाला लाजपत राय [लाल] और बाल गंगाधर तिलक [बाल] के साथ मिलकर अंग्रेजी शासन से जमकर संघर्ष लिया। इतिहासकार सर्वदानंदन के अनुसार इन तीनों क्रांतिकारियों की जोड़ी आजादी की लड़ाई के दिनों में 'लाल', 'बाल', 'पाल' के नाम से मशहूर थी। इन्हीं तीनों ने सबसे पहले 1905 में अंग्रेजों के बंगाल विभाजन का जमकर विरोध किया और इसे एक बड़े आंदोलन का रूप दे दिया।

पाल राष्ट्रवादी पत्रिका 'वंदे मातरम' के संस्थापक भी थे। उन्होंने जब एक विधवा को अपनी जीवनसंगिनी बनाया तो घरवालों से उन्हें जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा। बाल गंगाधर तिलक की 1907 में गिरफ्तारी और ब्रिटिश सरकार द्वारा दमन की कार्रवाई शुरू किए जाने के बाद वह इंग्लैंड चले गए, जहां वह 'इंडिया हाउस' से जुड़े और 'स्वराज' पत्रिका की स्थापना की। हालांकि 1909 में मदन लाल ढींगरा द्वारा कर्जन वाइली को मौत के घाट उतार दिए जाने के बाद यह पत्रिका बंद हो गई।

पत्रिका के बंद हो जाने से पाल को लंदन में मानसिक तनाव के दौर से गुजरना पड़ा और नतीजतन वह 'कट्टर चरण' से पूरी तरह दूर हो गए। उन्होंने आजाद देशों का एक संघ बनाने की परिकल्पना का सूत्रपात किया, जो किसी एक देश की सीमा से काफी परे हो। पाल गांधी जी की सबसे पहले आलोचना करने वालों में शामिल थे। जब गांधी जी भारत पहुंचे तब भी उन्होंने उनकी आलोचना जारी रखी। 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र में अपने अध्यक्षीय भाषण में पाल ने गांधी जी की खुलेआम तीखी आलोचना की।

उन्होंने गांधी जी की आलोचना करते हुए कहा कि, "आप जादू चाहते हैं। मैंने आपको तर्क देने की कोशिश की। आप मंत्रम चाहते हैं, मैं कोई ऋषि नहीं हूं जो मंत्रम दे सकूं। जब मैं सच जानता हूं तो मैंने कभी आधा सच नहीं बोला। " इसके लिए पाल को भी राष्ट्रवादियों की आलोचना का शिकार होना पड़ा। पाल 1922 में राजनीतिक जीवन से अलग हो गए और फिर कभी इस तरफ मुड़कर नहीं देखा। 20 मई 1932 को उनका निधन हो गया।

प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1958 में पाल की जन्मशती पर उन्हें ऐसा महान व्यक्ति करार दिया जिसने राजनीतिक और धार्मिक दोनों ही क्षेत्रों में उच्चस्तरीय भूमिका निभाई। पाल को भारत में 'क्रांतिकारी विचारों का जनक' भी कहा जाता है।

क्रांतिकारी विचारों के जनक :- विपिन चंद्र पाल (०७/११/१८५८ - २०/०५/१९३२)

सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से श्री विपिनचंद्र पाल को शत शत नमन और विनम्र श्रद्धांजलि !


