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गुरुवार, 24 मई 2012

पेट्रोल का असर

वैसे मैं अपने पोस्टो में अपने बारे में बहुत कम ही कुछ लिखता हूँ ... पर कल से इतना पेट्रोल ... पेट्रोल सुन रहा हूँ कि एक काफी पुरानी हरकत याद आ गयी ... तो सोचा आप सबको भी बता दूं !

हम लोग जहाँ क्रिकेट खेला करते थे वहां पास में दमकल कर्मियों का क्वाटर हुआ करता था जहाँ 2 3 आवारा कुत्ते भी रहा करते थे जो कि जूठन के चक्कर में काफी हद तक पालतू हो गए थे उन दमकल वालों के ! अक्सर ही हमारी गेंद उन क्वाटरों में चली जाया करती थी और काफी बहस और विनती करने के बाद ही मिला करती थी ! पता नहीं क्यों पर उन दमकल वालों को शायद हम लोगो का वहां खेल पसंद नहीं था ... उन्होंने उन कुत्तो में से एक को कुछ ऐसा ट्रेंड किया कि  अब जब भी हमारी गेंद वहां जाए वह कुत्ता हमारी गेंद ले कर बैठ जाया करे और कुछ ही देर में कुछ गेंद के चीथड़े चीथड़े कर दिया करे ! जब ऐसा काफी बार हो गया तो हम सब बड़े परेशान हुए ... अब रोज़ रोज़ गेंद कहाँ से लायी जाए ... किसी को भी रोज़ रोज़ गेंद के लिए पैसे नहीं मिल सकते थे घर से ... ऐसे में  हमारे एक मित्र के चाचा जी ने एक उपाए बताया ... जो हम सब को काफी कारगर लगा ... मित्र बंगाली थे तो उन को ही प्लान का सब से जरुरी काम थमाया गया ... उस कुत्ते के खाने के लिए मछली का इंतज़ाम करना ... वो भी लगातार 2 3 दिन तक ... अब हम लोग जानबूझ कर गेंद उस कुत्ते के आगे डालने लगे ... कुत्ता हाल गेंद लपक लेता पर जैसे ही वो गेंद पर दांत लगाने को होता हम लोग उसके आगे मछली डाल देते ... वह गेंद छोड़ देता और बड़े चाव से मछली खाने बैठ जाता ... 3 दिन रोज़ ऐसा कर के हम लोगो ने उसको इतना ट्रेंड कर दिया कि  अब वो इंतज़ार करने लगा था गेंद के बदले मछली का ... यहाँ प्लान का दूसरा चरण शुरू करना था हम लोगो को ... जब यह पक्का हो गया कि अब यह कुत्ता गेंद नहीं फाडेगा हम लोगो ने अपने प्लान के अनुसार उस कुत्ते को मछली 
दिखा कर अपने पास बुलाया और हम में से दो उसको मछली खिलने लगे और बाकी चुपचाप उसके पीछे पहुँच गए 
जहाँ हमारे पास एक बड़ी सा इंजेक्शन था जिस में पेट्रोल था ... कुत्ता मछली में इतना मगन था कि  उसको पता ही नहीं चला कब हम लोगो ने बड़े आराम से उसके पूरे पिछवाड़े पर पेट्रोल का छिडकाव कर दिया वो भी पूरे काएदे से ... थोड़ी ही देर में पेट्रोल ने अपना काम शुरू कर दिया और कुत्ते को भी उसका असर पता चलने लगा ... कभी वो गोल गोल घुमने लगता कभी अपनी दम काटने लगता पर पेट्रोल का असर पूरे शबाब पर था ... बेचारा कुत्ता लगभग 1 घंटा काफी परेशान रहा साथ साथ उसके बाकी साथी भी जो यह नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर माजरा है क्या  ??? कुत्ते पर तरस तो अब जब यह लिख रहा हूँ तब भी आ रहा है पर यह भी सत्य है कि  दोबारा उस कुत्ते ने तो क्या किसी कुत्ते ने हम लोगो की गेंद पर अपना कब्ज़ा ज़माने की कोशिश नहीं की !

सोच रहा हूँ क्या ऐसा कुछ इस सरकार के साथ नहीं किया जा सकता... नाक में दम तो इसने भी कर ही रखा है सब के ... 
वैसे आपकी क्या राय है ???

