छोटे पर्दे पर धमाचौकड़ी मचाने वाला मोगली एक ऐसा करेक्टर है जो हर बच्चे की जुबान पर है। 90 के दशक में टीवी पर कार्टून के रूप में दिखाई गई इस भेड़िया बालक की कहानी ने बच्चों के साथ बड़ों को भी खूब आकर्षित किया।
लेकिन जब द जंगल बुक के आर्थर रुडयार्ड किपलिंग बालाघाट के जंगलों में [1893-94] मोगली की परिकल्पना कर रहे थे। आगरा में भी एक सचमुच का 'मोगली' डाइना शिंचर इंसानी दुनिया के करीब आया। फर्क बस इतना है कि डाइना शिंचर पर रूडयार्ड किपलिंग की नजर नहीं पड़ी। वरना आज हम सबकी जुबान पर मोगली नहीं डाइना शिंचर का नाम होता।
वुल्फ ब्वॉय डाइना शिन्चर को जंगलों से 1867 में भेड़ियों के झुंड के बीच से पकड़ा गया था। तब आगरा के सिकन्दरा [अकबर का मकबरा] के सामने चर्च परिसर के भवनों का उपयोग ऑरफेनेज [अनाथालय] के रूप में होता था। प्लेग की विभीषिका में मारे गये लोगों के सौ से ज्यादा बच्चे रहते थे यहां।
शिंचर को पकड़ने के बाद उसे रखने के लिए जब किसी सुरक्षित स्थान की तलाश शुरू हुई तो सिकंदरा ऑरफेनेज [अकबर टांब] को ही उपयुक्त माना गया। बाउंड्रीवाल से घिरे इस विशाल परिसर में जहां पेड़ों और झाड़ियों के झुरमुटों के कारण जंगल जैसा नजारा था, वहीं निगरानी का इंतजाम भी चौकस था।
शिन्चर को जब शिकारियों के ग्रुप ने देखा तो वह भेड़ियों के बड़े झुंड में चौपाये के रूप में कुलाचें मार रहा था। यह देख बारूद से भरी बन्दूकें थम गई और धरपकड़ की कोशिशें शुरू हो गई। छह साल के शिन्चर को पकड़ना सहज नहीं था। एक तो वह काफी चंचल था, उस पर उसकी संरक्षक मादा भेड़िया एकदम आक्रामक मुद्रा में थी। शिकारियों ने शिन्चर को तो किसी तरह अपने फंदे में ले लिया, लेकिन मादा के कडे़ प्रतिरोध के चलते उसे गोली मारनी पड़ी। जो विवरण मौजूद हैं, उनके अनुसार मां की तरह मादा भेड़िया का स्तनपान करने वाले शिन्चर का अवचेतन इससे भारी आहत हुआ और कई दिन तक वह असहज रहा। शिंचर 1895 तक जिंदा रहा, इस दौरान उसे फिर से मनुष्य जैसा बनाने की बहुतेरी कोशिश हुई।
चार पैरों वाले जानवर की तरह चलने की उसकी आदत कुछ कम तो हुई, लेकिन पूरी तरह से दो पैरों पर चलने वाले सामान्य इंसान में फिर भी उसे नहीं तब्दील किया जा सका। कच्चा मीट अंत तक उसकी पहली पसंद बना रहा। उसे मानवों की भांति कपड़े पहनाने की भी कोशिश की गई, लेकिन वह उन्हें जल्द ही फाड़ देता। ऑरफेनेज के कुछ संवासियों को जहां उसने अपना दोस्त मान लिया, वहीं शाम को कोठरी में बन्द करने को घेराबन्दी करने वाले चौकीदार को वह अंत तक नापसंद करता रहा।
वुल्फ ब्यॉय शिन्चर की एक सदी के बाद उस समय याद ताजी हुई, जब अचानक स्लाइड कैमरे से खींचे गए उसके फोटो भारतीय जंगलों की खोजबीन करने वालों के हाथ लगे। नॉर्दर्न आयरलैंड में मिशनरी कार्य करने वालों में से किसी के पर्सनल कलेक्शन में ये संजोये हुए थे और वाईएमसीए इन्हें प्राप्त करने का माध्यम बना।
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