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बुधवार, 28 अक्टूबर 2009

1857 के क्रांतिकारी इतिहास का साक्षी है कवर का नगला


आज से 152 वर्ष पहले जब भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का शंखनाद हुआ था। पूरा जनपद क्रांति की आग में जल रहा था। मैनपुरी के चौहान वंशी राजा तेज सिंह अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंक दिया था। जनपद भर में अंग्रेजों के खजाने लुट रहे थे। मालगुजारी की वसूली बंद कर दी गयी थी और अंग्रेज सैनिकों, अधिकारियों को मार डालने की योजना बनायी जा चुकी थी।

ऐसे में मैनपुरी का ऐतिहासिक भोगांव कस्बा भी क्रांति की इस आग से अछूता नहीं था। अलीगढ़ में सेना ने विद्रोह कर दिया था। मैनपुरी में भी 22 मई को 4 बजे मैनपुरी के जिला कलेक्टर को सूचना मिली की नौंवी पल्टन ने ईस्ट इंडिया सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर दिया है और भारतीय सैनिक बंदूकों से फायर करते हुये अधिकारियों के स्थानों की तरफ कूच कर चुके हैं। इस स्थिति को देखते हुये ले. कोक्स, कै. कैलनर भाग खडे़ हुये। तत्कालीन मजिस्ट्रेट जॉन पॉवर नि:सहाय अवस्था में था। अंग्रेज अधिकारी भागते हुये ईसन नदी के पुल पर जाकर छिप गये। लेकिन वह विद्रोही सैनिकों को चकमा नहीं दे सके। उन्होंने मॉन्ट गुमरी और वाटसन के घरों को लूट लिया तथा उनके घरों में आग लगा दी। सैनिकों ने शस्त्रागार को भी पूरी तरह लूट लिया। अनेक अंग्रेजों को विद्रोही सैनिकों ने बंदी बना लिया था। क्रांतिकारी सैनिकों ने मालखाना लूट लिया था और यह क्रांति की आग देखते देखते भोगांव तक पहुंच गयी।

29 मई 1857 को मेजर हैंस, कै. कैरी और लै. वारबोर फरेर और कर्नल स्मिथ सन्नद्ध हुये। लै. वारबोर को 30 मई को भोगांव और 31 मई को कुरावली पहुंचने का आदेश मिला और अंग्रेज सेना 30 मई को भोगांव पहुंच गयी। उस समय भोगांव में वर्तमान जूनियर हाईस्कूल एवं वर्तमान नेशनल महाविद्यालय के मध्य मैदान में अंग्रेजों की ओर से एक पुर्विया पल्टन पड़ी हुयी थी। इस पल्टन ने 31 मई को अंग्रेजी सेना के खिलाफ विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह का दमन करने मेजर हैंस और कै. कैरी अंग्रेज सिपाहियों की फौज को लेकर 1 जून को भोगांव पहुंचे। जब यह दोनों अफसर क्रांतिकारी सेना के सामने पहुंचे और उनके सरेंडर करने के लिये कहा तो क्रांतिकारी फौज उनके ऊपर टूट पड़ी। देखते-देखते अंग्रेजी सेना के तमाम अंग्रेज सैनिक घटनास्थल पर धराशायी हो गये। मेजर हैंस और कै. कैरी जान बचाते हुये वहां से भागे। परंतु भारतीय सिपाहियों ने उनकों चारों तरफ से घेर लिया। एक क्रांतिकारी सिपाही ने मेजर हैंस के सिर पर तलवार से इतना तेज बार किया कि उनके प्राण पखेरू वहीं पर उड़ गये। कै. कैरी किसी प्रकार घोडे़ पर चढ़कर मैनपुरी की ओर भाग लिया। उसके साथ लगभग 50 अंग्रेज सिपाही थे जिन्हें घेर कर भारतीय क्रांतिकारी सैनिकों ने मार डाला।

कुछ दिनों बाद ईस्ट इंडिया कंपनी की अंग्रेज सेना पुन: सातवीं घुड़सवार पल्टन लेकर भोगांव आई। भोगांव के पास ही क्रांतिकारियों की सेना से उनकी भीषण मुठभेड़ हुयी। अंग्रेजी सेना पीछे खदेड़ दी गयी। सैकड़ों की संख्या में अंग्रेज यहां पर भी मारे गये। क्रांतिकारियों ने यहां के थाने पर आक्रमण कर दिया और इस लड़ाई में क्रांतिकारियों ने लै. कैंट जॉव को इतना बुरी तरह घायल कर दिया कि आगे चलकर उसकी मृत्यु हो गयी। मारे गये सैकड़ों अंग्रेज सिपाहियों को अंग्रेज सेना मैनपुरी उठाकर ले गयी तथा गोला बाजार के पास एक कब्रिस्तान में दफना दिया। गोरों की लाशों के दफनाये जाने के कारण इस जगह का नाम कवर का नगला पड़ गया। गोलाबाजार के पास सैकड़ों की संख्या में दफन अंग्रेज क्रांति की 152 साल पुरानी कहानी के आज भी गवाह बने हुये हैं।

21 जून को सूर्याेदय के पूर्व क्रांतिकारी फौज ने मैनपुरी जेल का फाटक तोड़ दिया। मुक्त बंदियों और क्रांतिकारियों ने मिलकर अंग्रेजों के घरों को खूब लूटा तथा उनमें आग लगा दी। जेल के फाटक का टूटना मैनपुरी जनपद से विदेशी सत्ता की समाप्ति का सूचक था। अधिकांश अंग्रेज अपने प्राणों की रक्षा करते हुये आगरा की ओर भाग गये। विदेशियों के पलायन के बाद मैनपुरी की बागडोर राजा तेजसिंह ने संभाली थी |

-अनिल मिश्रा

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