अपनी एक पुरानी पोस्ट का लिंक दिए जाता हूँ ,
हो सके तो समझ लेना क्या कहना चाहता हूँ |
हूँ हिन्दू.....गर्व है मुझ को, पर मुस्लिम को भी गले लगता हूँ ,
हो सके तो समझ लेना क्या कहना चाहता हूँ |
खून चाहे तेरा हो, चाहे मेरा हो...क्यों बहे बेकार, नहीं समझ पाता हूँ ,
हो सके तो समझ लेना क्या कहना चाहता हूँ |
रास्ते चलते चलते आये मंदिर, मज्जिद, गुरद्वारा या हो चर्च...सब पर ही शीश झुकता हूँ ,
बेहतरीन अभिव्यक्ति..अपनी सुंदर बात समझाने का..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शिवम जी
समझ गये जी!! आभार.
जवाब देंहटाएंशिवम भाई,
जवाब देंहटाएंह से हिंदू...म से मुसलमान...
ह और म को मिला दो तो बनता है हम...
जय हिंद...
बहुत अच्छा लिखा है।
जवाब देंहटाएंबधाई!
समझ गये बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है
जवाब देंहटाएंहम तो समझ गए जी....लेकिन हो सकता है कि कुछ लोगों को शायद ये बात समझ में न ही आए !
जवाब देंहटाएंसमझने वाले समझ गए हैं ना समझे ....
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