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शुक्रवार, 31 जुलाई 2009

१५० वी पोस्ट :- अरुचिकर राजनीति


मुख्यमंत्री पद पुन: संभालने की राज्यपाल की सलाह पर उमर अब्दुल्ला का निर्णय कुछ भी हो, इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि पीडीपी का उद्देश्य सेक्स स्कैंडल की सच्चाई सामने लाना नहीं, बल्कि अपने संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थ पूरे करना है। आखिर यह एक तथ्य है कि जम्मू-कश्मीर को शर्मसार करने वाला यह कांड उस समय घटा जब शासन की बागडोर पीडीपी के हाथों में थी। इस दल को सबसे पहले यह बताना चाहिए कि उसकी नाक के नीचे ऐसा जघन्य कृत्य क्यों हुआ? इस संदर्भ में इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि इस सेक्स स्कैंडल में तत्कालीन राज्य सरकार के मंत्री और अनेक वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल थे। क्या यह विचित्र नहीं कि पीडीपी सरकार ने अपने स्तर पर इस घृणित कांड की जांच कराना भी जरूरी नहीं समझा था और अब वह सीबीआई की कथित जांच का हवाला देकर आम जनता को गुमराह करने में लगी है। वस्तुत: यह एक और उदाहरण है जिससे इस आशंका को बल ही मिलता है कि पीडीपी अपने संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थो को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है-यहां तक कि वह अलगाववाद को हवा देने और झूठ का सहारा लेने के लिए भी तैयार है। विधानसभा चुनावों के उपरांत सत्ता की दौड़ से बाहर हो जाने के बाद पीडीपी के नेता हरसंभव तरीके से कानून एवं व्यवस्था के समक्ष संकट खड़ा करने और इसके लिए लोगों को भड़काने की ही कोशिश कर रहे हैं। इस बात के संकेत लगातार सामने आ रहे हैं कि पीडीपी के नेताओं की ओर से अलगाववाद को भड़काने के साथ-साथ राजनीतिक अस्थिरता का माहौल पैदा करने की भी कोशिश की जा रही है।

यह निराशाजनक है कि राज्य सरकार पीडीपी के इरादों से परिचित होने के बावजूद अपेक्षित कदम नहीं उठा पा रही है। यह संभव है कि पीडीपी के आरोपों से आहत होकर त्यागपत्र देने से उमर अब्दुल्ला को व्यक्तिगत तौर पर कोई राजनीतिक लाभ हुआ हो, लेकिन कुल मिलाकर उनका यह कदम पलायनवादी ही नजर आया। विपक्षी दलों के लांछन से आहत जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के लिए यही उचित है कि वह राज्यपाल एनएन वोहरा की इस सलाह पर अमल करें कि उनके इस्तीफे का कोई कारण नहीं है और वह राज्य की बागडोर संभालें। यदि वह अपने त्यागपत्र पर अड़े रहते हैं तो इससे व्यक्तिगत तौर पर भले ही उन्हें कोई राजनीतिक लाभ प्राप्त हो जाए, राज्य की जनता को कुछ हासिल होने वाला नहीं है। मौजूदा समय यह कहीं अधिक आवश्यक है कि जम्मू-कश्मीर की बागडोर किसी सक्षम राजनेता के हाथों में हो। यदि उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री पद छोड़ने पर अड़े रहते हैं तो फिर बेहतर होगा कि वह वैकल्पिक व्यवस्था का निर्माण करने में सहायक बनें, क्योंकि उनके खिलाफ लगे आरोपों की आनन-फानन में जांच होना संभव नहीं। एक तो राज्यपाल के पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं जिससे वह मुख्य विपक्षी दल पीडीपी के आरोपों की रातों-रात जांच करा सकें और यदि किसी जतन से वह ऐसा करा भी लेते हैं तो पीडीपी नेताओं के उस पर भरोसा करने की कहीं कोई संभावना नहीं।

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