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सोमवार, 12 अक्टूबर 2009

उस्ताद नुसरत फ़तेह अली खान के जन्म दिन पर विशेष...


किन्ना सोणा तेनु रब ने बनाया....
रूहानी संगीत का जिक्र सूफी संगीत की बिना अधुरा है...और सूफी संगीत उस्ताद नुसरत फ़तेह अली के बिना अधुरा है.सूफी संगीत की इस अजीमों शान शख्सियात का जन्म आज के ही दिन यानि १३ अक्टूवर सन १९४८ में फैसलाबाद पाकिस्तान में हुआ था.चार भाई बहिन में सबसे छोटे नुसरत का खानदान ६०० साल से मोशिकी में दखल रख रहा है.नुसरत के वालिद फ़तेह अली खान भी एक सफल गायक थे.नुसरत की गायकी में पिता की छाप साफ दिखाई देती है और नुसरत इस को कुबूल करते समय फक्र महसूस करते थे.नुसरत का करियर १९६५ से शुरू हुआ.नुसरत ने अपने हुनर से सूफियाना संगीत में कई रंग भरे.नुसरत की गायकी के दीवाने हर मुल्क में मिल जायेंगे.पूरी दुनिया में उन्होंने लाइव शो किए.उनके शो बेहद लोकप्रिय हुए.उस्ताद नुसरत बेहद संजीदा इन्सान थे.बुलंदी के मुकाम पर भी नुसरत ने हमेसा सादगी से नाता रखा.कहते हैं के सूफी गाते गाते वे सूफी हो गए.वे ख़ुद भी मानते थे कि''ज्यादा सूफी सुनने और गाने से इंसान की फितरत में बेराग्य पैदा हो जाता है
वालिद के इंतकाल के बाद नुसरत समझ नही रहे थे की अब वे क्या करे? उस्ताद नुसरत फतेह अली खान को एक रात सपना आया की वे एक मजार में गा रहे हैं और उनके वालिद उनके साथ हैं.इस खाब की चर्चा नुसरत ने अपने एक परीचित से की.परीचित ने बताया की सपने में मजार का जिक्र कर रहे हैं वो मजार ख्वाजा अजमेर शरीफ की दरगाह है.उसके बाद से वे हिंदुस्तान आने का मोका नही जाने देते थे.कव्वाली को पुरे विश्व में लोकप्रिय नुसरत ने ही बनाया.नुसरत ने करियर की शुरुआत में पाकिस्तान के गावों में धुल गर्मी के बीच लोगों को कव्वाली सुनाई.इस मेहनत ने उन्हें ये सिखा दिया की सफल होने का रास्ता आसन नही होता.हिम्मत.जुनून और कुछ करने की चाहत ने उन्हें बुलंदी तक पहुंचा दिया
उस्ताद नुसरत ने कव्वाली में कई रंग भरे.कव्वाली में सबसे पहले क्लासिकल का प्रयोग नुसरत ने ही शुरू किया.तबले के साथ लय की जुगलबंदी भी नुसरत ने ही शुरू की.नुसरत की सरगम बेहद मकबूल हुयीं.हिन्दी सिनेमा में नुसरत की सरगम प्रयोग में लायीं गयीं.बेंडिट क्वीन.धड़कन.कारतूस.और प्यार हो गया.कच्चे धागे में उनका संगीत हिट रहा.नुसरत ने वर्ल्ड के कई नामचीन संगीतकारों के साथ काम किया.होलीवूड के लोकप्रिय संगीतकार पीटर गेब्रीअल के साथ उनकी कम्पोजिसन लोकप्रिय रहीं.पॉप और रोक म्यूजिक के दो़र में नुसरत ने अमेरिका और ब्रिटेन में सूफी संगीत की लत लोगों में पैदा की.''किन्ना सोणा तेनु रब ने बनाया''इस गाने ने युवाओं के बीच नुसरत को लोकप्रिय बना दिया.लन्दन के डिस्को में नई पीढी नुसरत के संगीत पर थिरकने लगी थी.नुसरत को कभी नए संगीत कारों के साथ काम करने में मुश्किल नही आई.पीटर गेब्रियल ने एक बार १५ दिनों के लिए म्यूजिक स्टूडियो किराये पर लिया.लेकिन नुसरत ने महज कुछ घंटो में कम्पोजिसन पूरी कर दीं.कव्वाली को युवाओं के बीच लोकप्रिय नुसरत ने ही बनाया.नुसरत ने कई नए राग इजाद किये.उनका मानना था की अच्छा फनकार मेहनत से बनता है.वे म्यूजिक से मोहब्बत करते थे और उसमें वे कामयाब भी रहे.एक बार वे जापान के दौर पर जब गए तो जापान के किंग ने उनसे मिलने की इच्छा ज़ाहिर की.ये गायकी में उनका उहदा था.ये रुतबा उन्हें मेहनत से मिला था.उन्होंने अपनी गायिकी कर आगाज़ हज़रात अमीर खुसरो की ग़ज़ल से किया. संगीत के इस बेताज बादशाह की सबसे बड़ी खूबी ये थी की उनमें कोई एब नही था.इस शख्सियत पर लोग हेरान रहते थे.हिंदुस्तान में राजकपूर से लेकर अमिताभ बच्चन तक उनकी गायकी के दीवाने है.सही मायने में बे सूफी थे.उन पर मुर्सिदों की रहमत थी.गुर्दे फ़ैल होजाने से १६ अगस्त १९९७ में इस महान फनकार कर इंतकाल हो गया,लेकिन उस्ताद नुसरत फ़तेह अली खान की आवाज़ आज भी फजाओं में महक रही है.
हृदेश सिंह

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