सदस्य

 

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

एक खुला पत्र राज भाटिया जी के नाम

राज भाई,
प्रणाम |
आपका नया पोस्ट पढ़ा,"भ्रुण हत्या" के विषय में | बढ़िया पोस्ट लगाई है आपने| बहुत अच्छा लगता है जब कोई अपना, दूर होते हुए भी, आप के बारे में सोचे,आपका ख्याल रखे | सच में बहुत ही सुखद अनुभूति होती है |  है ना ??
पर कुछ बाते थी जो आप को बताना चाहता था साथ साथ यह भी विचार आया कि बाकी लोगो को भी इस विषय में पता चलना चहिये | तब इस पोस्ट को लगाने का ख्याल आया | अगर कोई भूल हो या आपको यह गलत लगे तो अपने इस छोटे भाई को बेहिचक डांट दें | आपका अधिकार है |

आपकी आज्ञा से अपनी बात शुरू करता हूँ :-
कितनी भी कोशिशे करे आप और हम यह कंस और रावण इतनी आसानी से पीछा नहीं छोड़ने वाले !! जब तक एक आम हिन्दुस्तानी अपनी सोच नहीं बदलेगा कुछ भी नहीं हो सकता | आप के और मेरे, अपने अपने ब्लोग्स पर लिखने से कुछ ना होने का |  
मैनपुरी, जहाँ मैं रहेता हूँ, उत्तर प्रदेश के 'politically highlighted cities' में से है | In fact presently Shri Mulayam Singh Yadav is the MP from here. सिवाए अपनी राजनीति के मैंने पिछाले १२ सालो में यहाँ के किसी नेता को "GIRL CHILD" के विषय में बोलते या "भ्रुण हत्या" पर बोलते नहीं सुना | बात लौट फ़िर के वही आ जाती है कि आम आदमी की सोच को बदलना होगा| यहाँ अब भी लड़की के पैदा होने पर एक प्रकार का शोक सा मनाया जाता है, कोई मुबारकबाद नहीं देता बल्कि यह कहेते बहुतों को सुना है कि, "चलो कोई बात नहीं, अगली बार लड़का होगा |" और यह उन लोगो कि बात कर रहा हूँ जोकि, so called , पढ़े लिखे है | गरीब को तो साहब, जाने ही दीजिये | इसी अगली बार के चक्कर में मेरे खुद के जानने वाले ३-४ 'सज्जनों' के ४ -४ लड़कियां बस इतनी गनीमत है कि लड़कियों को यह दुनिया देखने को मिली | एक चौबेजी तो इतना गुस्सा हुए यहाँ के लोगो पर कि दूसरी बार लड़का होने पर भी मिठाई का एक दाना नहीं खिलाया किसी को, बोले, "मेरे जब पहेली लड़की हुयी तब सब रोते हुए आये मेरी दी हुयी दावत में, आज जब लड़का हुआ तब सब को दावत चाहिए ?? मेरी लड़की मुझ पर जब बोझ नहीं है तब इस सब को इतना बुरा क्यों लगता है?" क्या समझाता उनको ?? चुपचाप देखता रहा और खुश होता रहा कि चलो एक तो थोडा खुली विचारधारा का मिला | थोडी खुली इस लिए कि दूसरी कोशिश तो उन चौबे जी ने भी करी ही लड़के की चाहत में जब की पहेली लड़की अभी सिर्फ डेढ़ साल (१+१/२) की है | अगर लड़की ही होती तो फ़िर ??  
समझ के परे हो जाती है यह सोच !!
सरकार एसा नहीं कि कुछ कर ही नहीं रही है, इस बारे में, पर साफ़ है कि वो काफी नहीं है | अभी बहुत काम बाकी है | काम बाकी केवल सरकार का नहीं बल्कि मेरा, आपका.......... हम सबका ||
एक इंसान की सोच बदलने में ही बहुत समय लगता है, हम और आप तो एक समाज की बात कर रहे है | 
मेरा मानना है समाज का यह बदलाव ऊपर से नहीं बल्कि नीचे से शुरू करना होगा |
यहाँ, मैनपुरी में, अपने आसपास मैं इसी कोशिश में लगा रहेता हूँ कि किसी तरह आदमी के अन्दर की उस सोच को ही मार सकूं जो लड़कियों को 'बोझ' का दर्जा दिलाती है तो बहुत बड़ी सफलता मिलेगी उसके अन्दर के "कंस" को मरने में |
शायद येही सब से बड़ा कर्म होगा, मेरा, इस मानव योनी का !!  
सफलता मिलती भी है कभी , कभी नहीं भी .... पर मैं लगा रहूँगा .... यह वादा है मेरा....अपने आप से ||  
मेरी कोई अभिलाषा नहीं की मैं कोई नेता या समाज सेवी कहेलाऊ |
बस एक प्रयास है जो कर रहा हूँ , अपनी अजन्मी बेटी को समाज में, पूरे हक के साथ, उसका स्थान दिलवाने के लिए|
सफलता - असफलता सब  'उसके' हाथ |
फ़िर भी.........." दिल के खुश रखने को... 'ग़ालिब'....यह ख्याल अच्छा है |"
क्यों है ना ??
आप भी लगे रहे वहाँ से यहाँ के लिए |

