परिवार में किसी से बात नहीं कर सकते है। इनकी भाषा इनके पोते-पोतियों की समझ में नहीं आती। बेटे-बहू से भी तिरस्कार के सिवा कुछ नहीं मिला। नजीता यह हो रहा है कि यह लोग वहा के समाज से एकदम कट चुके हैं। अपना समय काटने के लिए ऐसे लोगों ने क्लबों का गठन किया है। सप्ताह में पाच दिन होने वाली क्लब की बैठकों में गपशप करके इनका समय कट रहा है। यह समस्या केवल एक देवेंद्र सिंह की नहीं हैं। बुजुर्ग समूह आज अमेरिका में सबसे तेजी से बढ़ने वाला अप्रवासी समूह है। 1990 से विदेशी मूल के पैदा हुए 65 साल से अधिक उम्र के लोगों की संख्या 27 लाख से बढ़कर 43 लाख हो चुकी है। जो देश में हाल ही में गए सभी अप्रवासियों की संख्या का 11 फीसदी है। 2050 तक इनकी संख्या 1 करोड़ 60 लाख पहुंचने का अनुमान है। केवल कैलिफोर्निया में तीन में से एक वरिष्ठ नागरिक की विदेशी मूल की पैदाइश है। दरअसल अमेरिका में जमे जमाए लोगों द्वारा अपने बूढ़े माता-पिता को पास बुलाने की प्रक्त्रिया में तेजी आई है।
विशेषज्ञों के अनुसार अमेरिका में बुजुर्ग समूह आज सबसे अलग-थलग पड़े लोगों में से एक हैं। हाल ही में आने वाले 75 फीसदी बुजुर्ग प्रवासियों को अंग्रेजी भाषा से दिक्कत है। ज्यादातर लोग गाड़ी नहीं चला सकते हैं। भाषा की दिक्कत के चलते इन लोगों का सामाजिक जुड़ाव नहीं हो पा रहा है। कई बार तो इस समस्या के चलते ऐसी संस्कृति को आत्मसात कर चुके अपने बच्चों के साथ ही इनका टकराव हो रहा है। कई अध्ययनों में यह बात भी सामने आई है कि इन सब कारणों के चलते अप्रवासी बुजुर्गो में अवसाद जैसे मानसिक विकार तेजी से फैल रहे हैं। 1965 में अमेरिकी अप्रवासन नीति में बदलाव करके वहा के स्थाई [नेचुरलाइच्ड] नागरिकों को अपने माता-पिता को बुलाने की छूट दी गई, लेकिन ये बुजुर्ग अप्रवासी अपने बच्चों द्वारा नाजायज फायदा कमाने का साधन बन गए। बच्चों ने इनकी मदद का भरोसा दिया। पर इनका नाम सरकार द्वारा चलाई जा रही सप्लीमेंटल सिक्योरिटी इनकम और फूड स्टाप कार्यक्त्रमों में दर्ज करा दिया। मिलने वाली सरकारी सहायता से खुद तो ऐश कर रहे हैं, जबकि इसका नाममात्र का हिस्सा बुजुर्ग पिता को देते हैं। इसे विडंबना ही कहेंगे कि देवेंद्र सिंह जैसे लाखों लोग दूसरे मुल्कों से अपने बच्चों के पास आसरा लेने आते हैं। खाली समय में घर में अपने नाती पोतों की देखभाल करते हैं। छोटी-मोटी खरीदारी भी कर देते हैं। बच्चे को पार्क में ले जाते हैं। लेकिन उनके बच्चे ही एक दिन अपनी प्राइवेसी का हवाला देकर इनको घर से बेघर कर देते हैं।
सच है शिवम जी. आज अनेक ऐसे बुज़ुर्ग माता-पिता हैं जो अपनी ही संतान द्वरा दिये गये इस दंश को झेल रहे हैं.सुन्दर आलेख. बधाई.
जवाब देंहटाएंbhut hi sachchhi baat kahi aap ne
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