देश के स्वतंत्रता आंदोलन में लोगों में आजादी का जोश भरने वाले तमिल कवि सुब्रह्माण्यम भारती महाकवि के नाम से विख्यात हैं और उनकी कविताएं सभी भारतीय भाषाओं में अनुवादित होकर लोकप्रिय हुई।
भारती एक ऐसे कवि थे, जिन्होंने न केवल आजादी के तराने गाए, बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रियता से भाग भी लिया। इस आंदोलन के दौरान भारती महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, श्री अरविंद और वीवीएस अय्यर जैसे प्रमुख नेताओं के काफी करीब रहे।
अरविंद चेतना सोसायटी के अध्यक्ष डा. ज्ञानप्रकाश ने बताया कि भारती उस समय अरविंद के काफी नजदीक आए जब वह पांडिचेरी रहने आए थे। श्री अरविंद के साथ उन्हें राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा मिलती थी। डा. ज्ञानप्रकाश ने बताया कि श्री अरविंद और भारती दोनों ही कवि थे।
अरविंद के कारण भारती का झुकाव वेदों की तरफ हुआ। इसी कारण भारती ने वेदों के बारे में भी काफी लिखा है। भारती का जन्म 11 दिसंबर 1882 को तमिल गांव इट्टायापुरम में हुआ था। उनका विवाह कम उम्र में हो गया। महज 16 साल की उम्र में वह बनारस चले गए जो उनके जीवन को बदलने वाला सबसे निर्णायक मोड़ साबित हुआ। अगले चार सालों तक उन्हें जहां जीवन में तमाम तरह के अनुभवों से गुजरना पड़ा वहीं उन्हें देश को समझने का भी मौका मिला।
बनारस में रहकर भारती ने अंग्रेजी, हिंदी और संस्कृत का ज्ञान हासिल किया। इसी शहर में आकर उन्होंने अपनी वेषभूषा बदल ली और पगड़ी पहननी शुरू कर दी। 1905 में उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस के सत्र में हिस्सा लिया। भारती की बनारस से लौटते समय स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता से भेंट हुई। इस मुलाकात ने नारी के प्रति भारती के नजरिए को बदल दिया। वह नारी को शिक्षित करने के प्रबल पक्षधर बन गए।
भारती ने कुछ दिनों तमिल पत्रकारिता में सक्रिय भूमिका निभाई और कई पत्र पत्रिकाओं में काम किया। उन्होंने 1907 में कांग्रेस के ऐतिहासिक सूरत सम्मेलन में भाग लिया। इस सम्मेलन में भारती ने तिलक और श्री अरविंद के नेतृत्व वाले गरमपंथी धड़े का समर्थन किया। भारती को ब्रिटिश अधिकारी की गिरफ्तारी से बचने के लिए फ्रांसीसी शासन वाले पांडिचेरी जाना पड़ा। पांडिचेरी में उन्होंने देशभक्ति का साहित्य रचना जारी रखा।
भारती तमिल साहित्य में आधुनिकता लाने वाले कवि माने जाते हैं। तमिल में उनका सबसे लोकप्रिय महाकाव्य 'पांचाली शपथम' है। इस महान देशभक्त कवि का निधन 40 वर्ष से भी कम उम्र में 11 सितंबर 1921 को हुआ।
सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से इस महान देशभक्त कवि को शत शत नमन |
पूरे दिन में हमारे साथ जो जो होता है उसका ही एक लेखा जोखा " बुरा भला " के नाम से आप सब के सामने लाने का प्रयास किया है | यह जरूरी नहीं जो हमारे साथ होता है वह सब " बुरा " हो, साथ साथ यह भी एक परम सत्य है कि सब " भला " भी नहीं होता | इस ब्लॉग में हमारी कोशिश यह होगी कि दिन भर के घटनाक्रम में से हम " बुरा " और " भला " छांट कर यहाँ पेश करे |
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