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शनिवार, 25 जुलाई 2009

शहीदों को अनूठी श्रद्धांजलि








कल कारगिल दिवस है। दस वर्ष पहले इसी दिन 26 जुलाई की तारीख को भारत-पाक सीमा पर स्थित कारगिल में विजय पताका लहरा कर भारतीय सैनिकों ने सिद्ध कर दिया था कि वे सिर कटा सकते हैं, लेकिन दुश्मन के आगे सिर झुका नहीं सकते। इस दिवस की पूर्वसंध्या पर राष्ट्र उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है, लेकिन आदित्य बक्शी का अंदाज कुछ अलग है।

29 वर्षीय आदित्य मर्चेट नेवी में कार्यरत हैं और वे देश के लिए कुर्बान होने वाले भारतीय फौजियों को 'वॉर कॉमिक्स' के जरिए अमर कर देना चाहते हैं। वे बताते हैं, ''बचपन में मैंने कई वॉर कॉमिक्स पढ़ी थीं लेकिन उनके पात्र विदेशी थे। कुछ रचनात्मक करने की चाह में मैंने 23 वर्ष की उम्र में एक पुस्तक लिखी टेरर ऑन द सीज। इसके बाद रियल लाइफ हीरोज पर कॉमिक्स बनाने की सोची तो मेरे पिता रिटायर्ड जनरल जी.डी. बक्शी ने पहला नाम सुझाया कैप्टन विक्रम बत्रा का।''

आदित्य की पहली वॉर कॉमिक कैप्टन विक्रम बत्रा पर आधारित थी। इस महान फौजी ने कारगिल युद्ध में कई दुश्मनों को मौत के घाट उतारने के बाद कहा था, 'यह दिल मांगे मोर'। आदित्य कहते हैं, ''उन दिनों यह शब्द पूरे देश में गूंजने लगे थे, और मानो देशभक्ति का पर्याय ही बन गए थे। इसलिए मैंने इसी स्लोगन पर कॉमिक का नाम रखा।'' इसके बाद आदित्य ने अशोक चक्र तथा कीर्ति चक्र विजेता कर्नल एन.जे. नायर पर चित्रकथा तैयार की। यह कॉमिक जल्द ही मार्केट में आएगी। फिलहाल वे गत वर्ष 26 नवंबर को मुंबई में हुए हमले में शहीद हुए मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की कहानी पर काम कर रहे हैं।

इन कॉमिक्स के लिए आदित्य अपनी जेब से ही खर्च करते हैं। वे कहते हैं, ''मेरी कोशिश है कि मैं अपनी कॉमिक्स का दाम कम से कम रखूं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग, खासकर बच्चे, इन्हें खरीद सकें और पढ़ सकें।''

आदित्य कहते हैं, ''मेरा पूरा परिवार मुझे इस काम में बहुत सहयोग दे रहा है। पिता जी मुझे हर छोटी-बड़ी डिटेल समझाते हैं ताकि स्टोरी और चित्रण में टेक्निकल गलतियां न हों, जैसे किस सैनिक के हाथ में क्या हथियार होना चाहिए। वह उनका इस्तेमाल कैसे करेगा। मेरी बहन ने आर्ट में पीएचडी की हुई है। कॉमिक का कवर पेज उन्हीं द्वारा तैयार किया गया था और मेरी पत्नी नम्रता, जो स्वयं एक एयरफोर्स अफसर की बेटी है, कॉमिक्स की डिजाइनिंग, फारमेटिंग आदि में सहायता करती है।''

वीरगाथाएं सुनते थे विक्रम

परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा के पिता श्री जी.एल. बत्रा के अनुसार, ''आदित्य बक्शी की यह वॉर कॉमिक्स अपनी तरह की इकलौती मिसाल है, जिसके द्वारा उन्होंने बड़े ही रोचक और अच्छे ढंग से वास्तविक योद्धाओं के कारनामे नई पीढ़ी तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है।'' वे कहते हैं, ''मैं विक्रम को बचपन से ही शहीद भगत सिंह, महाराणा प्रताप, गुरु गोबिंद जी के वीर पुत्रों-जोरावर सिंह तथा फतह सिंह आदि की कहानियां सुनाया करता था, शायद यही कारण था कि उसके दिलो-दिमाग में देश भक्ति व वीरता कूट-कूट के भरी थी। वह इतना साहसी था कि फौज में उसका नाम 'शेर शाह' रखा गया था।''

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