जनपद इन दिनों स्कूल फोबिया का शिकार है। हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट कक्षाओं से जुडे़ विद्यालयों में प्रवेश को लेकर हालात अच्छे नहीं हैं। कक्षा 6, 7, 8 में तो प्रवेश आसानी से मिल रहे हैं मगर कक्षा 9 और 11 में प्रवेश को लेकर बड़ी मारामारी है। इस मारामारी का कोई इलाज अभिभावकों को समझ में नहीं आ रहा। हाईस्कूल और इंटरमीडिएट में नकल के परिणाम स्वरूप जिले भर में शिक्षा का स्तर नीचे चला गया है। इसलिये अभिभावक भी अच्छे स्कूलों की तलाश में घूम रहे हैं। मगर अच्छे तो छोड़िये बदनाम विद्यालयों में भी प्रवेश की समस्या पैदा हो गयी। यह समस्या ही इन विद्यालयों के लिये गुड़ का पुआ बन चुकी है।
सरकार ने इंटर कालेजों के लिये फीस की दरें निर्धारित कर रखी हैं। सरकार द्वारा जारी वर्ष 2009-10 का शासनादेश देखें तो सरकार ने जिले के राजकीय और वित्तविहीन विद्यालयों के लिये कक्षा 6 से 12 तक के लिये फीस की दरों को निर्धारित कर दिया है। पर साहब इन्हे मानता कौन है ? जैसी पार्टी देखी वैसी फीस या फ़िर डोनेशन तो है ही | चलने दो शिक्षा का व्यापार !!!
बहुत अच्छा लिखा है आपने। बिल्कुल सामायिक है।
जवाब देंहटाएंवाकई, शिक्षा का व्यापारिकरण हो गया है.
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