सादर आपका 
शिवम् मिश्रा 
मैनपुरी, उत्तर प्रदेश |

7 टिप्‍पणियां:

  1. आज के समाज में भी ऐसी बातें होती है .. पढकर आश्‍चर्य होता है !!

    जवाब देंहटाएं
  2. आपका हिन्दी में लिखने का प्रयास आने वाली पीढ़ी के लिए अनुकरणीय उदाहरण है. आपके इस प्रयास के लिए आप साधुवाद के हकदार हैं.

    आपको हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  3. आपका दर्द समझा जा सकता है -मेरी शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  4. आपको इस प्रयास के लिये बहुत बहुत शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बधाई।
    मगर आपकी चिट्ठी का जवाब भाटिया जी ने दिया नही है।

    जवाब देंहटाएं
  6. नमस्कार शिवम् मिश्रा जी, मुझे खुशी हुयी कि आप ने कंधे से कंधा मिला कर मेरी बात को फ़िर से उठाया,हम पुरे समाज को नही बदल सकते, लेकिन एक छोटी सी आस की किअरन तो देख सकते है, हम उन गन्दे विचारो को एक छोटी सी चिंगारी तो दे सकते है, ओर हमारे इस प्रयास से अगर एक दो जाने भी बच जाये तो कितना अच्छा होगा,
    समाज को बदलने के लिये हमे अपने नाम की जरुरत नही बस लगे रहो अपनी धुन मै एक दो फ़िर चार धीरे धीरे लोग चलते रहे गे आप के पीछे, आप जिन्दा हो या ना हो आप का नाम हो ना हो लेकिन आप की लगाई वो चिंगारी कभी बुझेगी नही.
    मै दहेज के विरुध हुं, मेने शादी कि बिना दहेज के, मेरे भाई ने शादी की मेरी पहली शर्त थी कि जब दहेज नही लिया जायेगा तभी मै आऊंगा बस मेने जो किया उस के बाद मेने कभी किसी को जोर नही दिया, लेकिन मेरे संग मेरे कई अन्य मित्रो ने भी बिना दहेज के शादी की, आप पहल तो करो..
    समाज मै हर कदम पर आप को विरोध तो मिलेगा, लेकिन अगर आप अच्छा काम कर रहे है तो आप को डर नही होगा, क्योकि ओच्छे काम भी तो इस समाज मै होते है, उन का विरोध कम होता है, इस लिये अगर आप अपने आस पास कोई बुराई देखो तो अपनी तरफ़ से, अपने संग के लोगो को ले कर उस बात का विरोध जरुर करो, लोगो को शर्म आये.... शायद सुधर जाये
    आप का धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  7. भाटिया जी ,

    हम साथ साथ है और रहेगे, भले ही कुछ इलाकाई दूरियां हो बीच में |

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों की मुझे प्रतीक्षा रहती है,आप अपना अमूल्य समय मेरे लिए निकालते हैं। इसके लिए कृतज्ञता एवं धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ।

ब्लॉग आर्काइव

Twitter