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शनिवार, 8 अगस्त 2009

यूनिक आइडेंटिफिकेशन कार्ड अथारिटी आफ इंडिया की स्थापना -- एक महत्वाकांक्षी योजना

पिछले दिनों संप्रग सरकार ने यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर अर्थात नागरिकों को विशिष्ट पहचान संख्या जारी करने की महत्वाकांक्षी योजना की दिशा में एक ठोस कदम बढ़ाते हुए इससे संबंधित प्राधिकरण का गठन कर दिया और सूचना तकनीक के धुरंधर नंदन नीलेकणि को इसकी जिम्मेदारी सौंप दी। इस परियोजना के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसकी तुलना राजीव गांधी के समय सैम पित्रोदा की अध्यक्षता में बने टेक्नोलाजी मिशन से की जा रही है, जिसने देश में कंप्यूटर क्रांति ला दी थी और जिसकी वजह से देश आज दुनिया का आईटी महाशक्ति बन पाया।

यूनिक आइडेंटिफिकेशन कार्ड अथारिटी आफ इंडिया की स्थापना कई मामलों में पहला कदम है। एक तरह से यह पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप की शुरुआत है, जो अमेरिका या यूरोप आदि देशों में तो सामान्य बात है, लेकिन भारत में यह नए तरह का प्रयोग है। दूसरे, परियोजना प्रमुख नंदन नीलेकणि को प्राइवेट क्षेत्र से प्रतिभाओं को चुनने की आजादी भी होगी। इस परियोजना के तहत समस्त भारतीय नागरिकों को एक यूनिक आइडेंटिफिकेशन कार्ड जारी किया जाएगा, जो उनका पहचान-पत्र होगा। कार्ड में नाम, लिंग, पता, वैवाहिक स्थिति, फोटो, पहचान चिह्न के साथ-साथ एक बायोमीट्रिक पहचान भी होगी। बायोमीट्रिक पहचान के तहत फिंगर प्रिंट, चेहरे का डिजिटाइज्ड स्कैन या आंख की पुतली का स्कैन होगा। इस परियोजना में डेढ़ लाख करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। अगले कुछ वषों में सबको कार्ड उपलब्ध कराने की योजना है। अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो दुनिया में अब तक सिर्फ छह देशों द्वारा ही इस प्रकार के राष्ट्रीय पहचान कार्ड दिए जा रहे हैं। ब्रिटेन, साइप्रस, जिब्राल्टर, हांगकांग, मलेशिया और सिंगापुर जैसे देशों में पहचान पत्र जारी किए जा चुके हैं।

अमेरिका में राष्ट्रीय पहचान कार्ड नहीं है। वहा एक राष्ट्रीय पहचान संख्या चलती है, जिसे सोशल सिक्योरिटी नंबर कहते हैं। वहा अलग-अलग राज्यों द्वारा अपने-अपने पहचान कार्ड जारी किए जाते हैं, लेकिन इससे कई तरह की समस्याएं भी पैदा होती हैं। एक तो अलग-अलग राज्यों द्वारा जारी काडरें से भ्रम की संभावना रहती है, साथ ही सोशल सिक्योरिटी नंबर का कई बार दूसरे लोग गलत इस्तेमाल कर ले जाते हैं, क्योंकि किसी बायोमीट्रिक पहचान-पत्र के अभाव में व्यक्ति की विशिष्ट संख्या और उसकी पहचान में कोई सीधा संबंध स्थापित करना मुश्किल हो जाता है। इस संदर्भ में इंग्लैंड या अन्य देशों का अनुकरण करना बेहतर होगा। इस नए तरह के पहचान-पत्र या कार्ड का भारत के लिए दूरगामी महत्व होगा। एक तो इससे सरकारी योजनाओं में होने वाले घपलों पर रोक लगेगी। दूसरे, योजनाओं का लाभ सही लोगों को मिल पाएगा। उपरोक्त तथ्य अपने आप में भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था के लिए क्रांतिकारी साबित होंगे। सर्वविदित है कि भ्रष्टाचार के कारण अरबों रुपयों की हमारी योजनाओं का लाभ गरीब लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है। नरेगा जैसे कार्यक्रमों को सही रूप से चलाने में ये पहचान कार्ड बहुत सहायक होंगे। इस कार्ड से गरीब लोगों को आर्थिक लाभ होगा, उनकी क्रयशक्ति बढे़गी और अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी। एक तरफ जहां इससे उच्च कार्यकुशलता और पारदर्शिता बढे़गी तो दूसरी तरफ सुरक्षा की दृष्टि से भी ये पहचान-पत्र बहुत उपयोगी साबित होंगे। इससे अवाछित पाकिस्तानी और बाग्लादेशी लोगों की घुसपैठ को रोका जा सकेगा वहीं आतंकवादियों की पहचान भी की जा सकेगी। इसके अतिरिक्त इस कार्यक्रम के तहत तैयार होने वाले राष्ट्रीय डाटा बेस से शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए विभिन्न नई योजनाओं को शुरू करने और लागू करने में भी मदद मिलेगी। आर्थिक मंदी से उबरने में भी यह परियोजना सहायक सिद्ध होगी।

