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मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009

बुर्के पर बेअसर आतंकी फरमान

आतंकियों की नापाक चहलकदमी और हिंसा परस्ती से लहूलुहान कश्मीर घाटी में हालात बदलने लगे हैं। कश्मीरी अवाम तालिबानी फरमानों को हवा में उड़ाने के साथ ही आतंकियों से दो-दो हाथ करना शुरू कर दिया है। इसी का असर है कि आजाद ख्याल युवतियां बिना बुर्का और हिजाब खुली फिजा का आनंद ले रही हैं।
सोपोर डिग्री कालेज से बाहर निकलती छात्राओं का हुजूम बदलते कश्मीर की तस्वीर हैं। इन्हे देखकर कोई नहीं कह सकता कि डेढ़ माह पहले इन्हीं के लिए आतंकियों ने बुर्का अनिवार्यता का तालिबानी फरमान जारी किया था।
अगस्त के आखिरी हफ्ते में आतंकियों ने सोपोर डिग्री कालेज के प्रिंसिपल मोहम्मद अशरफ को इसलिए अगवा कर लिया था, क्योंकि उन्होंने कालेज में बुर्का अनिवार्यता का आतंकी फरमान लागू नहीं किया था।
कालेज की छात्रा समीना ने कहा कि प्रिंसिपल सर के अगवा होने के बाद लड़कियों ने बुर्का पहनना शुरू कर दिया लेकिन यह तीन चार दिन ही रहा। नाहिदा ने कहा कि हम कुछ सिरफिरों के कहने पर अपनी जिंदगी नहीं बदल सकते।
कालेज के प्रिंसिपल मोहम्मद अशरफ ने कहा कि इस्लामिक ड्रेस कोड के तालिबानी फरमान के खिलाफ कालेज में जिस तरह हड़ताल हुई, उसकी दहशतगर्दो को उम्मीद नहीं थी। इसी के कारण उन्होंने अपने कदम पीछे खींच लिए। इश्तियाक नामक व्यक्ति ने कहा कि सोपोर ही नहीं, श्रीनगर में भी तालिबानी फरमान का मखौल उड़ता है।

बुर्के के फरमान को लेकर अलगाववादी खेमा भी बंटा हुआ है। मीरवाइज उमर फारुक और उनके खास सहयोगी अब्बास अंसारी का कहना है कि जबरदस्ती के बजाय हमें लोगों को शिक्षित करना होगा। वहीं, महिला अलगाववादी संगठन दुख्तरान-ए-मिल्लत की प्रमुख आसिया अंद्राबी का कहना है कि इस्लाम मानने वालों को बुर्के की हिमायत करनी चाहिए, जो इसकी खिलाफत कर रहे है वह इस्लाम को नुकसान पहुंचाने के साथ ही कश्मीर की नस्लों को तबाह करना चाहते है। वह युवतियों को जिस्मफरोश समेत तमाम गैर इस्लामी कामों की तरफ धकेलना चाहते है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. जब तक मुस्लिम खुद नही जागे गे तब तक कुछ नही हो सकता, आप के इस लेख से एक उम्मीद तो जागी है कि शायद मुस्लिम जमात भी जागे.ओर तरक्की मै कदम से कदम मिलाये
    धन्यवाद

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