इसी के साथ पेट्रोल और डीजल की कीमतों को बाजार के भरोसे छोड़ दिया गया है। सरकार अब इनकी कीमतें तय नहीं करेगी। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में गठित मंत्रियों के उच्चाधिकार प्राप्त समूह [ईजीओएम] की बैठक में पेट्रोल और डीजल की कीमत तय करने का अधिकार तेल कंपनियों को देने का सैद्धांतिक तौर पर फैसला किया गया। इस फैसले से आम आदमी की जेब पर भारी बोझ पड़ना तय है, साथ ही महंगाई की आग भी और भड़केगी। इससे आने वाले दिनों में ब्याज दरों में वृद्धि का सिलसिला भी शुरू हो सकता है।
सरकार के इस फैसले का असर उसकी गठबंधन की राजनीति पर भी येन केन प्रकारेण दिखाई दे सकता है। ईजीओएम की प्रमुख सदस्य रेलमंत्री ममता बनर्जी ने बैठक का बहिष्कार किया और पेट्रो मूल्य वृद्धि पर कड़ा विरोध दर्ज करवाया है। जबकि रसायन व उंर्वरक मंत्री अलागिरी ने बैठक में हिस्सा तो लिया परंतु उनके दल डीएमके ने इस फैसले से खुद को अलग कर लिया है। हां, ईजीओएम की पिछली बैठक से गैरहाजिर रहे कृषि मंत्री शरद पवार इस बार बैठक में शामिल हुए। दूसरी ओर महंगाई के मुद्दे पर पहले से ही सरकार को कटघरे में खड़ा करते आ रहे भाजपा और वामपंथी दलों को इससे आक्रमण का बड़ा हथियार मिल गया है।
पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री मुरली देवड़ा ने बताया कि ये फैसले किरीट पारेख समिति की सिफारिशों के आधार पर किए गए हैं। सरकार ने तेल कंपनियों को पेट्रोल और डीजल की कीमत तय करने का अधिकार दे दिया है। लेकिन भविष्य में अगर कच्चे तेल [क्रूड] की कीमतें अचानक बहुत ज्यादा बढ़ती हैं तो सरकार हस्तक्षेप कर सकती है। उन्होंने माना कि इस कदम से महंगाई कुछ बढ़ेगी, लेकिन इसके अलावा और कोई चारा नहीं था। फिलहाल डीजल की कीमत सिर्फ दो रुपये प्रति लीटर बढ़ाने का फैसला किया गया है। लेकिन आगे चल कर तेल कंपनियां और वृद्धि कर सकती हैं। वजह यह है कि डीजल पर उन्हें अभी भी 3.50 रुपये का घाटा हो रहा है। किरासिन की कीमत आठ वर्ष बाद बढ़ाई गई है। इसका मतलब हुआ कि भविष्य में अंतरराष्ट्रीय बाजार में जितनी तेजी से क्रूड की कीमतें बढ़ेंगी उसी हिसाब से यहां आम आदमी पर महंगे पेट्रोल व डीजल का बोझ बढ़ेगा। हां, क्रूड सस्ता हुआ तो फिर यह बोझ कम भी हो सकता है।
इससे पहले वर्ष 2002 के राजग शासनकाल में भी पेट्रोल व डीजल की कीमतों को बाजार आधारित किया गया था। लेकिन तकरीबन डेढ़ वर्ष बाद इसे वापस ले लिया गया था। पेट्रोलियम सचिव एस। सुंदरेशन के मुताबिक चारों पेट्रोलियम उत्पादों को महंगा करने के बावजूद रसोई गैस और किरासिन पर सब्सिडी जारी रखी जाएगी। अभी इस बात का इंतजाम करना है कि तेल कंपनियों को वर्ष 2010-11 में लगभग 53 हजार करोड़ रुपये का जो घाटा होगा उसे किस तरह से उठाया जाए। अगर यह वृद्धि नहीं की जाती तो सरकार को लगभग 1 लाख 3 हजार करोड़ रुपये के समायोजन की व्यवस्था करनी पड़ती। इस लिहाज से सब्सिडी बिल कम होगा। लेकिन पेट्रोल और डीजल पर सब्सिडी अब नहीं देनी पड़ेगी।
वैसे सरकार अगर सब सांसदों के खर्चे कम कर दे तो भी शायद काफी बोझ कम हो जाए सरकारी खजाने से ! पर इन की और सरकार का ध्यान नहीं जाता क्यों कि आम आदमी है ना इन का और सरकार का बोझ ढोने के लिए !
३५ साल पहले एक इमरजेंसी लगी थी देश में और एक इमरजेंसी अब लगी है देश की जनता के बजट में |
गरीब की कमर तोड़ डाली
जवाब देंहटाएंतेल के दाम बढे तो भाडा बढेगा, भाड़ा बढेगा तो आवश्यक खाने-पीने की वस्तुओं के दाम जो पहले से आसमान छूं रहे है और महंगे हो जायेंगे . कहीं आना जाना और महंगा हो जाएगा , घर में रसोई जलाना महँगा हो जाएगा यानी सब तरफ से मार गरीब पर जो पहले से ही अधमरा पडा है. हे भगवान्, हे अल्लाह , हे इश्वर , हे वाहे गुरु रहम कर इस देश के गरीब पर और श्त्यानाश कर इन सत्ता में बैठ भ्रष्ट देश के धुश्मनो का, सत्यानाश हो इस बेशर्म मनमोहन और नेहरु खानदान का, सत्यानाश हो उनका जो इन्हें वोट देकर इस तरह गरीबों पर अत्याचार करने की छूट देते हो, सत्यानाश हो इन कांग्रेसियों का जो फूट डालकर अपनी रोटिया सकने में लगे है , सत्यानाश हो इन भाजपा वालों को जो साले ढोंगी पहले खुद थूकते है और फिर खुद ही चाटते भी है, सत्यानाश हो इन वामपंथियों का जो ये पाखंडी सर्वहारा वर्ग के हितैषी बनते है मगर आज तक इन गद्दारों ने एक भी उस अमीर का घर नहीं लूटा जिसने गरीब का पैंसा मारकर अमीर बना , सत्यानाश हो इन समाजवादियों का और इन दलितों के मसीहों का . गरीब की हाय इनको जरूर लगे, यही ऊपर वाले से प्रार्थना है .
कल्हे न्यूज सुनकर पहिला झटका लगा था, सबेरे अखबार में तफसील पढला के बाद दोसरा झटका लगा,बस अबके सब भूल भुला के अऊर सिरीमती जी को ढ़ाढस देकर बईठबे किए थे कि आपका ई पोस्टवा मिल गया... आपात्काल के याद में काहे हमरे लिए बिपत्तिकाल ले आए सिवम बाबू! चलिए आपका काम त जानकारी देना हईये है... बहुत बढिया से एनालाइज किए हैं. धन्यबाद!!
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