शनिवार, 15 मई 2010

श्रद्धांजलि :- भैरोंसिंह शेखावत ( २३/१०/१९२३ - १५/०५/२०१० )


पूर्व उप राष्ट्रपति और तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री की कमान संभालने वाले भैरोंसिंह शेखावत का शनिवार को सवाई मान सिंह अस्पताल में निधन हो गया। तबीयत बिगड़ने के कारण उन्हें दो दिन पहले ही अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वह 87 वर्ष के थे।

सवाई मान सिंह अस्पताल के अधीक्षक डा नरपत सिंह शेखावत ने बताया कि शेखावत को 13 मई को सांस और रक्तचाप की तकलीफ के कारण गहन चिकित्सा कक्ष में भर्ती कराया गया था। कल रात तक उनका स्वास्थ्य स्थिर था, लेकिन आज सुबह उनकी तबीयत अचानक खराब हो गई और 11:20 बजे उन्होंने अन्तिम सांस ली।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आज सुबह ही शेखावत का हालचाल पूछने सवाई मान सिंह अस्पताल गए थे और उन्होंने शेखावत का इलाज कर रहे डाक्टरों से उनकी तबीयत के बारे में पूछताछ की थी। अधिकारिक सूत्रों के अनुसार शेखावत का अंतिम संस्कार कल जयपुर में किया जाएगा। शेखावत के निधन का समाचार मिलते ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सवाई मानसिंह अस्पताल पहुंचे और परिजनों को ढाढ़स बंधाया। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री नमो नारायण मीणा ने भी सवाई मानसिंह अस्पताल पहुंच कर शेखावत के निधन पर संवेदना जताई।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डा अरुण चतुर्वेदी, भारतीय जनता पार्टी के सांसद राम दास अग्रवाल ने शेखावत के असामयिक निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया। शेखावत के निधन का समाचार मिलते ही उनके ननिहाल, पैतृक निवास स्थान खाचरियावास समेत देश भर में शोक की लहर दौड़ गई।

अपने समर्थकों द्वारा 'राजस्थान का एक ही सिंह' कहलाने वाले पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत देश के 11वें उपराष्ट्रपति थे जो इस पद पर 19 अगस्त 2002 से लेकर 21 जुलाई 2007 तक काबिज रहे। राजनीति के धुरंधर कहे जाने वाले शेखावत अपने पूर्ववर्ती कृष्णकांत के निधन के बाद उप राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए थे। प्रतिभा पाटिल से राष्ट्रपति पद का चुनाव हारने के बाद उन्होंने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था।

23 अक्टूबर 1923 को राजस्थान में सीकर जिले के खचरियावास गांव में जन्मे शेखावत को सांस में तकलीफ की शिकायत के बाद 13 मई की रात जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां आज उन्होंने अंतिम सांस ली। वह 1977 से लेकर 1980 तक, 1990 से लेकर 1992 तक और 1993 से लेकर 1998 तक, तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे।

भैरोंसिह शेखावत ने हाईस्कूल पास किया लेकिन अपने पिता देवी सिंह शेखावत के निधन के बाद अपनी शिक्षा जारी नहीं रख सके। उन्हें अपने परिवार के भरण पोषण की जिम्मेदारी उठानी थी। पहले उन्होंने किसान के रूप में काम किया और फिर पुलिस में बतौर उपनिरीक्षक भर्ती हो गए।

