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मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

नानक वाणी में प्रेमिका हैं प्रभु !!

गुरु नानक का जन्म रावी नदी के तटवर्ती गांव तलवंडी में वर्ष 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। बाद में यह स्थान 'ननकाना साहब' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। नानक की बड़ी बहन नानकी के नाम का अनुकरण करते हुए पिता कालू मेहता ने अपने बेटे का नाम नानक रखा था। नानक बचपन से ही प्रतिदिन संध्या समय मित्रों के साथ बैठकर सत्संग किया करते थे। उनके मित्रों में भाई मनसुख का नाम विशेष रूप से लिया जाता है, क्योंकि उन्होंने ही सबसे पहले नानक की वाणियों का संकलन किया था। कहते हैं कि नानक जब वेई नदी में उतरे, तो तीन दिन बाद प्रभु से साक्षात्कार करने पर ही बाहर निकले। 'ज्ञान' प्राप्ति के बाद उनके पहले शब्द थे 'एक ओंकार सतनाम' विद्वानों के अनुसार, 'ओंकार शब्द तीन अक्षर '', '' और '' का संयुक्त रूप है। '' का अर्थ है जाग्रत अवस्था, '' का स्वप्नावस्था और '' का अर्थ है सुप्तावस्था। तीनों अवस्थाएं मिलकर ओंकार में एकाकार हो जाती हैं।'

लोगों में प्रेम, एकता, समानता, भाईचारा और आध्यात्मिक ज्योति का संदेश देने के लिए नानक ने जीवन में चार बड़ी यात्राएं कीं, जो 'चार उदासी' के नाम से प्रसिद्ध हैं। उनकी यात्राओं में उनके साथ दो शिष्य बाला और मरदाना भी थे। गुरु नानक का कंठ बहुत सुरीला था। वे स्वयं वाणी का गान करते थे और मरदाना रबाब बजाते थे।

नानक की समस्त वाणी 'गुरु ग्रंथ साहिब' में संकलित है। अपने काव्य के माध्यम से नानक ने पाखंड, राजसी क्रूरता, नारी गुणों, प्रकृति चित्रण, अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों का सजीव चित्रण किया है। अपने काव्य में नानक ने प्रभु को 'प्रेमिका' का दर्जा दिया है। नानक का मत था कि अपने आप को उसके प्रेम में मिटा दो, ताकि तुम्हें ईश्वर मिल सके। जब पूर्ण विश्वास के साथ हम सब कुछ प्रभु पर छोड़ देते हैं, तो प्रभु स्वयं हमारी देख-रेख करता है। गुरु नानक ने गृहस्थ जीवन अपनाकर समाज को यह संदेश दिया कि प्रभु की प्राप्ति केवल पहाड़ों या कंदराओं में तप करने से ही प्राप्त नहीं होती, बल्कि गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी आध्यात्मिक जीवन अपनाया जा सकता है। नानक का मत था कि वे सभी उपाय, जिनसे आप प्रभु का साक्षात्कार कर सकते हैं, अपनाते हैं, तो जीवन में सात्विकता आती है। इससे आपका मन आनंद, प्रेम और दया भाव से भरा रहता है। वे किसी व्यक्ति, समाज, संप्रदाय या देश के नहीं थे, बल्कि सबके थे और सब उनके। नानक के अनुसार, न कोई हिंदू है, न मुसलमान। सारा संसार मेरा घर है और संसार में रहने वाले सभी लोग मेरा परिवार है।

आज सभी लोग सांसारिक तृष्णा में लिप्त हैं और सतही जीवन जी रहे हैं। जीवन की वास्तविकता से दूर जाने के कारण जीवन में नीरसता, कुंठा और निराशा बढ़ती जा रही है। हम छोटी सी बात पर लड़ने-मरने को तैयार हो जाते हैं। हमारा अन्त:करण हमसे छूटता जाता है और हम अधिक तनाव में रहने लगते हैं। ऐसे में नानक की वाणी तपते मन में ठंडी फुहारों के समान हैं।

-डॉ. सुरजीत सिंह गांधी

2 टिप्‍पणियां:

  1. एक ओंकार सतनाम'। जनाब इस का अर्थ है कि वो एक ही है, जिस का कोई आकार नही, ओर उस ना जाप करना, उस का नाम लेना ही सत्य है, गुरु नानक देव जी एक सच्चे साधु थे, अभी तक उन के बाद उन जेसा कोई भी नही आया. बहुत सुंदर लेख लिखा आप का ओर डॉ. सुरजीत सिंह गांधी जी का धन्यवाद

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  2. गुरु नानक के बारे में बहुत अच्छी जानकारी दी है।

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