अमेरिका और दुनिया में छाई आर्थिक मंदी से भारतीय आईटी क्षेत्र को भी धक्का लगा है। काफी संख्या में लोग बेरोजगार हुए हैं। एक अध्ययन के अनुसार इस परियोजना से घरेलू आईटी उद्योग को काफी बढ़ावा मिलेगा। अनुमान है कि अगले तीन सालों में आईटी क्षेत्र में देश में एक लाख से ज्यादा अतिरिक्त रोजगार अपलब्ध होंगे, जिनसे सकल घरेलू उत्पाद में अरबों रुपयों की वृद्धि हो सकेगी। भ्रष्टाचार की संभावित कमी से होने वाले आय को भी अगर इसमें जोड़ दिया तो यह राशि खरबों रुपये हो जाएगी। यह कोरी कल्पना नहीं है। कम आबादी और कम भ्रष्टाचार वाले इंग्लैंड के गृह विभाग के अनुमानों के अनुसार राष्ट्रीय पहचान कार्ड से उनकी आय में प्रति वर्ष 65 करोड़ से एक अरब पौंड इजाफा होने की संभावना है। फिलहाल यह कहा जा रहा है कि यूनिक आइडेंटिफिकेशन कार्ड अथारिटी आफ इंडिया शुरू में एक यूनिक संख्या ही प्रदान करेगा, जिसके द्वारा अन्य सूचनाओं की जानकारी प्राप्त की जा सकेगी। बाद में अलग-अलग मंत्रालय और विभाग अपने-अपने हिसाब से अलग-अलग कार्ड जारी कर सकते हैं।

अपने देश में जहां पहले ही लगभग बीस तरह के पहचान-पत्र चल रहे हैं उनमें और भी कई तरह के कार्ड जुड़ने से भ्रम की स्थिति पैदा होगी। यह अमेरिका के सोशल सिक्योरिटी नंबर सरीखा हो जाएगा, जहां कोई एक राष्ट्रीय पहचान पत्र नहीं हैं। इसके बजाय उचित यह होगा कि इंग्लैंड की तरह विशिष्ट पहचान संख्या के साथ-साथ पहचान कार्ड भी जारी हों। इससे न केवल अनेक तरह के कार्ड रखने के झझट से मुक्ति मिलेगी, बल्कि सरकार के लिए यह ज्यादा आसान होगा। सरकार के समय, धन, ऊर्जा में बचत होगी। देखना यह है कि नंदन नीलेकणि क्या दृष्टिकोण अपनाते हैं? यह भी देखने वाली बात होगी कि हमारी ढुलमुल और भ्रष्ट नौकरशाही इसको लेकर किस तरह का रवैया अपनाती है, क्योंकि इस परियोजना से सबसे ज्यादा धक्का उन्हीं को लगना है।

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