शेखावत को उनके लाखों समर्थकों द्वारा 'राजस्थान का एक ही सिंह' के नाम से पुकारा जाता था। राजनीतिज्ञ के रूप में उनकी किसानों, ब्राह्मणों, वैश्य ्रसिख, जैन और यहां तक कि मुस्लिमों में भी अच्छी पकड़ थी। वह 1952 में राजनीति में आए। 1977 तक भारत के अधिकतर राज्यों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की जीत होती थी, लेकिन राजस्थान में शेखावत कांग्रेस के लिए हमेशा खतरा बने रहे। 1967 के चुनावों में भारतीय जनसंघ [शेखावत की पार्टी] और स्वतंत्र पार्टी का गठबंधन बहुमत के नजदीक पहुंच गया पर सरकार नहीं बना पाया लेकिन 1977 में उनकी जबर्दस्त जीत हुई और 200 सीटों में से 151 पर कब्जा जमा लिया। 1980 में बिखराव के बाद शेखावत ने अपने समर्थकों के साथ भारतीय जनता पार्टी में जाने का फैसला किया। 1980 में विपक्ष के मतों में बिखराव के चलते कांग्रेस की जीत हुई। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति लहर में भाजपा एक बार फिर जबर्दस्त तरीके से हार गई। कांग्रेस को राजस्थान में 200 में से 114 सीटें मिलीं। विपक्ष बिखरा हुआ था, नहीं तो शेखावत इतिहास रच सकते थे, लेकिन शेखावत के इरादे कायम रहे और उन्होंने 1989 में इतिहास रच डाला जब भाजपा-जनता दल गठबंधन ने राजस्थान में लोकसभा की सभी 25 सीटों पर कब्जा जमा लिया और विधानसभा चुनाव में 140 सीटों पर विजय दर्ज की। शेखावत एक बार फिर राजस्थान के मुख्यमंत्री बने। अगले चुनाव में गठबंधन में बिखराव के बाद शेखावत के करिश्मे से भाजपा 96 सीटों के साथ एकमात्र सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। भाजपा समर्थित तीन निर्दलीय भी चुनाव जीत गए और सीटों की संख्या बढ़कर 99 हो गई।

बहुत से निर्दलियों ने भाजपा को समर्थन दिया और अंतत: सीटों का आंकड़ा 116 तक पहुंच गया। कांग्रेस ने शेखावत को सरकार बनाने से रोकने के लिए हरसंभव कोशिश की, लेकिन निर्दलियों के समर्थन के चलते शेखावत सरकार बनाने में सफल रहे। 1998 के अगले चुनाव में प्याज की कीमत बढ़ जाने के कारण शेखावत सरकार नहीं जीत सकी, लेकिन भाजपा अगले साल 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज कर फिर से केंद्र में पहुंच गई। राजस्थान में भाजपा को 25 में से 16 सीटें मिलीं।

शेखावत 2002 में देश के उप राष्ट्रपति बने और उन्होंने विपक्ष के उम्मीदवार सुशील कुमार शिन्दे को 149 मतों से हराया। जुलाई 2007 में शेखावत ने निर्दलीय के रूप में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा जिन्हें राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन [राजग] का समर्थन प्राप्त था, लेकिन वह संप्रग उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल से हार गए। 21 जुलाई 2007 को उन्होंने उप राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया। वह 1952 से लेकर 1972 तक राजस्थान विधानसभा के सदस्य रहे। 1974 से लेकर 1977 तक मध्य प्रदेश से राज्यसभा के सदस्य रहे। शेखावत 1977 से 2002 तक राजस्थान विधानसभा के सदस्य और 22 जून 1977 से 16 फरवरी 1980 तक राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे। शेखावत 1980 में राजस्थान विधानसभा में नेता विपक्ष तथा चार मार्च 1990 से 15 दिसंबर 1992 तक दूसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे।

वह चार दिसंबर 1993 से 29 नवंबर 1998 तक तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे और दिसंबर 1998 से अगस्त 2002 तक राजस्थान विधानसभा में नेता विपक्ष रहे। शेखावत 19 अगस्त 2002 को देश उपराष्ट्रपति बने और 21 जुलाई 2007 तक इस पद पर काबिज रहे।


हम सब की ओर से पूर्व उप राष्ट्रपति श्री भैरोंसिंह शेखावत जी को भावभीनी और विनम्र श्रद्धांजलि |

जन्मदिन पर विशेष :- सुखदेव को अंग्रेजों ने दी बिना जुर्म की सजा


जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारतीय भाषा विभाग के अध्यक्ष और इतिहासकार चमन लाल का कहना है कि सांडर्स हत्याकांड में सुखदेव शामिल नहीं थे, लेकिन फिर भी ब्रितानिया हुकूमत ने उन्हें फांसी पर लटका दिया। उनका कहना है कि राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह की लोकप्रियता तथा क्रांतिकारी गतिविधियों से अंग्रेजी शासन इस कदर हिला हुआ था कि वह उन्हें हर कीमत पर फांसी पर लटकाना चाहता था।

