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शनिवार, 5 सितंबर 2009

सर्जरी को सलाम - ..आखिर दिल को मिली जगह


गत 25 अगस्त को मुजफ्फरपुर के एक मातृसदन में सीतामढ़ी के चंदर मांझी की पत्‍‌नी विभा ने ऐसे शिशु को जन्म दिया, जिसका दिल शरीर के बाहर धड़क रहा था। यह देख कर सामान्य लोग ही नहीं, अस्पताल के चिकित्सक भी हैरत में थे। एक तरफ कुदरत का करिश्मा कि बच्चा पूरी तरह स्वस्थ, दूसरी तरफ चुनौती यह कि बच्चे को सामान्य जीवन कैसे दिया जाए? चिकित्सकों ने इसे मेडिकल साइंस के लिए बड़ा इम्तिहान माना। यह न सिर्फ राज्य, बल्कि देश की भी पहली घटना है। इससे पूर्व 19 अगस्त, 1975 को फिलाडेल्फिया में जन्मे क्रिस्टोफर हाल नामक बच्चे का दिल भी शरीर के बाहर था। इस विकृति को इक्टोपिया कार्डिस नाम दिया गया था, लेकिन सामान्य बोलचाल में इसे क्रिस्टोफर वाल कहा जाने लगा। क्रिस्टोफर को तीन साल तक अस्तपाल में रखा गया था और 21 बार उसका आपरेशन हुआ था। उसने इसी 10 अगस्त को अपना 34वां जन्म दिन मनाया। क्रिस्टोफर के बाद मानव भ्रूण के विकास में विकृति का शिकार होने वाला दूसरा शिशु विभा-चंदर का यही बच्चा है। उसके शरीर की ऊपरी वाल के साथ ही दिल का कवच (सीना) नहीं बन पाया है, जिससे दिल शरीर के बाहर है और ठीक-ठाक चल रहा है।

मीडिया में खबर आने के बाद इस बच्चे को बचाने की चिंता सार्वजनिक हुई। उसे दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भेजा गया, क्योंकि प्रदेश में न कहीं ऐसे शिशु को सघन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) में रखने का इंतजाम हो पाया, न उसका जटिल आपरेशन संभव था। राहत देने वाली खबर यह है कि एम्स के डाक्टरों ने इस मासूम के लिए जिंदगी की नई आस जगा दी |

इक्टोपिया कार्डिस से पीड़ित बच्चा 'बेबी आफ विभा' का सफल सर्जरी कर एम्स के कार्डियक सर्जन डा. ए के बिसोई ने मेडिकल के क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। गुरुवार को साढ़े तीन घंटे तक चले इस आपरेशन के बारे में उन्होंने बताया कि बच्चे के छाती के अंदर जगह की कमी के कारण उसका दिल शरीर से बाहर निकल गया था। इसलिए सर्जरी के माध्यम से शरीर के अंदर जगह बना कर हार्ट को सेट किया गया। जगह की कमी की वजह से हार्ट का कुछ हिस्सा छाती में तथा कुछ हिस्सा पेट के बीच में सेट किया गया है। उन्होंने बताया कि बच्चा अब पहले से बेहतर है और वह खुद सांस ले रहा है। अभी फिलहाल उसे संक्रमण से बचाने के लिए आईसीयू में वेंटिलेटर पर रखा गया है।

