महंगाई के इस जमाने में सस्ता माल मिले तो कौन नहीं लपकना चाहेगा। अब यही काम रामलीला कमेटियां कर रही हैं तो इसमें उनका क्या कसूर। जी हां, चीन आ रहे सस्ते माल ने राम, रावण और सीता का कलेवर बदल दिया है। उनकी पोशाक से लेकर तीर-धनुष और तूणीर तक पर 'मेड इन चाइना' की मुहर आसानी से देखी जा सकती है।
कमेटी के संचालक भी खुश है कि एक तो सस्ता माल, ऊपर से कलाकारों पर चीन में बनी ड्रेस फबती भी खूब है। यही नहीं, हिंदुस्तानी माल के मुकाबले टिकाऊ भी है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे गोंडा में रामलीला कमेटी चलाने वाले पंडित राम कुमार कहते हैं, 'इस बार रामलीला के पात्रों की पोशाक विदेशों खासकर चीन से आयात की गई है।' पहले ये पोशाकें तमिलनाडु के मदुरै और पश्चिम बंगाल के कोलकाता से मंगाई जाती थी। लेकिन अब सब कुछ बदल गया है। चीन से आयातित पोशाक व अन्य साजो-सामान न सिर्फ देखने में आकर्षक हैं, बल्कि सस्ते और टिकाऊ भी हैं।
लखनऊ के अमीनाबाद में श्री गोपाल चित्रशाला के मालिक प्रेम कुमार ने भी बताया कि चीन से आए साजो-सामान इस बार ज्यादा पसंद किए गए। पिछले तीस साल से पोशाक और अन्य साजो-सामान किराए पर दे रहे प्रेम बताते हैं, 'पहले रामलीला में इस्तेमाल होने वाला सारा सामान पड़ोसी राज्यों से आता था, लेकिन अब तो चीनी माल का बोलबाला है। इससे हमारा बिजनेस भी बढ़ गया है।' संगम चित्रशाला के मालिक मुन्ना लाल भी प्रेम कुमार की बातों पर मुहर लगाते नजर आते हैं। वे कहते हैं, 'पहले तो साजो-सामान आता था वह काफी भारी-भरकम होता था, जबकि चीन से आयातित माल काफी हल्का है। इसके अलावा चीनी सामानों में ज्यादा चमक-दमक भी है।'
रामलीला के बाद उसके पात्रों की पोशाक, मुखौटा, तीर, धनुष, गदा और तलवार का क्या होता है, यह पूछे जाने पर मुन्ना कहते हैं कि उनका इस्तेमाल स्कूलों और थियेटर समूहों द्वारा किया जाता है।
हा हा हा महगाई कुछ भी करवा सकती है मिश्रा जी
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