अंग्रेजों ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था और वे हर कीमत पर इन तीनों क्रांतिकारियों को ठिकाने लगाना चाहते थे। लाहौर षड्यंत्र [सांडर्स हत्याकांड] में जहां पक्षपातपूर्ण ढंग से मुकदमा चलाया गया, वहीं अंग्रेजों ने सुखदेव के मामले में तो सभी हदें पार कर दीं और उन्हें बिना जुर्म के ही फांसी पर लटका दिया।

उन्होंने कहा कि सांडर्स हत्याकांड में पक्षपातपूर्ण ढंग से मुकदमा चलाया गया और सुखदेव को इस मामले में बिना जुर्म के ही सजा दे दी गई। पंद्रह मई १९०७ को पंजाब के लायलपुर [अब पाकिस्तान का फैसलाबाद] में जन्मे सुखदेव भी भगत सिंह की तरह बचपन से ही आजादी का सपना पाले हुए थे। ये दोनों लाहौर नेशनल कॉलेज के छात्र थे। दोनों एक ही सन में लायलपुर में पैदा हुए और एक ही साथ शहीद हो गए।

चमन लाल ने बताया कि दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी। चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्प्यूट बिल के विरोध में सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने के लिए जब हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी [एचएसआरए] की पहली बैठक हुई तो उसमें सुखदेव शामिल नहीं थे। बैठक में भगत ने कहा कि बम वह फेंकेंगे, लेकिन आजाद ने उन्हें इजाजत नहीं दी और कहा कि संगठन को उनकी बहुत जरूरत है। दूसरी बैठक में जब सुखदेव शामिल हुए तो उन्होंने भगत सिंह को ताना दिया कि शायद तुम्हारे भीतर जिंदगी जीने की ललक जाग उठी है, इसीलिए बम फेंकने नहीं जाना चाहते। इस पर भगत ने आजाद से कहा कि बम वह ही फेंकेंगे और अपनी गिरफ्तारी भी देंगे।

चमन लाल ने बताया कि अगले दिन जब सुखदेव बैठक में आए तो उनकी आंखें सूजी हुइ थीं। वह भगत को ताना मारने की वजह से सारी रात सो नहीं पाए थे। उन्हें अहसास हो गया था कि गिरफ्तारी के बाद भगत सिंह की फांसी निश्चित है। इस पर भगत सिंह ने सुखदेव को सांत्वना दी और कहा कि देश को कुर्बानी की जरूरत है। सुखदेव ने अपने द्वारा कही गई बातों के लिए माफी मांगी और भगत सिंह इस पर मुस्करा दिए। दोनों के परिवार लायलपुर में पास-पास ही रहा करते थे।


भारत माँ के इस सच्चे सपूत सुखदेव को उनके जन्मदिन के अवसर पर हम सब की ओर से शत शत नमन !!

वन्दे मातरम !!

शुक्रवार, 14 मई 2010

रिपोस्ट :- अग्निपथ (ख़ास समीर लाल समीर जी के लिए)

समीर भाई ,
बच्चन जी की यह कविता आप पर सटीक बैठती है सो पेश है .................



























वृक्ष हो बड़े भले,

हो घने हो भले,
एक पत्र छाह भी मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ, अग्निपथ अग्निपथ;

तू न थमेगा कभी तू न मुदेगा कभी तू न रुकेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ.
ये महा दृश्य हैं,
चल रहा मनुष्य हैं,
अश्रु, स्वेत, रक्त से लथपथ लथपथ लथपथ ..
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ.



- "बच्चन"


--------------------------------------------------------------------------------------------------
आप बस युही हिंदी ब्लॉग जगत को मार्गदर्शित करते रहें ............यही दुआ है !!

गुरुवार, 13 मई 2010

ऐसे रखें आंखों का ख्याल !!


