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शनिवार, 3 अक्टूबर 2009

बधाई हो जी बहुत बहुत बधाई - बोफोर्स केस बंद करने की अर्जी सीबीआई ने लगाई



बोफोर्स दलाली कांड को बंद करने के लिए सीबीआई ने शनिवार को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में अर्जी दायर की। जांच एजेंसी ने मामले के मुख्य आरोपी इटली के व्यापारी ओतावियो क्वात्रोची के खिलाफ सबूत न होने और उसे प्रत्यर्पित करने की सभी कोशिशें नाकाम रहने के बाद यह फैसला किया।
सीबीआई ने अपनी अर्जी में अदालत से अपील की कि अधिवक्ता अजय अग्रवाल की बातों को नहीं सुना जाना चाहिए क्योंकि उनका इस मामले में कोई अधिकार क्षेत्र नहीं बनता है। सुप्रीम कोर्ट में बोफोर्स मामले की पैरवी कर रहे अग्रवाल ने अदालत से सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को नहीं मानने की अपील करते हुए कहा था कि सरकार क्वात्रोची को बचने का मौका दे रही है।
उल्लेखनीय है कि दो दशक पुराने इस मामले में एकमात्र जीवित आरोपी क्वात्रोची देश में किसी भी अदालत में आज तक पेशी के लिए नहीं आया। दिल्ली हाईकोर्ट ने 31 मई 2005 को अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोपों को खारिज कर दिया था।
इससे पहले केंद्रीय विधि मंत्री वीरप्पा मोइली ने गुरुवार को लंदन में कहा था कि सीबीआई क्वात्रोची के खिलाफ मुकदमा वापस ले लेगी।
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बस साहब, खेल ख़त्म !! २० साल चला यह खेला और कितना चलता ??
मान भी लो, कभी ना कभी तो ख़त्म होना ही था तो भैया आज क्यों नहीं ?? जो भी होता है भले के लिए ही होता है, अब किस के भले के लिए यह तो निर्भर करता है अपनी अपनी सोच पर, इस बारे में हम कुछ नहीं कहेगे ! बस कुछ तथ्य आप के सामने रख रहे है .... बाकी आप स्वयं ज्ञानी है !!
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यह राष्ट्रीय चेतना और भरोसे पर किया जाने आघात है कि बीस वर्षो की जांच-पड़ताल और इस दौरान सामने आए तमाम पुष्ट एवं परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के बावजूद बोफोर्स तोप सौदे की दलाली के मामले में यह कहा जा रहा है कि मुख्य अभियुक्त ओतावियो क्वात्रोची के खिलाफ दायर मुकदमे को वापस लेने के अलावा अन्य कोई उपाय नहीं। यदि इस मामले में कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्रीय सत्ता को यही सब करना था तो उसने पिछले लगभग छह वर्षो में देश का समय और धन क्यों बर्बाद होने दिया? केंद्रीय सत्ता चाहे जो तर्क दे, यह मानने के अच्छे भले कारण हैं कि उसने क्वात्रोची को चरणबद्ध तरीके से राहत प्रदान करने की एक सुनियोजित रणनीति पर अमल किया ताकि कहीं कोई बड़ा हंगामा न खड़ा हो। आखिर कौन नहीं जानता कि पहले क्वात्रोची के लंदन स्थित बैंक खातों से बड़ी ही बेशर्मी के साथ गुपचुप रूप से पाबंदी हटाई गई और जब इसका भेद उजागर हुआ तो कई दिनों तक कोई भी यह बताने वाला नहीं था कि यह पाबंदी किसके आदेश पर हटाई गई? इसके बाद क्वात्रोची के खिलाफ जारी रेड कार्नर नोटिस वापस ले लिया गया। स्पष्ट है कि इतना सब करने के बाद वह कहा ही जाना था जो विगत दिवस सालिसिटर जनरल के माध्यम से उच्चतम न्यायालय के समक्ष बयान किया गया। आश्चर्य नहीं कि कुछ समय के बाद क्वात्रोची को भारत आकर व्यापार करने की छूट प्रदान कर दी जाए।

नि:संदेह आम जनता की याददाश्त कमजोर होती है, लेकिन प्रत्येक मामले में नहीं। वह इस तथ्य को आसानी से नहीं भूल सकती कि बोफोर्स तोप सौदे में न केवल दलाली के लेन-देन की पुष्टि हुई थी, बल्कि इसके सबूत भी मिले थे कि दलाली की रकम किन बैंक खातों में जमा हुई। इस पर भी गौर किया जाना चाहिए कि इस सब की पुष्टि उसी सीबीआई की ओर से की गई जो आज सबूत न होने का राग अलाप रही है। इसका सीधा मतलब है कि सरकार बदलने के साथ ही सीबीआई के सबूतों की रंगत भी बदल जाती है। जो जांच एजेंसी इस तरह से काम करती है वह शीर्ष तो हो सकती है, लेकिन स्वायत्त और भरोसेमंद कदापि नहीं। क्या केंद्रीय सत्ता अब भी यह कहने का साहस करेगी कि वह सीबीआई के काम में दखल नहीं देती? लोक लाज की परवाह न करने वाली सरकारें कुछ भी कह सकती हैं, लेकिन सीबीआई को स्वायत्त बताने से बड़ा और कोई मजाक नहीं हो सकता। बोफोर्स दलाली प्रकरण की जांच के नाम पर जो कुछ हुआ उससे यह साफ हो गया कि इस देश में उच्च पदस्थ एवं प्रभावशाली व्यक्तियों के भ्रष्टाचार की जांच नहीं हो सकती। यह किसी घोटाले से कम नहीं कि भ्रष्टाचार के एक मामले की जांच में भ्रष्ट आचरण का ही परिचय दिया गया। सीबीआई ने इस मामले की जांच में जो करोड़ों रुपये खर्च किए उन्हें वस्तुत: दलाली की रकम में ही जोड़ दिया जाना चाहिए। क्या कोई यह स्पष्ट करेगा कि सीबीआई के मौजूदा अधिकारी झूठ बोल रहे हैं या पूर्व अधिकारी ऐसा कर रहे हैं? नि:संदेह दोनों ही सही नहीं हो सकते। हो सकता है कि बोफोर्स प्रकरण का शर्मनाक तरीके से यह जो पटाक्षेप हुआ वह राजनीतिक हानि-लाभ में तब्दील न हो, लेकिन यह मामला सदैव इसकी याद दिलाता रहेगा कि हमारे देश में जांच को आंच दिखाने का काम कैसे किया जाता है?

3 टिप्‍पणियां:

  1. एक अरब लोगो का देश ओर एक वेटर बनी हमारी रानी, ओर हमे वेबकुफ़ बना रही है... दोष किस का? क्यो नही इसे बाहर करते.

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  2. वाह ये तो सीबीआई को दोहरी सफ़लता मिली है...अभी हाल ही में सीबीआई ने आरुषि मर्डर केस में भी बहुत नाम कमाया ....कमाल है..हमारा तो भरोसा बढता ही जा रहा है....कि सीबीआई निकम्मी हो गयी है...

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  3. चलो, हमारी तरफ से भी बधाई , मगर हम ये बधाई दे किसको रहे है, भैया को या फिर उसकी मम्मी को ? हम्म्म... भैया कहते है कि ये जनाव सिस्टम में परिवर्तन लायेगे, ये देख लो इनके परिवर्तन..... My foot !

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