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शनिवार, 24 अक्टूबर 2009

क्रोध की ऊर्जा का रूपांतरण


अर्जुन को समझाते हुए कृष्ण कहते हैं, 'काम' के मार्ग में बाधा आने पर क्रोध का जन्म होता है। क्रोध मन के संवेगों का प्रवाह है, जिस पर बांध न बनाए जाने पर वह व्यक्ति को पतन की ओर ले जाता है। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि 60 सेकेंड का क्रोध व्यक्ति के शरीर को 600 सेकेंड तक कंपित करता है, क्योंकि क्रोध से जुड़े तथ्य व्यक्ति को 600 सेकंड तक व्यथित करते रहते हैं। क्रोध एक ऐसी आग है, जिसमें जलने वाले व्यक्ति की ऊर्जा का क्षय हो जाता है।

लड़ने को सदैव तत्पर

मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति हर स्थिति-परिस्थिति में अपने अनुकूल परिणाम चाहता है। इसके लिए ज्यादातर व्यक्ति लड़ने और बहस करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। वहीं कोई व्यक्ति लड़ने को उद्यत हो रहा हो, तो हम तुरंत ईंट का जवाब पत्थर से देना शुरू कर देते हैं। जरा-सी बात पर हमारे अंदर का पशु क्रोध के रूप में सामने आ जाता है।

क्रोध के कारण

हमारे अंदर क्रोध का कारण शारीरिक, जैविक, परिवेश, संस्कार, दृष्टिकोण आदि हो सकता है। चिड़चिड़ाना, रोना, कड़वे वचन बोलना, कुंठा, हिंसा, ईष्र्या, द्वेष आदि के रूप में भी क्रोध की अभिव्यक्ति होती है। क्रोध के समय हम इतने व्यथित हो जाते हैं कि इससे बचने के बजाय उसमें ही उलझ जाते हैं। अधिकतर लोग क्रोध के बाद क्रोध के औचित्य को ही सिद्ध नहीं करते हैं, बल्कि अपने कुतर्क से इसके लिए दूसरों को उत्तरदायी भी ठहराते हैं।

अध्यात्म है क्रोध की औषधि

यदि व्यक्ति साधना और ध्यान का निरंतर अभ्यास करता है, तो वह जान पाता है कि उसे क्रोध क्यों आता है। वह समझ जाता है कि वह स्वयं ही क्रोध का कारण है। अध्यात्म से जुड़ा व्यक्ति निरंतर अभ्यास करता है, जिससे वह क्रोध से बच सके। निरंतर अभ्यास से मन शांत होने लगता है और बड़ी-बड़ी समस्याएं विवेकपूर्ण ढंग से सुलझा लेता है। निर्णय लेने की क्षमता भी बढ़ जाती है।

ऊर्जा परिवर्तित करना

आध्यात्मिक व्यक्ति अपने प्रति सजग हो जाता है। क्रोध का उत्तर वह क्रोध से नहीं देता। जब सामने वाले को जताया जाए कि उसकी बात पर आप न तो क्रोधित हैं और न ही उसकी बात का बुरा माना है, तो आप महसूस करेंगे कि वह न केवल शांत हो जाएगा, बल्कि शर्मिंदगी भी महसूस करेगा। व्यक्ति यदि चाहे, तो अपनी क्रोध की ऋणात्मक ऊर्जा को सकारात्मकता की ओर ले जा सकता है। सकारात्मक ऊर्जा के साथ व्यक्ति उचित निर्णय लेने की स्थिति में पहुंच जाता है। सच तो यह है कि क्रोध की ऋणात्मक ऊर्जा तर्क-कुतर्क करती है, जबकि सकारात्मक ऊर्जा जीवन को एक नया आयाम देती है।

-डॉ. सुरजीत सिंह गांधी

4 टिप्‍पणियां:

  1. भाई बात तो बहुत सुंदर बताई लेकिन कई बार स्थिति बहुत अलग होती है, ओर उस क्रोध से बचना भी मुश्किल होता है.लेकिन क्रोध पर नियत्रंरण तो किया जा सकता है
    धन्यवाद

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  2. शिवम भाई,

    ये परशुराम जी की आत्मा कहां से आपकी पोस्ट में घुस गई...

    जय हिंद...

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