कम्प्यूटर पर देर तक काम करना सेहत के साथ-साथ आंखों के लिए नुकसानदायक होता है। इससे आंखों में जलन, धुंधलापन, सिरदर्द और तनाव जैसी समस्या होना आम बात है। टाइप करने के दौरान कम्प्यूटर स्क्रीन और की-बोर्ड को लगातार देखने से आंखों पर तनाव पड़ता है। इससे थकान के साथ-साथ कार्यक्षमता भी प्रभावित होती है।

[ये हैं लक्षण]

* सिरदर्द

* आंखों में जलन, धुंधलापन और उनका लाल हो जाना

* किसी वस्तु का अस्पष्ट दिखना।

* रंगों में अस्पष्टता।

* कंधों और कमर में दर्द।

[ऐसे करें देखभाल]

* दोनों हाथों की हथेलियों को 15-20 सेकेंड तक रगड़ने के बाद आंखों पर रखें।

* काम करने के दौरान बीच में ब्रेक लें। थोड़ी देर आंखें मूंद लें।

* हाथ के अंगूठों को नाक से करीब छह इंच की दूरी पर रखकर कुछ सेकेंड तक देखें।

* एक कटोरी में गुनगुना पानी लें और एक में ठंडा। पहले गुनगुने पानी में कपड़ा भिगोकर आंखों पर रखें। फिर ठंडे पानी से। इस क्रम को चार-पांच बार दोहराएं।

बुधवार, 12 मई 2010

संगीत से सधे मन !!


संगीत में सात सुर हैं। इन सुरों से निकलते हैं तमाम राग और रागनियां। इन राग-रागनियों का हमारे फिजिकल और मेंटल सिस्टम से गहरा ताल्लुक है, तभी तो दर्द वाले सुर हमें दर्द में डुबो देते हैं और खुशी के गीत हमें आनंद के सागर में डुबकी लगवा देते हैं।

अगर आप अकेले हैं, दुख-दर्द सुनने और खुशियां बांटने के लिए आपके पास कोई नहीं है, तो आप संगीत को अपना साथी बना लीजिए। फिर आपको कोई कमी महसूस नहीं होगी। सुमधुर गीत आपको इस योग्य बना देंगे कि आप स्वयं से बातें करने लगेंगे। संगीत आपके लिए कम्युनिकेशन चैनल का काम करता है। देखा जाए, तो भारत में राग चिकित्सा का प्रयोग वैदिक काल से होता आया है। न सिर्फ भारत, बल्कि विदेशी पौराणिक कथाओं में भी संगीत को आत्मा के लिए मलहम समान बताया गया है। बाइबिल की कहानियों के अनुसार, डेविड राजा सॉल के अत्याचार से मन में उपजी निराशा को दूर करने के लिए अक्सर बीन बजाया करता था।

यूनान में भी संगीतज्ञ ऑर्फियस की एक कहानी प्रचलित है। वह अपने संगीत के प्रभाव से न केवल जंगली जानवरों को शांत किया करता था, बल्कि चंट्टानों को भी अपने स्थान से खिसका देता।

[संगीत चिकित्सा]

आज भारत में योग विज्ञान की मदद से संगीत चिकित्सा पर कई रिसर्च व‌र्क्स किए जा रहे हैं। इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं। हमारे मस्तिष्क से जुड़ी कई तकलीफें, जैसे-डिप्रेशन, डिमेंशिया, अनिद्रा, नकारात्मक भावनाएं, सिर-दर्द, तनाव, अशांति आदि में संगीत काफी फायदा पहुंचाता है।

[कमाल है मोजार्ट]

