राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग [एनसीसी] ने कहा है कि लड़ाई झगड़े में मारे गए किसी पालिसी धारक की आपराधिक पृष्ठभूमि के कारण कोई जीवन बीमा कंपनी नामिनी के दावा खारिज नहीं कर सकती। जब तक कि यह साबित न हो जाए कि लड़ाई मृतक ने शुरू की थी।
लाइफ इंश्योरेंस कंपनी [एलआईसी] ने 1990 में मारे गए गुलबीर सिंह के एक नामिनी के दावे को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि मृतक ने अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि छिपाई थी, जो पालिसी के नियमों के खिलाफ है।
न्यायमूर्ति अशोक भान की अध्यक्षता वाले सर्वोच्च उपभोक्ता निकाय ने कहा कि एलआईसी दावा उसी स्थिति में खारिज कर सकती है, जब साबित हो जाए कि पालिसीधारी ने ही झगड़े की शुरुआत की थी और उसमें मारा गया। एक पूर्व के फैसले पर ध्यान दिलाते हुए फैसले में कहा गया है कि यहां तक कि पालिसीधारी की पृष्ठभूमि आपराधिक होने के मामले में भी यह मानना कठिन है कि हत्या दुर्घटनावश नहीं हुई है, जब तक कि लड़ाई उसने शुरू न की हो।'
सिंह ने फरवरी, 1990 में एलआईसी की तीन पालिसी ली थीं। पालिसीधारी के मारे जाने के बाद यह बात सामने आई कि उसके खिलाफ कई आपराधिक मामले लंबित थे। इस आधार पर एलआईसी ने दावा खारिज कर दिया। आयोग ने स्पष्ट कहा कि पालिसीधारी ने मांगी गई पूरी जानकारी एलआईसी को दी थी, इसलिए उस पर कोई उत्तरदायित्व नहीं बचता।
यह सचमुच सही फैसला है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी दी आप ने ,धन्यवाद
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