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गुरुवार, 10 सितंबर 2009

..तो बीमा क्षेत्र में भूचाल आना तय

अगर यह रिपोर्ट सरकार ने स्वीकार कर ली तो समझ लीजिए कि घरेलू जीवन बीमा क्षेत्र में एक भारी भूचाल आना तय है। हम बात कर रहे हैं कि 'वित्तीय सलाहकार और वित्तीय साक्षरता' पर पीएफआरडीए के अध्यक्ष डी. स्वरूप की अगुवाई में तैयार रिपोर्ट की। रिपोर्ट ने जीवन बीमा, म्यूचुअल फंड समेत अन्य सभी वित्तीय सेवाओं पर ग्राहकों से कमीशन लेने की मौजूदा परंपरा को समाप्त कर उसके स्थान पर शुल्क आधारित व्यवस्था शुरू करने की सिफारिश की गई है। इससे जीवन बीमा कंपनियां सबसे परेशान हैं। उन्हें डर है कि इससे बीमा एजेंट के पेशे का आकर्षण जाता रहेगा।
पेंशन क्षेत्र की नियामक एजेंसी पीएफआरडीए के अध्यक्ष ने बुधवार को इस मुद्दे पर आम राय बनाने के लिए विभिन्न तरह की वित्तीय सेवा देने वाली कंपनियों के साथ लंबी बातचीत की। स्वरूप ने बाद में संवाददाताओं को बताया कि दुनिया भर में अब शुल्क आधारित वित्तीय सेवाओं का प्रचलन बढ़ रहा है। आस्ट्रेलिया ने इसे लागू कर लिया है। ब्रिटेन में वर्ष 2012 से लागू करने की तैयारी है। अमेरिका में शुल्क और कमीशन दोनों आधारित व्यवस्था है। दुनिया भर की नियामक एजेंसियां मान रही हैं कि वित्तीय क्षेत्र में पारदर्शिता लाने के लिए शुल्क आधारित व्यवस्था ही होनी चाहिए।
इस व्यवस्था के तहत बीमा कंपनियां या म्यूचुअल फंड्स अपने एजेंटों या उत्पादों की बिक्री करने वाले अन्य सलाहकारों को कमीशन नहीं देंगे, बल्कि वे ग्राहकों से ही शुल्क वसूलेंगे। अभी समिति ने केवल इस बारे में ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार की है, लेकिन बीमा कंपनियों पर मानो बिजली टूट गई हो। उन्होंने हाल ही में जीवन बीमा काउंसिल की अध्यक्षता में एक बैठक भी की है ताकि आगे की रणनीति बनाई जा सके।
सरकार ने संकेत दिए हैं कि वह इस सिफारिश को स्वीकार करेगी। स्वरूप तो यह कह रहे हैं कि अभी रिपोर्ट को अंतिम रूप नहीं दिया गया है, लेकिन उनके रुख से साफ है कि इस सिफारिश को बदलने की उनकी मंशा नहीं है। उन्होंने सवालिया लहजे में पूछा कि कंपनियों के प्रतिनिधियों का तर्क है कि इससे संबंधित कंपनी या उद्योग का क्या होगा? ये कंपनियां ग्राहकों के हितों की बात क्यों नहीं कर रही हैं।
दूसरी तरफ बीमा कंपनियां कह रही हैं कि भारत में बीमा के प्रचलन को बढ़ाने के रास्ते में यह सुझाव एक बड़ी बाधा बन सकता है। जहां तक ग्राहकों के हित की बात है तो बीमा नियामक एजेंसी इरडा अपने स्तर पर लगातार प्रयास कर रही है।
रिपोर्ट में देश में सरकार के खर्चे से वित्तीय साक्षरता को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम चलाने की भी बात कही गई है। स्वरूप का कहना है कि बगैर वित्तीय साक्षरता के निवेशकों के हितों की सुरक्षा करने के कोई भी उपाय पूरी तरह से सफल नहीं हो सकते। उन्होंने बताया कि विभिन्न पक्षों के साथ बातचीत करने के बाद महीने के अंत तक रिपोर्ट सरकार को सौंप दी जाएगी। समिति में रिजर्व बैंक, इरडा, बाजार नियामक सेबी के भी प्रतिनिधि शामिल हैं।

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