जर्मन म्यूजिक कम्पोजर डब्लू.ए. मोजार्ट ने एक क्लासिकल म्यूजिक कम्पोज किया और नाम दिया मोजार्ट। यह हाई फ्रीक्वेंसी म्यूजिक है, जो व्यग्र लोगों के मन के वेग को शांत करता है। यह आपके निगेटिव विचारों में बदलाव लाकर उन्हें सकारात्मक बनाता है। फ्रेंच फिजीशियन डॉ. अल्फ्रेड टोमेटिस ने पिछले 50 वर्षो के दौरान ऐसे एक लाख लोगों पर अध्ययन किया, जिन्हें बोलने (स्पीच) में परेशानी होती थी। ऐसे लोगों को लगातार छह-सात महीने प्रतिदिन एक घंटे मोजार्ट म्यूजिक सुनाया जाता था। एक निश्चित समय बाद इन लोगों की स्पीच संबंधी समस्या जाती रही।

[अंतस से संवाद]

संवाद, साहचर्य स्थापित करने और उदासी भगाने के लिए संगीत बहुत जरूरी है। यदि आप 'निरवल जुगलबंदी' सुनते हैं, तो यह आपके लिए एक प्रकार के कम्युनिकेशन चैनल का काम करती है। दरअसल, जब आप संगीत में ध्यान मग्न हो जाते हैं, तो समझ लीजिए आप अपने अंतस से जुड़ गए। तब आप स्वयं से बातचीत करने लगते हैं। प्रतिदिन पांच मिनट का संगीत आपको आत्मसंतुष्टि प्रदान कर सकता है। संगीत सुनकर सोने से रात में अच्छी नींद आती है।

[राग-उपचार]

ऐसे कई राग हैं, जो मानव मस्तिष्क और शरीर पर अद्भुत प्रभाव डालते हैं। तनाव दूर करने में दरबारी कान्हड़ा, खमाज, पूरिया रागों का प्रयोग वैदिक काल से होता आया है। राग अहीर भैरव और तोड़ी उच्च रक्तचाप के मरीजों के लिए बहुत प्रभावशाली हैं। वहीं माल्कौंस राग के बारे में मान्यता है कि इसमें अलौकिक शक्ति छिपी होती है। यह निम्न रक्तचाप को संतुलित करने में मदद करता है। कब्ज में गुनकली और जौनपुरी, अस्थमा में दरबारी कान्हड़ा और मियां की मल्हार, साइनस प्रॉब्लम में भैरवी, सिर-दर्द, क्रोध में तोड़ी और पूर्वी राग तथा अनिद्रा में काफी और खमाज काफी कारगर होते हैं। मोहनम राग हमारे अंदर आत्मविश्वास का संचार करता है।

[चिकित्सकों की राय]

* मनोचिकित्सक आरती आनंद बताती हैं कि संगीत हमारे मनोभावों को व्यक्त करता है। यदि हम प्रसन्नता महसूस करते हैं, तो थोड़ा लाउड म्यूजिक सुनना पसंद करते हैं। वहीं, दु:ख की घड़ी में धीमा संगीत हमारे उदास मन को दर्शाता है। संगीत सुनने से तनाव कम होता है और मन में सकारात्मक भाव उत्पन्न होते हैं।

* काडिर्योलॉजिस्ट डॉ। के.के. अग्रवाल के अनुसार, संगीत का हमारे दिल पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है। यदि आप रोज 20 मिनट मधुर संगीत सुनें, तो आपका ब्लड सर्कुलेशन सही होता है।


(म्यूजिक थेरेपिस्ट टी.वी. साईराम के व्याख्यान पर आधारित)

मंगलवार, 11 मई 2010

दमा को करे बेदम; इस से पहले कि हम हो बेदम


आंकड़े गवाह हैं कि दमा या अस्थमा का मर्ज विस्फोटक बिंदु पर पहुंच चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इस समय लगभग 30 करोड़ दमा पीड़ित लोग दुनियाभर में मौजूद है। यही नहीं, प्रतिवर्षविश्वभर में 2 से 2.5 लाख लोगों की मौतें दमा के कारण होती हैं।

