भारतीय वैज्ञानिकों की चांद छूने की तमन्ना को झटका लगा है। यह तमन्ना पूरी करने के लिए भारत का पहला मानव रहित अंतरिक्ष यान चंद्रयान-1 पिछले साल 22 अक्टूबर को चंद्रमा के लिए रवाना हुआ था, लेकिन 312 दिन बाद शनिवार [29 अगस्त, 2009] को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो से उसका संपर्क टूट गया। इसके साथ ही यह अभियान खत्म हो गया और चंदा मामा दूर के ही रह गए।
चंद्रयान-1 परियोजना के निदेशक एम. अन्नादुरई ने कहा, 'यह अभियान खत्म हो गया है। अंतरिक्ष यान से हमारा संपर्क टूट गया है।' हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि चंद्रयान-1 तकनीकी रूप से अपना शत-प्रतिशत काम कर चुका था और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यह अपना 95 फीसदी तक काम पूरा कर चुका था। पर यह भी एक तथ्य है कि चंद्रयान को अभी एक साल से भी ज्यादा समय कक्षा में रहना था। इतना पहले ही इसरो से उसका संपर्क टूट जाने के चलते इस महत्वाकांक्षी योजना को तो झटका लगा ही, इसरो द्वारा 2013 में 425 करोड़ की लागत से भेजे जाने वाले चंद्रयान-2 अभियान के भी अधर में लटक जाने का खतरा बढ़ गया है। चंद्रयान-2 के तहत चंद्रमा पर भारतीय अंतरिक्ष यान उतारने की योजना थी।
अप्रैल में भी आई थी खराबी
गत 26 अप्रैल को यान में एक खराबी आई थी, लेकिन उसे ठीक कर दिया गया था। यान की दिशा तय करने वाले यंत्र गलत ढंग से काम करने लगे थे और इसका परिचालन प्रबंधन करने वाली एक इकाई ने काम करना बंद कर दिया था। इस खराबी को दूर करने के लिए इसरो ने एक नई तकनीक ईजाद की थी, जो सफल रही थी और अभियान का काम संतोषजनक ढंग से चल रहा था। पर शनिवार तड़के 1.30 बजे चंद्रयान से रेडियो संपर्क टूट गया और यह अंतरिक्ष में दिशाहीन होकर भटकने लगा। बेंगलूर के पास ब्यालालू स्थित दीप स्पेस नेटवर्क को इस यान से रात्रि 12.25 बजे तक आंकड़े मिले। इसके बाद ऐसा क्या हुआ जो यान से संपर्क टूट गया, इसका पता लगाने के लिए इसरो के वैज्ञानिक यान से मिले आंकड़ों का गहन विश्लेषण कर रहे हैं। इसरो प्रमुख जी. माधवन नायर ने कहा, 'हमें सच्चाई स्वीकार करनी होगी, पर कल के लिए बेहतर मौके मिलेंगे।'
312 दिन का सफर
अंतरिक्ष में 312 दिन के सफर में चंद्रयान ने चंद्रमा की कक्षा के 3400 से भी अधिक चक्कर लगाए। इस पर लगे परिष्कृत सेंसरों के माध्यम से बड़े पैमाने पर आंकड़े मिले हैं। इस यान पर इलाके का मानचित्र बनाने वाला कैमरा लगा था। इस पर हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजर और चंद्रमा पर मौजूद खनिज पदार्थ का पता लगाने वाला उपकरण भी लगा था।
पिछले माह इसरो ने कहा था कि चंद्रयान ने चंद्रमा की सतह की 70 हजार से भी अधिक तस्वीरें भेजी हैं। इनके माध्यम से चंद्रमा पर मौजूद पहाड़ों और गड्ढों का अद्भुत नजारा देखा जा सका। खास कर चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र, जहां हमेशा छाया रहती है, वहां के गड्ढों के दृश्य भी हैं। इसरो ने 17 जुलाई को कहा था कि चंद्रयान चांद पर मौजूद रासायनिक और खनिज पदार्थो के भी आंकड़े एकत्र कर रहा था।
बीते 21 अगस्त को इसरो ने नासा के साथ मिल कर एक खास प्रयोग भी किया था। इसके बारे में इसरो ने कहा था कि इस प्रयोग से चंद्रमा पर उत्तरी धु्रव के पास स्थायी रूप से छाया वाले क्षेत्र के गड्ढों में बर्फ की मौजूदगी की संभावना के बारे में अतिरिक्त जानकारी मिल पाएगी।
.. तो ये था चंद्रयान
चंद्रयान-1 अंतरिक्ष यान को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से देशी धु्रवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान [पीएसएलवी]-सी11 से 22 अक्टूबर, 2008 को रवाना किया गया था।
भारत के इस पहले अभियान की कुल लागत 3.86 अरब रुपये थी।
क्यूबाइड आकार के चंद्रयान में एक तरफ सौर पैनल लगे थे। चंद्रयान सौर ऊर्जा से संचालित था।
चंद्रयान अपने साथ 11 पे लोड [वैज्ञानिक उपकरण] ले गया था। इनमें से पांच पूरी तरह भारत में बने और विकसित थे। तीन यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी [ईएसए], दो अमेरिका और एक बुल्गारिया का था।
