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गुरुवार, 12 अगस्त 2010

एक माइक्रो पोस्ट - आज के नेता !!

जनता के अनमोल बिश्वास के कबाड़ा हो गईल.
बिधानसभा त नेता लोग के अखाडा हो गईल.
इ लोग का समझी जनता के दिकदारी.
बहस के जगे कुर्सी से करत बा लो मारामारी.
गाली में तब्दील हो गईल संस्कार के भाषा.
होता लोकतंत्र के मंदिर में मदारी के तमाशा.
जिअल मुश्किल कर देहलस डाईंन महंगाई.
लोग चलावत बाटे गरज आपन जोड़ के पाई-पाई
बाकिर जनता के परेशानी के नईखे तनको एहसास.
काहे की आपन जीवन त A/C में कटत बा बिंदास.
दूध के धोवल केहू नईखे पक्ष चाहे बिपक्ष.
सब केहू गुनाहगार बा जनता के समक.
 
( किसी मित्र के ऑरकुट प्रोफाइल पर पढ़ी थी यह कविता सोचा आप सब को भी पढवा दी जाए ! )

7 टिप्‍पणियां:

  1. रउवा तो सभे पिरोब्लेम कवित में दिए बताय
    मन फ्रेसिया गईल हमार और टीप दिए हैं लगाय....

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  2. ई माइक्रो पोस्ट बहुते निम्मन लागल।

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  3. आई हो दद्दा!! सिवम बाबू हम दू दिन बोखार में का पड़ गए कि आप त हमरा दोकानदारिए बंद कराने पर पड़ गए हैं... आपका त हिंदिए नीमन है ई सब हमनी जइसन देहाती भुच्च लोग के लिए छोड़ दीजिए..खैर मजाक अपना जगह... ई जो अप चरित्र चित्रन किए हैं ऊ एक तरफा है.. बताइए त ई नेता लोग केतना देस सेवा का भावना लेकर राजनीति में उतरता है , एकदम काँटा का बिस्तर पर सोने जैस... जीतने के बाद किसी को मिनिस्ट्री नहीं मिअता है त उसका छटपटाहट देखिए... बेचारा सेवा करना चाहता है लेकिन जब मिनिस्ट्रिये नहीं रहेगा त सेवा कईसे करेगा.. अब सब लोग बाबा आम्टे थोड़े होता है कि सपरिवार लग गए कोढी का सेवा करने... महान नेताओं का महिमा गान बेजोड़!!

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  4. सतसईया के दोहो जैसी रही आपकी ये माइक्रो पोस्ट
    बहुत बढ़िया...

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  5. बहुत सुंदर लगी आप की यह पोस्ट जी

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