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रविवार, 18 अक्टूबर 2009

३५० वी पोस्ट :- गौर से देखो तो 'इच्छा' आस-पास ही है

हम और आप फैशन के मुताबिक कपड़े पहनते हैं, जूते खरीदते हैं और तो और बच्चो का पुराने खिलौनों से खेलना भी हमें अच्छा नहीं लगता। क्या आप जानते हो कि हमारे आसपास कुछ बच्चे ऐसे भी हैं, जिन्हें नए और पुराने में फर्क करने का मौका ही नहीं मिलता। यह बच्चा कोई भी हो सकता है। घर में सफाई करने वाली नौकरानी का बच्चा, स्कूल के प्यून का बच्चा या

फिर रास्ते में पड़ने वाली किसी गरीब बस्ती का बच्चा।
1. इस दीवाली पर स्टडी टेबल की सफाई करते हुए अगर ऐसी कोई कॉमिक या कहानियों की किताब मिली है जिसे आप पूरा पढ़ चुके हो, तो इसे उन्हें दिया जा सकता है।
2. इसी तरह पुराने या छोटे हो चुके कपड़ों को गरीब बच्चों को दिया जा सकता है। छोटे हुए जूते या पुराने फैशन के मोजे भी उन्हें दिए जा सकते हैं। पुरानी एसेसरीज जैसे बेल्ट, हैट, छाता, चूड़ियां, ब्रैसलेट, ईयररिंग्स आदि भी उनके काम आ सकती हैं।
3. हाथ से बनाए ग्रीटिंग कार्ड के साथ उन्हें दीवाली का शुभकामना संदेश दो।
4. पटाखों और फुलझड़ियों को उनके साथ मिलकर जलाओ। इससे उन्हें पटाखे फोड़ने का मौका मिलेगा और आपको खुशियां बांटने की संतुष्टि। दीवाली की मिठाई उनके साथ बांटकर खाओ। तोहफे में मिले सारे चॉकलेट्स खुद खाने के बजाए कुछ शेयर उनके लिए भी रखो।
5. सर्दियां आने वाली हैं। अगर अपनी जैकेट या मफलर आपको आउट ऑफ फैशन लगती है, तो यह भी उनके काम आ सकती है।
कहने का मतलब यह है कि हर वह चीज जो आपको लगता है कि पुरानी पड़ चुकी है, उनके काम आ सकती है। इसलिए आज दीवाली पर अपने साथ-साथ 'इच्छा' जैसे बच्चों का भी ख्याल करो और बदले में आपको मिलेगा खुशियां बांटने का अनमोल आनंद!  क्यों कि अगर गौर से देखो तो 'इच्छा' आस-पास ही है बस हमारी नज़र उस पर नहीं पड़ती ! 

7 टिप्‍पणियां:

  1. ३५० वीं पोस्ट की हार्दिक बधाई और अनेक शुभकामनाएँ.

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  2. ३५० वे लेख की शभकामानये, आप ने अपने लेख मै बहुत सुंदर संदेश दिया.
    धन्यवाद

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  3. सुन्दर पोस्ट है।
    350वीं पोस्ट के साथ-साथ गोवर्धन-पूजा और भइया-दूज की शुभकामवाएँ!

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  4. दीवाली पर अपने साथ-साथ 'इच्छा' जैसे बच्चों का भी ख्याल करो और बदले में आपको मिलेगा खुशियां बांटने का अनमोल आनंद! क्यों कि अगर गौर से देखो तो 'इच्छा' आस-पास ही है बस हमारी नज़र उस पर नहीं पड़ती !


    बहूत ही अच्छा विचार है यह आपका ......!!

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  5. शिवम भाई,
    मैंने अपनी बिटिया की फैंसी साइकिल घर में काम करने वाली की बेटी को दी थी तो उसके चेहरे पर जो भाव आया था, वो मैं कभी भुलाए भी नहीं भूल सकता...हमारे घरों में ऐसी कई चीज़ें पड़ी रहती है जिनका हमारे लिेए कोई प्रायोजन नहीं होता फिर भी बस हम संभाले रखते हैं...अगर यही ज़रूरतमंद को दे दी जाएं तो काम भी आ जाएंगी और किसी का भला भी हो जाएगा...


    जय हिंद...

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  6. 350vi lekh ki bahut bahut badhaiya ishwar kare aapki lekhni isi prakaar apne vicharo ka aadaan pradaan hum jaiso se karti rahe

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