मर्ज क्या है

दमा श्वसन तंत्र की बीमारी है जो एलर्जी जनित विकार है। जब कभी भी यह एलर्जी पैदा करने वाले तत्व श्वसन या सांस नली के अंदर पहुंच जाते है तो सांस नली में सूजन और संकुचन पैदा हो जाता है। इस कारण वायु मार्ग संकरा होकर अवरोधित हो जाते हैं। परिणामस्वरूप मरीज को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। यह रोग किसी भी उम्र में हो सकता है। आमतौर पर दमा बचपन में ही आरंभ होता है।

रोग के लक्षण

सामान्यतया दमे से पीड़ित मरीज को रात्रि में खांसी आती है।

मरीज को बार-बार सांस फूलने के दौरे पड़ते है।

सोते समय दम घुटने जैसा अहसास होता है।

बार-बार नाक व गले में संक्रमण होता है।

बच्चों में पसलियां चलनी शुरू हो जाती है। ये लक्षण पूरे साल में कभी भी प्रकट हो सकते हैं, लेकिन मौसम परिवर्तन पर इनकी संभावना अधिक होती है।

कारण

दमा संक्रमण की बीमारी नहीं है। इस मर्ज के मुख्य कारण पुष्प के परागकण, तेज गंध व स्प्रे, धूल या धुआं, धूम्रपान का धुआं, बिस्तर व तकिए की धूल, मौसम में परिवर्तन और इत्र व पाउडर का प्रयोग आदि हैं। माता पिता में अगर किसी को एलर्जी की शिकायत है तो संतानों में इस मर्ज की संभावना अधिक होती है।

उपचार

इनहेलेशन थेरैपी दमा के इलाज में वरदान साबित हुई है। इस थेरैपी का समुचित प्रयोग हो तो 90 प्रतिशत से ज्यादा लोगों में दमा पर पूर्णतया नियंत्रण पाया जा सकता है। पूरे विश्व में यह इलाज की पहली अवस्था है। इस विधि में मुख्यतया दो प्रकार की दवाइयों का प्रयोग होता है। एक वह जिसमें तुरन्त लाभ मिलता है जिसे ब्रॉन्कोडाइलेटर कहते है। दूसरी वह जो बीमारी को आगे बढ़ने से रोकती है और कुछ मरीजों में उसे समाप्त करने की भी क्षमता रखती है। इसके अन्तर्गत मुख्यतया 'इन्हेलर स्टेरॉयड' को शुमार किया जाता है। इन्हेलर्स का सबसे बड़ा लाभ यह है कि दवा सीधे सांस नली में पहुंचती है जबकि खाने वाली दवाएं शरीर के विभिन्न अंगों में जाकर नुकसान पहुंचा सकती है।

कैसे करे स्वयं नियंत्रण

कभी भी दमा के लक्षण प्रकट होने पर घबराएं नहीं, खुली खिड़की के पास खड़े हो जाएं, इन्हेलर का प्रयोग स्पेसर डिवाइस से करे। नेब्यूलाइजर भी ऐसी स्थिति में काफी उपयोगी होते है। अगर आराम नहीं मिलता है तो चिकित्सक से सम्पर्क करे।

नवीनतम पद्धति

विभिन्न शोध-अध्ययनों से यह पता चला है कि 10 प्रतिशत लोगों में दमा को नियंत्रित करना कठिन है। ऐसे मरीजों में नयी पद्धति जैसे थर्मल ब्रान्कोप्लास्टी, एण्डोब्रांकियल वाल्व प्लेसमेंट, एंटी आईजीई, एंटीबॉडीज, स्पेसिफिक मॉडीफाइड इम्यूनोथेरैपी का इस्तेमाल किया जा सकता है।

ऐसे करें बचाव

मौसम बदलने के चार-पांच सप्ताह पहले से ही सतर्क हो जाएं और विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श लें।

