यह सूचना निराश करने वाली है कि उत्तर प्रदेश में तहसील दिवस के तहत आने वाली शिकायतों और उनके निस्तारण की कार्रवाई को आन लाइन करने की व्यवस्था धन के अभाव से घिर गई है। राज्य में तहसील दिवस का जिस तरह आयोजन हो रहा था उसे देखते हुए शिकायतों और उनके निस्तारण से संबंधित सूचनाओं को कंप्यूटरीकृत करने की पहल से यह उम्मीद बंधी थी कि अब आम जनता की समस्याओं का समाधान करने की यह प्रक्रिया सार्थक सिद्ध होगी, लेकिन यह आश्चर्यजनक है कि इसके लिए जरूरी धन का इंतजाम नहीं पा रहा है। भले ही धन की व्यवस्था के संदर्भ में सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा अपने हाथ खड़े कर देने के बाद राज्य सरकार ने एक वैकल्पिक व्यवस्था कर दी हो, लेकिन इस मामले से यही पता चलता है कि आम जनता की समस्याओं की शासन के स्तर पर किस प्रकार अनदेखी ही की जाती है।
इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि उत्तर प्रदेश की आर्थिक स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं, लेकिन यदि शासन अपनी प्राथमिकताओं को सुनिश्चित कर ले तो ऐसे कार्यो के लिए आसानी से धन जुटाया जा सकता है जिनसे आम जनता को लाभ हो। दरअसल लोगों की समस्याओं को दूर करने के मामले में समस्या धन के अभाव की नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी की है। यदि ऐसा नहीं होता तो राज्य सरकार पार्को, स्मारकों और मूर्तियों के निर्माण के लिए अनुपूरक बजट के रूप में पांच अरब रुपये की अतिरिक्त राशि व्यय करने का निर्णय नहीं लेती। क्या यह विडंबना नहीं कि जो सरकार मूर्तियों, स्मारकों और पार्को के निर्माण पर अरबों रुपये खर्च करने में संकोच नहीं कर रही उसे तहसील दिवस के तहत आने वाली शिकायतों और उनके निस्तारण की कार्रवाई को आन लाइन बनाने के लिए जरूरी धनराशि की व्यवस्था करने में परेशानी हो रही है? अगर राज्य सरकार को यह व्यवस्था सभी तहसीलों में लागू करने में आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है तो वह यह कार्य चुनिंदा तहसीलों में भी कर सकती है। इसके साथ ही उसे इस पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि आम जनता की समस्याओं का समाधान एक ही स्थान पर करने के जिस उद्देश्य के साथ तहसील दिवस का आयोजन किया जा रहा है वह कितना पूरा हो पा रहा है?
हा..हा..हाथी के दीँत खाने के छिपे होते हैं।
जवाब देंहटाएंदिखाने के बाहर होते हैं।