रविवार, 20 मई 2012

बिपिन चंद्र पाल जी की ८० वी पुण्यतिथि पर विशेष

बिपिन चंद्र पाल क्रांतिकारी तिकड़ी 'लाल', 'बाल', 'पाल' के अहम किरदार थे जिन्होंने ब्रितानिया हुकूमत की चूलें हिलाकर रख दी थीं। उन्हें गांधी जी के प्रथम आलोचकों में से एक माना जाता है।
बिपिन चंद्र पाल का जन्म सात नवंबर 1858 को हबीबगंज जिले के पोइल गांव में हुआ था, जो वर्तमान में बांग्लादेश में पड़ता है। वह एक शिक्षक, पत्रकार, लेखक और मशहूर वक्ता होने के साथ ही एक क्रांतिकारी भी थे जिन्होंने लाला लाजपत राय [लाल] और बाल गंगाधर तिलक [बाल] के साथ मिलकर अंग्रेजी शासन से जमकर संघर्ष लिया। इतिहासकार सर्वदानंदन के अनुसार इन तीनों क्रांतिकारियों की जोड़ी आजादी की लड़ाई के दिनों में 'लाल', 'बाल', 'पाल' के नाम से मशहूर थी। इन्हीं तीनों ने सबसे पहले 1905 में अंग्रेजों के बंगाल विभाजन का जमकर विरोध किया और इसे एक बड़े आंदोलन का रूप दे दिया।
पाल राष्ट्रवादी पत्रिका 'वंदे मातरम' के संस्थापक भी थे। उन्होंने जब एक विधवा को अपनी जीवनसंगिनी बनाया तो घरवालों से उन्हें जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा। बाल गंगाधर तिलक की 1907 में गिरफ्तारी और ब्रिटिश सरकार द्वारा दमन की कार्रवाई शुरू किए जाने के बाद वह इंग्लैंड चले गए, जहां वह 'इंडिया हाउस' से जुड़े और 'स्वराज' पत्रिका की स्थापना की। हालांकि 1909 में मदन लाल ढींगरा द्वारा कर्जन वाइली को मौत के घाट उतार दिए जाने के बाद यह पत्रिका बंद हो गई।
पत्रिका के बंद हो जाने से पाल को लंदन में मानसिक तनाव के दौर से गुजरना पड़ा और नतीजतन वह 'कट्टर चरण' से पूरी तरह दूर हो गए। उन्होंने आजाद देशों का एक संघ बनाने की परिकल्पना का सूत्रपात किया, जो किसी एक देश की सीमा से काफी परे हो। पाल गांधी जी की सबसे पहले आलोचना करने वालों में शामिल थे। जब गांधी जी भारत पहुंचे तब भी उन्होंने उनकी आलोचना जारी रखी। 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र में अपने अध्यक्षीय भाषण में पाल ने गांधी जी की खुलेआम तीखी आलोचना की।
उन्होंने गांधी जी की आलोचना करते हुए कहा कि, "आप जादू चाहते हैं। मैंने आपको तर्क देने की कोशिश की। आप मंत्रम चाहते हैं, मैं कोई ऋषि नहीं हूं जो मंत्रम दे सकूं। जब मैं सच जानता हूं तो मैंने कभी आधा सच नहीं बोला। " इसके लिए पाल को भी राष्ट्रवादियों की आलोचना का शिकार होना पड़ा। पाल 1922 में राजनीतिक जीवन से अलग हो गए और फिर कभी इस तरफ मुड़कर नहीं देखा। 20 मई 1932 को उनका निधन हो गया।
प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1958 में पाल की जन्मशती पर उन्हें ऐसा महान व्यक्ति करार दिया जिसने राजनीतिक और धार्मिक दोनों ही क्षेत्रों में उच्चस्तरीय भूमिका निभाई। पाल को भारत में 'क्रांतिकारी विचारों का जनक' भी कहा जाता है।

बिपिन चंद्र पाल जी की ८० वी पुण्यतिथि पर हम सभी की ओर से शत शत नमन और विनम्र श्रद्धांजलि !

मंगलवार, 15 मई 2012

अमर शहीद सुखदेव जी के १०५ वे जन्मदिन पर विशेष

भारत माँ के इस सच्चे सपूत सुखदेव को उनके १०५ वे जन्मदिन के अवसर पर हम सब की ओर से शत शत नमन !!
वन्दे मातरम !!
 
इंकलाब ज़िंदाबाद !!

