हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की जानी मानी गायिका गंगूबाई हंगल का संक्षिप्त बीमारी के बाद एक अस्पताल में मंगलवार को निधन हो गया। डाक्टर आशो कलामदनी ने बताया कि गंगूबाई [97] की हालत नाजुक होने पर कल रात जीवन रक्षक प्रणाली पर रखा गया था। आज सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली।
गंगूबाई के पोते मनोज हंगल ने बताया कि उनका निधन सुबह सात बजकर दस मिनट पर हुआ। गंगूबाई अपने पीछे दो पुत्र और एक पुत्री छोड़ गई हैं।
गंगूबाई को तीन जून को अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन वह 12 जुलाई को घर आ गई थी। दो दिन बाद उन्हें सांस लेने में दिक्कत के बाद दोबारा अस्पताल में भर्ती कराया गया था। किराना घराने की खयाल गायकी की पुरोधा रही गंगूबाई का जन्म कर्नाटक के धारवाड़ में एक संगीतज्ञ परिवार में हुआ था।
पद्म भूषण, पद्म विभूषण और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित गंगूबाई ने अपनी सुरीली आवाज से छह दशकों से भी अधिक समय तक संगीतप्रेमियों को सम्मोहित रखा।
भारतीय शास्त्रीय संगीत की नब्ज पकड़कर और किराना घराना की विरासत को बरकरार रखते हुए परंपरा की आवाज का प्रतिनिधित्व करने वाली गंगूबाई हंगल ने लिंग और जातीय बाधाओं को पार कर व भूख से लगातार लड़ाई करते हुए भी उच्च स्तर का संगीत दिया। उन्होंने संगीत के क्षेत्र में आधे से अधिक सदी तक अपना योगदान दिया।
गंगूबाई [97] का जन्म एक केवट परिवार में हुआ था। उनके संगीत जीवन के शिखर तक पहुंचने के बारे में एक अतुल्य संघर्ष की कहानी है। उन्होंने आर्थिक संकट, पड़ोसियों द्वारा जातीय आधार पर उड़ाई गई खिल्ली और भूख से लगातार लड़ाई करते हुए भी उच्च स्तर का संगीत दिया।
कर्नाटक के एक गांव हंगल की रहने वाली गंगूबाई को बचपन में अक्सर जातीय टिप्पणी का सामना करना पड़ा और उन्होंने जब गायकी शुरू की तब उन्हें उन लोगों ने 'गानेवाली' कह कर पुकारा जो इसे एक अच्छे पेशे के रूप में नहीं देखते थे।
गंगूबाई हंगल ने कई बाधाओं को पार कर अपनी गायिकी को एक मुकाम तक पहुंचाया और उन्हें पद्म भूषण, पद्म विभूषण, तानसेन पुरस्कार, कर्नाटक संगीत नृत्य अकादमी पुरस्कार और संगीत नाटक अकादमी जैसे पुरस्कारों से नवाजों गया।
पुरानी पीढ़ी की एक नेतृत्वकर्ता गंगूबाई ने गुरु-शिष्य परंपरा को बरकरार रखा। उनमें संगीत के प्रति जन्मजात लगाव था और यह उस वक्त दिखाई पड़ता था जब अपने बचपन के दिनों में वह ग्रामोफोन सुनने के लिए सड़क पर दौड़ पड़ती थी और उस आवाज की नकल करने की कोशिश करती थी।
अपनी बेटी में संगीत की प्रतिभा को देखकर गंगूबाई की संगीतज्ञ मां ने कर्नाटक संगीत के प्रति अपने लगाव को दूर रख दिया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनकी बेटी संगीत क्षेत्र के एच कृष्णाचार्य जैसे दिग्गज और किराना उस्ताद सवाई गंधर्व से सर्वश्रेष्ठ हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीखे।
गंगूबाई ने अपने गुरु सवाई गंधर्व की शिक्षाओं के बारे में एक बार कहा था कि मेरे गुरूजी ने यह सिखाया कि जिस तरह से एक कंजूस अपने पैसों के साथ व्यवहार करता है, उसी तरह सुर का इस्तेमाल करो, ताकि श्रोता राग की हर बारीकियों के महत्व को संजीदगी से समझ सके।
संगीत के प्रति गंगूबाई का इतना लगाव था कि कंदगोल स्थित अपने गुरु के घर तक पहुंचने के लिए वह 30 किलोमीटर की यात्रा ट्रेन से पूरी करती थी और इसके आगे पैदल ही जाती थी। यहां उन्होंने भारत रत्न से सम्मानित पंडित भीमसेन जोशी के साथ संगीत की शिक्षा ली। किराना घराने की परंपरा को बरकार रखने वाली गंगूबाई इस घराने और इससे जुड़ी शैली की शुद्धता के साथ किसी तरह का समझौता किए जाने के पक्ष में नहीं थी।
गंगूबाई को भैरव, असावरी, तोड़ी, भीमपलासी, पुरिया, धनश्री, मारवा, केदार और चंद्रकौंस रागों की गायकी के लिए सबसे अधिक वाहवाही मिली। उन्होंने एक बार कहा था कि मैं रागों को धीरे-धीरे आगे बढ़ाने और इसे धीरे-धीरे खोलने की हिमायती हूं ताकि श्रोता उत्सुकता से अगले चरण का इंतजार करे। उनके निधन के साथ संगीत जगत ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के उस युग को दूर जाते हुए देखा, जिसने शुद्धता के साथ अपना संबंध बनाया था और यह मान्यता है कि संगीत ईश्वर के साथ अंतरसंवाद है जो हर बाधा को पार कर जाती है।
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सभी मैनपुरी वासीयों की आप को विनम्र श्रद्धांजलि |
भाई,
जवाब देंहटाएंसच है, गंगुबाई हंगल का गुज़र जाना, एक पूरी शताब्दी के फलक पर फैली हुई ख़याल गायकी का व्यतीत हो जाना है. उनके महाप्रस्थान पर आपका उन्हें स्मरण-नमन करना मुझे भी श्रद्धानत करता है. इश्वर उन्हें शांति दें. आपके लिए 'साधुवाद' शब्द कम पड़ रहा है. सप्रीत... आ.