चंद्रयान-1 के प्रक्षेपण के साथ ही भारत उन छह देशों में शुमार हो गया था, जिनके नाम चांद पर मिशन भेजने का रिकार्ड दर्ज है। यह रिकार्ड अपने नाम करने वाले हैं- अमेरिका, रूस, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, चीन और जापान।
चंद्रयान के चरण
पीएसएलवी ने चंद्रयान को पृथ्वी से 250 किलोमीटर दूर चंद्रमा की निकटतम दीर्घ वृत्ताकार प्रारंभिक कक्षा में 1102 सेकेंड में पहुंचाया।
क्रमिक रूप से कुछ दिन में यह पृथ्वी से अधिकतम 23 हजार किलोमीटर दूर चंद्रमा की एक अन्य कक्षा में पहुंचा और नवंबर के पहले सप्ताह में यहां से निकट 100 किलोमीटर की चंद्रमा की तीसरी कक्षा में स्थापित हो गया।
इसके बाद मून इंपैक्ट प्रोब [एमआईपी] नाम के पे लोड को चंद्रयान से अलग कर दिया गया। यह जो चंद्रमा के एक चुने गए खास क्षेत्र से टकराया। यहां इसके कैमरे और अन्य उपकरण चालू कर दिए गए। इसके साथ ही अभियान का संचालन चरण शुरू हो गया।
इसके बाद इसे दो साल तक अपने शेष उपकरणों के साथ वैज्ञानिकों के अलावा बच्चों, प्रेमी-प्रेमिकाओं, साहित्यकारों, फिल्मकारों व ज्योतिषियों के सर्वाधिक प्रिय रहे धरती के इस उपग्रह के रहस्यों से पर्दा उठाने का काम करना था।
नहीं कराया था चंद्रयान का बीमा
इसरो को चंद्रमा पर देश के पहले मानव रहित मिशन 'चंद्रयान-1' की कामयाबी का पूरा भरोसा था। शायद यही वजह रही होगी कि इसरो ने न तो अंतरिक्ष यान का बीमा कराया था और न ही प्रक्षेपण यान का।
कुल 386 करोड़ रुपये की इस परियोजना में अकेले चंद्रयान की कीमत 186 करोड़ रुपये है। 44 मीटर लंबे पीएसएलवी की लागत सौ करोड़ रुपये है। इसरो ने इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क [डीएसएन] स्थापित करने के लिए सौ करोड़ रुपये खर्च किए थे।
माधवन के लिए दूसरा बड़ा झटका
वर्ष 2006 में 10 जुलाई को इसरो अध्यक्ष जी. माधवन नायर के दामन पर जीएसएलवी-एफ2 के असफल मिशन से जो दाग लगा था, वह पिछले साल 22 अक्टूबर को चंद्रयान-1 की कामयाब उड़ान के साथ धुल गया था। पर बीच में ही अभियान की नाकामी ने एक बार फिर उस दाग को उभार दिया है। वर्ष 2003 में के. कस्तूरीरंगन से इसरो की कमान संभालने वाले माधवन के लिए यह दूसरा बड़ा झटका है।
केरल विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग में स्नातक माधवन ने मुंबई स्थित भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में प्रशिक्षण हासिल किया। उन्होंने अपनी पहली नौकरी वर्ष 1967 में थुम्बा राकेट प्रक्षेपण स्थल से शुरू की। तब से अब तक उन्होंने कामयाबी के कई झंडे गाड़े हैं, लेकिन ये दो बड़ी नाकामी उन्हें ताउम्र सताती रहेगी।
चांद की पड़ताल में अहम पड़ाव
चंद्रमा की पड़ताल से जुड़े कुछ अहम पड़ाव:
-2 जनवरी 1959 : सोवियत संघ ने सबसे पहले चंद्रमा की कक्षा पर लूना-1 नामक यान भेजा। 14 सितंबर 1959 को लूना-2 चंद्रमा की सतह से टकराने वाला पहला मानव निर्मित अंतरिक्ष यान बना।
-26 अप्रैल 1962 : अमेरिकी अंतरिक्ष यान रेंजर 4 ने चंद्रमा की सतह की तस्वीरें भेजीं।
-3 फरवरी 1966 : सोवियत संघ का लूना-9 चंद्रमा की सतह पर साफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला अंतरिक्ष यान बना।
-20 जुलाई 1969 : अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग और एडविन ने पहली बार चंद्रमा पर कदम रखे।
-24 जनवरी 1990 : जापान के अंतरिक्ष यान हितेन से एक छोटा उपग्रह भविष्य के अध्ययनों संबंधी जानकारी जुटाने के लिए भेजा गया। 10 अप्रैल 1993 को इसे जानबूझकर चंद्रमा की सतह से टकराया गया।
अन्य अभियान
यान - देश - लांच तिथि
हितेन - जापान - 24 जनवरी 1990
क्लीमेंटाइन - अमेरिका : 25 जनवरी 1994
एशियासैट 3/एचजीएस-1 - चीन व अमेरिका - 24 दिसंबर 1997
लूनर प्रास्पेक्टर - अमेरिका - 7 जनवरी 1998
स्मार्ट-1 - अमेरिका - 27 सितंबर 2003
कागुया - जापान - 14 सितंबर 2007
चांग ई-1 - चीन - 24 अक्टूबर 2007
चंद्रयान-1 - भारत - 22 अक्टूबर 2008