रविवार, 13 मई 2012

|| माँ ||

|| माँ ||

बेसन की सौधी रोटी पर
खट्टी चटनी - जैसी माँ
याद आती है चौका - बासन
चिमटा , फुकनी - जैसी माँ ||

बान की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोयी आधी जागी
थकी दोपहरी - जैसी माँ ||

चिडियों की चहकार में गूँजे
राधा - मोहन , अली - अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुण्डी - जैसी माँ ||

बीवी , बेटी , बहन , पडोसन
थोडी - थोडी सी सब में
दिन भर एक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी - जैसी माँ ||

बाँट के अपना चहेरा , माथा
आँखे जाने कहाँ गई
फटे पुराने एक एल्बम में
चंचल लड़की - जैसी माँ ||


----- निदा फाजली .



मेरी माँ और हर माँ को समर्पित |



|| वन्दे मातरम ||

शुक्रवार, 11 मई 2012

सआदत हसन मंटो को उनके १०० वे जन्मदिन पर हमारा सलाम

नेट पर खबरे पड़ते हुए जब इस खबर पर नज़र पड़ी तो बड़ा अफसोस हुआ !

कालजयी कहानीकार सआदत हसन मंटो ने लुधियाना के समराला के छोटे से गांव पपड़ौदी का नाम देश-विदेश में रोशन किया। 11 मई, 1912 को जन्में मंटो की आज जन्म शताब्दी है, पर विडंबना यह है कि उनको उनके गांव ने ही भुला दिया है। गांव में उनकी स्मारक के नाम पर सिर्फ एक मंटो यादगारी लाइब्रेरी है।
कुछ बुजुर्गो को छोड़कर गांव का कोई भी व्यक्ति मंटो के बारे में नहीं जानता। सरकार ने भी आज तक इस प्रसिद्ध कहानीकार की यादगारी के लिए कोई कदम नहीं उठाया। यही नहीं, जिस मकान में मंटो का जन्म हुआ, वह वर्ष 1962 में ही नीलाम हो चुका है। अब वहां गांव के पूर्व सरपंच राम सिंह का आशियाना है। राम सिंह बताते हैं कि उनके दादा ने सरकार से यह मकान खरीदा था। गांव में एक भी ऐसी जगह नहीं, जहां पर मंटो का नाम तक लिखा हो। मंटो का जन्म मियां गुलाम हसन के घर हुआ था। विभाजन के बाद मंटो अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चले गए थे। पंजाबी साहित्य सभा [नई दिल्ली] की ओर से गांव के गुरुद्वारा साहिब में मंटों की यादों को सहेजने के लिए बेशक लाइब्रेरी तो बना दी गई है, लेकिन गुरुद्वारा साहिब के ग्रंथी के कमरे की एक शेल्फ पर चलने वाली इस लाइब्रेरी में मंटो की मात्र दो किताबें ही हैं।

 इस उम्मीद के साथ कि देर से ही सही पर अब सरकार अपनी नींद से जागेगी और इस कालजयी कहानीकार की यादों को सहेजने मे कुछ रुचि लेगी ...

सआदत हसन मंटो को उनके १०० वे जन्मदिन पर हमारा सलाम !

बुधवार, 9 मई 2012

अजय भाई ... हैप्पी बर्थड़े ...

का जी ... सुन रहे है न ... आज बर्थड़े है ... हाँ हाँ वही हैप्पी वाला ... का कहे किसका ... हद है भई ... इतना भी बताना होगा ... आप लोग भी न ... कुछों याद नहीं रखते है ... भक ... 

अरे आज अपने झा जी का बर्थड़े है भई ... 


वैसे हम जानते थे आपको याद नहीं होगा ... इस लिए यह पोस्ट डाल रहे है ... काहे पाबला जी तो नाराज़ है आप सब से नहीं तो वो ही बता देते आपको ... अपने जन्मदिन वाले ब्लॉग मे !

अच्छा बहुत हुआ फालतू बात ... अब सब ज़ोर से बोलिए तो ... 


अजय भाई ... हैप्पी बर्थड़े ... 

शनिवार, 5 मई 2012

हैप्पी बर्थड़े ... बुआ ...

हैप्पी बर्थड़े ... बुआ ! यह कभी मत सोचना कि मैं भूल गया ... मुझे सब याद है ... तुम्हें तो मालूम है ... हर एक को हर बात नहीं बताता मैं ... कभी कोई इशारा तो दो कैसी हो ... कहाँ हो ... यकीन मानो सिर्फ एक इशारे से सब समझ लूँगा ... बस एक इशारा ... मैं इंतज़ार करूंगा ... तब तक ... 
Happy Birthday ... Bua ... I MISS YOU ...

ब्लॉग आर्काइव

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