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रविवार, 4 अक्टूबर 2009

नए अवतार में देवी


बचपन में उनकी पूजा 'जीवित देवी' के रूप में होती थी। अब दुनियादारी भरी जिंदगी में लौटने के बाद रश्मिला शाक्य कैफे में दोस्तों से मिलती है, बॉलीवुड संगीत सुनती है और कंप्यूटर सॉफ्टवेयर डेवलपर के रूप में कॅरियर बना रही हैं। वे स्नातक उपाधि प्राप्त करने वाली इकलौती 'देवी' है।
पड़ोसी देश नेपाल में किसी कमउम्र बच्ची को जीवित देवी के रूप में पूजने की परंपरा शताब्दियों से चली आ रही है। स्थानीय शाक्य समुदाय से चुनी जाने वाली इस लड़की को अपना बचपन एक छोटे महलनुमा मंदिर में बिताना पड़ता है। पुजारियों के अनुसार कुमारी बनने के लिए लड़की का शरीर विशिष्ट गुणसंपन्न होना चाहिए। इसके साथ ही उसको अपनी बहादुरी साबित करने के लिए एक कमरे में अकेले बैठकर भैंसे की बलि का दृश्य बिना रोये देखना पड़ता है। सिर्फ त्योहारों के अवसर पर ही कुमारी को राजधानी काठमांडू में भक्तों के दर्शनार्थ बाहर घुमाया जाता है।
4 साल की उम्र में कुमारी बनने के बाद लगभग 8 सालों तक मध्य काठमांडू स्थित कुमारी मंदिर में रहने वाली रश्मिला कहती है,''देवी बनने का मतलब बचपन को अकेले बिताना है। हर सुबह पुजारी मेरी पूजा करता था। मंदिर की रसोई में सिर्फ मेरे लिए खाना बनाया जाता था। कभी-कभी मेरी देख-रेख करने वाले मुझे झरोखे पर बैठने की अनुमति देते थे। सड़क पर गुजरते लोगों और वाहनों को देखना मुझे आश्चर्यचकित कर देता था।''
कुमारी के तरुणावस्था में पहुँचने पर उसे अपवित्र मानते हुए नयी कुमारी चुन ली जाती है। इसके बाद का जीवन आसान नहीं होता। उन्हे सामान्य जीवन बिताने में काफी संघर्ष करना पड़ता है और वर्षो की छूटी पढ़ाई को भी पूरा करना पड़ता है। कुमारी के रूप में जीवन बिता चुकी लड़की से शादी होते ही पति की असमय मृत्यु के अंधविश्वास के कारण इनमें से कई की कभी शादी नहीं होती।
अब रश्मिला अपने परिवार के साथ काठमांडू के एक साधारण से घर में रहती हैं। कुमारी मंदिर में वे देवी की पारंपरिक पोशाक और पूरे श्रंगार में नजर आती थीं, लेकिन अब ट्यूनिक और ट्राउजर पहनना पसंद करती है। आज एक आईटी कंपनी के कर्मचारी के रूप में कॅरियर संवार रही रश्मिला स्वीकारती हैं, ''कुमारी के रूप में हर कोई मेरी पूजा और सम्मान करता था। इसके बाद शुरुआत में साधारण जीवन बिताने में कठिनाई तो हुई, लेकिन अब मैं इसकी अभ्यस्त हो रही हूं।''
नेपाली राजवंश के सदस्य कुमारी देवी से प्रतिवर्ष आर्शीवाद लेते थे। राजशाही खत्म होने के बाद आधुनिकता की ओर बढ़ते नेपाल में इस प्रथा को अमानवीय मानते हुए समाप्त किए जाने की मांग उठने लगी है। पिछले साल सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद कुमारी को महल में रहने के दौरान पढ़ने और परीक्षा देने की अनुमति दी जाने लगी है।
..लेकिन रश्मिला नहीं चाहतीं कि यह परंपरा खत्म हो, ''कुमारी नेपाल में धार्मिक एकता बनाए रखने में मददगार है, क्योंकि उनकी पूजा बौद्ध और हिन्दू दोनों ही करते है। कुछ परिवर्तन तो ठीक है, लेकिन इस परंपरा को पूरी तरह खत्म नहीं होना चाहिए। इसमें सुधार के तौर पर साधारण जीवन में लौटने के बाद कुमारी को कॉलेज में स्कॉलरशिप दी जानी चाहिए। सरकार को कुमारी बनने वाली बच्चियों को सामान्य जीवन के लिए भी तैयार करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने चाहिए!''

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