उत्तर प्रदेश से उद्योग-धंधों का दूसरे राज्यों में पलायन जितना आश्चर्यजनक है उतना ही आघातकारी भी। इस पलायन से यह भी साबित होता है कि उद्योग-धंधों के विकास के मामले में उत्तर प्रदेश बिहार से भी कहीं अधिक खराब स्थिति में पहुंच गया है। इसका सीधा मतलब है कि उत्तर प्रदेश में उद्योगों के विकास के लिए जबानी जमाखर्च के अतिरिक्त और कुछ नहीं किया जा रहा है। यह तो समझ में आता है कि अनेक रियायतों और सहूलियतों के कारण उत्तर प्रदेश के उद्योग उत्तराखंड की ओर आकर्षित हो रहे थे, लेकिन उनके बिहार की ओर रुख करने से तो यह स्पष्ट हो रहा है कि उत्तर प्रदेश उद्योगों के लिहाज से कतई उपयुक्त नहीं रह गया है। बात केवल यही नहीं है कि बिहार उत्तर प्रदेश के उद्योगों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल हो रहा है, बल्कि अन्य अनेक मामलों में भी वह आगे निकलता जा रहा है। योजना आयोग की मानें तो कृषि के आधुनिकीकरण में बिहार ने उत्तर प्रदेश की तुलना में उल्लेखनीय प्रगति की है।
यह निराशाजनक है कि राज्य सरकार उन कारणों से भलीभांति अवगत होने के बावजूद एक प्रकार से हाथ पर हाथ धरे बैठी है जिनके चलते उत्तर प्रदेश में न केवल नए उद्योग नहीं स्थापित हो पा रहे हैं, बल्कि स्थापित उद्योग दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे हैं। पता नहीं क्यों यह समझने से इनकार किया जा रहा है बिजली और बुनियादी विकास के अभाव में उद्योगों को आकर्षित नहीं किया जा सकता? राज्य सरकार उद्योगों के विकास के मामले में चाहे जैसा दावा क्यों न करे, लेकिन यथार्थ यह है कि वर्तमान में उसकी उपलब्धियों के खाते में कुछ भी नजर नहीं आता। इस पर आश्चर्य भी नहीं, क्योंकि इस समय उसकी एकमात्र प्राथमिकता पार्को और स्मारकों का निर्माण नजर आ रही है। यद्यपि राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय की फटकार के बाद स्मारकों और पार्को के निर्माण पर स्वेच्छा से रोक लगा दी है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि उसकी प्राथमिकता भी बदल गई है। यदि उत्तर प्रदेश शासन की प्राथमिकता नहीं बदली तो यह तय है कि आने वाले समय में यह राज्य हर मामले में बिहार और अन्य पिछड़े राज्यों से भी पीछे रह जाएगा।
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