तेज हवा चलने पर खिड़कियों को बंद रखें। खासकर दोपहर में जब हवा में ज्यादा परागकण होते हैं।

सर्दी, जुकाम, गले की खराश या फ्लू जैसी बीमारी का तुरंत इलाज कराएं।

पालतू जानवर को शयन-कक्ष से बाहर रखें और उसे हफ्ते में कम से कम एक बार नहलाएं।

घर की सफाई, पुताई व पेंट के समय रोगियों को घर से बाहर रहना चाहिए या फिर वे मुंह व नाक पर कपड़ा बांध कर रखें।

धूल, धुआं वाले स्थानों से गुजरते समय नाक व मुंह को ढककर रखें।

धूम्रपान से परहेज करें।

फोम के तकिए का इस्तेमाल न करें। सेमल की रुई से भरे तकिए व गद्दे का इस्तेमाल न करें। रोगी के बिस्तर की चादर रोज बदलें।

ऐसे कारक जिनकी वजह से सांस की तकलीफ बढ़ती है, उनसे बचाव करना चाहिए।

बच्चों को रोएंदार कपड़े न पहनाएं और उन्हें खेलने के लिए रोएंदार खिलौने न दें।

रोगी कूलर या एयर-कंडीशनर वाले कमरे से अचानक गर्म हवा में न जाएं।

शोले के सांभा का निधन - मैक मोहन नहीं रहे


फिल्म शोले में डाकू सांभा का किरदार निभाने वाले अभिनेता मैक मोहन का सोमवार को निधन हो गया। 71 वर्षीय मैक मोहन ने मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में आखिरी सांस ली। वह कैंसर से पीड़ित थे।

मैक मोहन ने अपना फिल्मी करियर 1964 में आई हकीकत से शुरू किया था। करीब पांच दशक के अपने करियर में उन्होंने 175 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया। उन्हें सबसे ज्यादा प्रसिद्धि मिली 1975 में रिलीज हुई शोले से। शोले में उन्होंने गब्बर सिंह की गैंग के डाकू सांभा का किरदार निभाया था। फिल्म के एक दृश्य में गब्बर कहता है, 'अरे ओ सांभा, कितना इनाम रखे है सरकार हम पर'। इसके जवाब में सांभा कहता है - 'पूरे पचास हजार।' यह डायलाग भारतीय सिनेमा के इतिहास के कुछ सबसे मशहूर डायलाग्स में एक है।

मैक मोहन ने कई अन्य हिट फिल्मों जैसे डान, द बर्निग ट्रेन और सत्ते पे सत्ता में भी काम किया। शोले के निर्देशक रमेश सिप्पी ने अपनी श्रद्धांजलि में कहा, सांभा की भूमिका मैक मोहन के अलावा कोई दूसरा इतनी अच्छी तरह नहीं कर सकता था। सांभा के रूप में वह हमेशा याद किए जाएंगे।


मैकमोहन जी को हम सब की ओर से भावभीनी और विनम्र श्रद्धांजलि |

सोमवार, 10 मई 2010

एक लघु कथा - रिंगटोन


बेटा बहू गुस्से से पागल हो मां को धिक्कार रहे थे क्योंकि उनका छ: माह का बेटा रोते-रोते पलंग से गिर पड़ा था और मां उसका रोना नहीं सुन पाई थी॥ ग्लानि से भरी मेरी मां सब बर्दाश्त कर रही थी, क्योंकि उसे लगा था कि यह बहू का मोबाइल बज रहा है। अभी कल ही बहू ने उसके हड़बड़ाकर दौड़ने पर खिलखिलाते हुये कहा था मांजी मुन्ना नहीं ये रो रहा है.. उसके हाथ में उसका मोबाइल था। बच्चों के गुस्से पर मां बाजार को कोस रही थी कि आखिर और क्या-क्या बिकेगा इस बाजार में..?



[लेखक :- डा. कमल मुसद्दी]

ब्लॉग आर्काइव

Twitter