हिरोशिमा से लेकर दोहा एशियाई खेलों और कई अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत के लिए ढेरों पदक बटोरने वाले निशानेबाज जसपाल राणा, क्रिकेट टीम की दीवार राहुल द्रविड़, टेनिस जगत में देश का रोशन करने वाले महेश भूपति और भारतीय फुटबाल के पर्याय बाईचुंग भूटिया उन कुछ दिग्गज खिलाड़ियों में शामिल हैं जो कभी खेल रत्न नहीं बन पाए।
देश के सर्वोच्च खेल पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न के लिए इस समय महिला मुक्केबाज एमसी मेरीकोम तथा ओलंपिक पदक विजेता पहलवान सुशील कुमार और मुक्केबाज विजेंदर सिंह के नाम को लेकर जिस तरह की रस्साकसी चल रही है, वैसे पहले भी चलती रही लेकिन शायद इसका जवाब किसी के पास नहीं होगा कि आखिर राणा या द्रविड़ या भूपति को क्यों नजरअंदाज किया गया। इसी तरह से दो पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान सौरव गांगुली और अनिल कुंबले भी इस पुरस्कार के हकदार थे लेकिन उनके नाम पर कभी विचार ही नहीं किया गया।
इनमें राणा का दावा इसलिए मजबूत बनता था क्योंकि उन्होंने न सिर्फ एशियाई खेलों बल्कि कई अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी देश का मान बढ़ाया। इस निशानेबाज ने 1994 में हिरोशिमा एशियाई खेलों में और राष्ट्रमंडल खेल 2006 में सोने का तमगा हासिल किया। पदमश्री जसपाल राणा ने 2006 के दोहा एशियाई खेलों में तीन स्वर्ण पदक जीते जिसमें पुरुषों की 25 मीटर सेंटर फायर पिस्टल में उन्होंने विश्व रिकार्ड की बराबरी की। तब उन्हें खेल रत्न का प्रबल दावेदार माना जा रहा था लेकिन भारतीय राइफल संघ ने एक अन्य निशानेबाज मानवजीत सिंह संधू के नाम की सिफारिश की जिन्होंने एशियाई खेलों में कांस्य और विश्व निशानेबाजी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था।
पूर्व भारतीय कप्तान द्रविड़ के नाम की 1991 से शुरू किए गए खेल रत्न के लिए दो बार सिफारिश की गई लेकिन टेस्ट और एक दिवसीय मैचों में कई यादगार पारियां खेलकर क्रिकेट टीम के पिछले एक दशक के विजयी सफर में अहम भूमिका निभाने वाले श्रीमान भरोसेमंद 2005 में जहां पंकज आडवाणी से पिछड़ गए वहीं 2006 में बीसीसीआई की लेटलतीफी उन पर भारी पड़ी। इसी तरह भूपति ने टेनिस युगल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गजब का प्रदर्शन किया और अभी तक दस ग्रैंड स्लैम जीते हैं। उनके नाम पर लिएंडर पेस के साथ मिलकर डेविस कप में भी कई यादगार प्रदर्शन शामिल हैं तथा एशियाई खेलों का स्वर्ण पदक भी उनके नाम पर दर्ज है लेकिन इन सबके बावजूद उनके नाम के आगे अभी तक खेल रत्न नहीं जुड़ पाया।
भूपति के नाम की 2001 के खेल रत्न के लिए सिफारिश की गई थी लेकिन तब वह अभिनव बिंद्रा से पुरस्कार की दौड़ में पिछड़ गए थे। इसके बाद 2005 में खेल रत्न की दौड़ में शामिल बेंगलूर के तीन खिलाड़ियों में उनका नाम भी शामिल था। भूपति के जोड़ीदार रहे पेस को 1996-97 में ही खेल रत्न चुन लिया गया था। इसी तरह से भारत की तरफ से टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक 619 विकेट लेने वाले कुंबले का पाकिस्तान के खिलाफ 1999 में दिल्ली में एक पारी में दस विकेट का कारनामा भी उन्हें खेल रत्न नहीं बना पाया। गांगुली ने भी अपनी कप्तानी में भारतीय क्रिकेट को ऊंचाईयों तक पहुंचाया लेकिन उनकी इस उपलब्धि को पुरस्कार के मामले में अधिक तवज्जो नहीं मिली।
गांगुली के नाम की 2004 के खेल रत्न के लिए बीसीसीआई ने सिफारिश की थी लेकिन तब एथेंस ओलंपिक में रजत पदक विजेता राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के सामने उनका मामला फीका पड़ गया। अब तक दो क्रिकेटरों सचिन तेंदुलकर [1997-98] और महेंद्र सिंह धौनी [2007-08] को ही राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार मिला है। भारतीय फुटबाल टीम के कप्तान बाईचुंग भूटिया अकेले दम पर टीम को बहुत आगे नहीं बढ़ा पाए लेकिन पिछले एक दशक से उनका व्यक्तिगत प्रदर्शन लगातार अच्छा रहा। वह ब्रिटेन के क्लबों में भी खेले और भारतीय फुटबाल को विश्व मानचित्र में जगह दिलाने की कोशिशों में लगे रहे लेकिन उनके इस प्रयास को भी नजरअंदाज किया गया।
जहां तक अर्जुन पुरस्कार का सवाल है तो राणा [1994], भूपति [1995], कुंबले [1995], गांगुली [1997], द्रविड़ [1998] और भूटिया [1998] को बहुत पहले ही यह पुरस्कार मिल गया था।
अब यह सरकार को सोचना होगा कि एसा कौन सा सिस्टम बनाया जाए जो इन पुरस्कारों के आवंटन को परिदर्शी बना सके ताकि विवादों को कम से कम किया जाए |
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