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शनिवार, 12 जून 2010

जिन्होंने जज्बे से जीता जग


विश्व कप फूटबाल २०१० शुरू हो चूका है, हम में से हर एक किसी ना किसी टीम या खिलाडी का मुरीद है या रहा होगा | आइये आज जानते है कुछ ऐसे खिलाडियों के बारे में जिन्होंने अपनी लगन और जज्बे के दम पर इस जग को जीता |

पेले - फुटबॉल लीजेंड पेले भी गरीबी में ही पले-बढ़े। वे बचपन में न्यूजपेपर और मौजे से बने फुटबॉल खेला करते थे। 7 वर्ष की उम्र में वे जूतों पर पॉलिश करने का काम करते थे। पेले ने अपनी ओटोबायोग्राफी में गरीबी का चित्रण किया है।

डिएगो माराडोना -अपने सात भाई-बहनों के साथ डिएगो माराडोना विला फ्योरिटो शहर में एक ही कमरे में रहते थे। यह शहर अर्जेन्टीना में है। उनका बचपन गरीबी में बीता। गरीबी के कारण वे अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए, लेकिन फुटबॉल देखते ही उनकी आंखों में चमक आ जाती थी। बचपन से ही उनके बाएं पैर में गजब की ताकत थी, जिससे वे विपक्षी टीम के हौसले पस्त कर दिया करते थे। वे दुनिया के महान फुटबॉलरों में एक हैं।

रिवाल्डो - रिवाल्डो बचपन में कुपोषण का शिकार थे। किशोरावस्था में प्रवेश करने तक उनके शरीर की हड्डियां दिखने लगी थीं और दांत टूट चुके थे। दरअसल, उनके पिता रोड एक्सीडेंट में मारे गए थे। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं खोई और परिस्थितियों से जूझते हुए नामी फुटबॉलर बने। वे वर्ष 1999 में यूरोपियन फुटबॉलर ऑफ द ईयर बने। वर्ष 2002 में उन्होंने ब्राजील फुटबाल टीम को व‌र्ल्ड कप दिलाया।

एंटोनियो कसानो - एंटोनियो तब बहुत छोटे थे, जब उनके पिता ने उन्हें छोड़ दिया। उनकी मां ने ही उनका पालन-पोषण किया। अपनी मेहनत के बल पर ही एंटोनियो इटली के सबसे धुरंधर फुटबॉलर बने। इटली के छोटे-से शहर 'बारी' के एंटोनियो अपनी ऑटोबायोग्राफी में लिखते हैं कि मैंने अपने जीवन के 17 वर्ष गरीबी में बिताए। इसके बाद नौ वर्ष तक करोड़पति का जीवन जिया। इसका मतलब यह है कि मुझे आगे के 8 वर्ष ऐसे ही चाहिए, जैसे इस वक्त है।

कार्लोस तवेज - कार्लोस का बचपन भी बेहद तंगहाली में गुजरा, लेकिन फुटबॉलिंग टैलेंट की वजह से वे साउथ अमेरिका में बेहतरीन स्ट्राइकर बने।

रॉबर्ट डगलस - रॉबर्ट स्कॉटलैंड के नेशनल टीम के स्टार प्लेयर थे। वर्षो पहले फोर्थ वांडरर्स की ओर से खेलने के समय वे राजमिस्त्री का काम किया करते थे।

गरिंचा -मैनुअल फ्रांसिस्को डॉस सैंटोस किसी हीरो से कम नहीं हैं। प्यार से लोग उन्हें गरिंचा कहा करते। उनके पैर जन्म से ही मुड़े हुए थे। 14 वर्ष की उम्र में वे फैक्ट्री में काम करते थे। 17-18 वर्ष में उन्होंने प्रोफेशनल रूप से फुटबॉल खेलना शुरू किया। ब्राजील के दो बार विश्व कप जीतने में गरिंचा ने अहम भूमिका निभाई थी।

रोबर्टो कार्लोस -बचपन में रोबर्टो नंगे पैर बॉल में बालू भरकर खेला करते थे। बचपन में उनके परिवार की स्थिति साइकिल खरीदने तक की नहीं थी। वे अपने पिता के साथ दिन भर फार्म में भारी मशीनों को इधर से उधर ले जाने का काम करते थे। इसीलिए लोग उन्हें ह्यूंमन ऑक्स कहा करते थे। फुटबॉलर बनने के बाद उन्होंने न केवल सबसे बड़े फुटबॉल क्लब से, बल्कि सबसे लोकप्रिय और सक्सेसफुल कंट्री ब्राजील की तरफ से खेला।

स्टीव सविडान -कूड़ा इकट्ठा करने वाले स्टीव फ्रंास की नेशनल टीम के कप्तान बने।

जूलियो रिकार्डो -अर्जेन्टीना के फॉर्मर इंटरनेशनल स्ट्राइकर जूलियो पहले ग्राउंडस्कीपर का काम किया करते थे।

ग्रेफाइट -ग्रेफाइट के कुल 28 गोल ने पहली बार जर्मनी को चैंपियन बनाया था, लेकिन क्या आप जानते हैं कि वे पहले ब्राजील में कबाड़ी का काम करते थे?

रोनाल्डो - रियो डि जनेरियो में एक गरीब घर में पैदा होने वाले रोनाल्डो के पास एक समय बस का किराया भी नहीं था कि वे प्रोफेशनल फुटबॉलर बनने ट्रायल के लिए जा सकें। बाद में रोनाल्डो को तीन बार फीफा व‌र्ल्ड प्लेयर ऑफ द ईयर चुना गया।

क्रिस्टियानो रोनाल्डो - पुर्तगाल के इंटरनेशनल प्लेयर क्रिस्टियानो भी छुटपन में गरीब थे। आज 24 वर्ष में ही वे व‌र्ल्ड क्लास फुटबॉलर हैं। दुनिया भर में उन्हें फुटबॉलर के रूप में ही सबसे अधिक पहचाना जाता है।

मोरिनो टोरिसेली -मोरिनो बढ़ई का काम करते थे। जब वह 22 वर्ष के थे, तो जुवेंटस टीम के कोच जियोवन्नी ट्रेपेट्टोनी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना। बाद में वे इटली के बेस्ट डिफेंडर बने। वे यूरो 96 और 1998 व‌र्ल्ड कप में इटली की ओर से खेले।



9 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा पोस्ट शिवम् जी , फुटबाल बादशाहों से संबद्ध उत्तम जानकारी !

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  2. उत्तम पोस्ट ! क्या प्लातिनी और सोक्रेटेस इस श्रृंखला में नहीं हैं ? और भी कुछ नाम .... बहरहाल .... बहुत अच्छी पोस्ट .. शुक्रिया !

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  3. बढिया है शिवम भाई, सभी निर्विवाद रुप से सर्वश्रेष्ठ....

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  4. रोचक जानकारी.. पर कितनी प्रतिभाएं हैं जो इस गरीबी के कारण दम तोड़ देती हैं..

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  5. यह वह जीवट के लोग हैं जिन्होंने मानव जीवन को उन ऊँचाइयों पर पंहुचना सिखाया जहाँ हम उससे पहले सिर्फ कल्पना कर पाते थे ! असंभव को संभव बनाने की शिक्षा देते यह महान खिलाडी नैराश्य के अंधेरों में मानव जाति के लिए दीपपुंज साबित होंगे ! बहुत अच्छा सामयिक लेख ! हार्दिक शुभकामनायें

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  6. इन खिलाडइयों की लगन और जज्बे को सलाम.............

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