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इन्साफ की डगर पर, नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा, उस ओर जा मिलेंगे।।
दिल में घुसा हुआ है, दल-दल दलों का जमघट।
संसद में फिल्म जैसा, होता है खूब झंझट।
फिर रात-रात भर में, आपस में गुल खिलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा उस ओर जा मिलेंगे।।
गुस्सा व प्यार इनका, केवल दिखावटी है।
और देश-प्रेम इनका, बिल्कुल बनावटी है।
बदमाश, माफिया सब इनके ही घर पलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा, उस ओर जा मिलेंगे।।
खादी की केंचुली में, रिश्वत भरा हुआ मन।
देंगे वहीं मदद ये, होगा जहाँ कमीशन।
दिन-रात कोठियों में, घी के दिये जलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा, उस ओर जा मिलेंगे।।
----डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
शिवम् मिश्रा जी!
जवाब देंहटाएंआपको मेरी रचना पसन्द आई।
प्रकाशित करने के लिए,
धन्यवाद!