डा. ए के बिसोई ने इस नयाब सर्जरी को कोई नाम तो नहीं दिया लेकिन उन्होंने बताया कि हार्ट को शरीर के अंदर सेट करने के लिए जगह बनाना जरूरी था। इसलिए सबसे पहले के शरीर को गर्दन से नाभी तक खोलने के बाद पेट के बीच वाले भाग को ऊपर से काटा गया। इस दौरान हार्ट धड़क रहा था। इसके बाद पहले बाई फिर दाई तरफ की छाती को खोला गया। इसके अलावा पेट और छाती के मीड लाइन के डाय-फार्म को बाई तरफ तक खोल कर उसके इसके एक चौथाई भाग को काट दिया गया। इस के बाद लीवर को डिसक्नेट कर दिया गया जिससे लीवर आगे से पीछे चला गया और शरीर के अंदर जगह बन गई। इसके बाद हार्ट को घुमा कर धीरे-धीरे सेट कर दिया गया। हार्ट का कुछ हिस्सा पेट तथा कुछ हिस्सा छाती के अंदर सेट कर दिया गया। इसके बाद इसके ऊपर के बचे हिस्से को बंद कर दिया गया, लेकिन जहां से हार्ट बाहर था उस जगह छोटी सी जगह रह गई, इसलिए इसे बंद करने के लिए प्रोलेन पैच के जरिए गोरटेक्स की मदद से उस जगह को सिथेंटिक मेब्रांन से कवर कर दिया गया। इसकी खासियत यह होती है कि समय के साथ अपने आप नए उत्तक बन जाते हैं।

डा. बिसोई ने कहा कि यह एक बिड़ला मामला है, इसलिए बच्चे को संक्रमण से बचाना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि बच्चे का लीवर, किडनी, लंग्स सभी ठीक से काम कर रहा है। अभी बच्चे का सभी अंग के इधर-उधर होने की वजह से बच्चे को नए सिस्टम से तालमेल बैठाने में समय लगेगा। हम फिलहाल उसकी कड़ी निगरानी रख रहे हैं। उन्होंने कहा कि एम्स के डाक्टरों ने इस बीमारी को बतौर चैलेंज स्वीकार कर बच्चे की सर्जरी कर दी है। अब अभी यह कहना मुश्किल है कि आगे क्या होगा। बच्चे के दिल में एक छेद है तथा उसके शरीर में एक ही पंप है, इस का इलाज बाद में किया जाएगा।

वहीं अपने बच्चे की सफल सर्जरी के बारे में जान कर पिता चंदर मांझी का खुशी का ठिकाना न रहा। उसने कहा कि मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि ऐसा हो गया। उन्होंने एम्स के डाक्टरों के साथ साथ बच्चे की शुरुआती इलाज करने वाले मुजफ्फरपुर के डाक्टर राजीव कुमार को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि यह सब उन्हीं की वजह से हो पाया। चंदर मांझज्ञी ने कहा कि जब बच्चा जना और मैंने देखा तो मैं डर गया था। लेकिन डाक्टरों ने मुझे भरोसा दिलाया और आगे इलाज के लिए एम्स भेजा। उल्लेखनीय है कि बच्चे का इलाज का सारा खर्च एम्स वहन कर रही है।

ऐसे बच्चे को दस दिन तक जीवित रखना ही अपने आप में ऐतिहासिक सफलता है। एम्स के डाक्टरों ने इस सफल सर्जरी से न केवल स्वास्थ्य के क्षेत्र में नया अध्याय जोड़ दिया है, बल्कि भरोसा दिलाया है कि देश में चिकित्सा की गुणवत्ता विश्व मानक पर जगह बना चुकी है। ऐसी सर्जरी को सलाम। रही बात बिहार की, तो प्रदेश को यह मुकाम पाने के लिए अभी लंबा सफर तय करना होगा। दुआ कीजिए कि यह बिहारी शिशु क्रिस्टोफर से ज्यादा स्वस्थ और दीर्घायु हो।


5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा आलेख. भारतीय चिकित्सकों ने एक बार फिर शल्य क्रिया और अपने कौशल का सिक्का जमा दिया. दुनिया भर में यह अपनी तरह का पहला सफल प्रयास है. बच्चे को शुभकामनाएं और डॉक्टरों को बधाई!

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  2. कौन कहता है हमारे यहाँ अच्छी चिकित्सा का अभाव है ?

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  3. एम्‍स के डाक्‍टरों की मेहनत अवश्‍य सफल होगी..बच्‍चा स्‍वस्‍थ और दीर्घायु होगा !!

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  4. बहुत उम्दा..भारतीय चिकित्सकों पर हमें गर्व है.

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  5. बालक के दीर्घायु की कामना के साथ
    शल्य चिकित्सकों को सलाम।

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