मशहूर गीतकार साहिर लुधियानवी का जन्म ८ मार्च १९२१ को लुधियाना, पंजाब में एक मुस्लिम जमींदार परिवार में हुआ था। साहिर जी का पूरा व्यक्तित्व ही शायराना था। 25 साल की उम्र में उनकी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसका शीर्षक था तल्खियां।
बतौर गीतकार उनकी पहली फिल्म थी बाजी, जिसका गीत तकदीर से बिगड़ी हुई तदबीर बना ले..बेहद लोकप्रिय हुआ। उन्होंने हमराज, वक्त, धूल का फूल, दाग, बहू बेगम, आदमी और इंसान, धुंध, प्यासा सहित अनेक फिल्मों के यादगार गीत लिखे। साहिर जी ने शादी नहीं की पर प्यार के एहसास को उन्होंने अपने नगमों में कुछ इस तरह पेश किया कि लोग झूम उठते। निराशा, दर्द, कुंठा, विसंगतियों और तल्खियों के बीच प्रेम, समर्पण, रूमानियत से भरी शायरी करने वाले साहिर लुधियानवी के लिखे नग्में दिल को छू जाते हैं। लिखे जाने के 50 साल बाद भी उनके गीत उतने ही जवां है जितने पहले थे,
ये वादियां से फिजाएं बुला रही हैं..
ना मुंह छुपा के जिओ और न सिर झुका के..
तुम अगर साथ देने का वादा करो, मैं यूं ही मस्त नग्में..
समाज के खोखलेपन को अपनी कड़वी शायरी के मार्फत लाने वाले इस विद्रोही शायर की जरा बानगी तो देखिए,
जिंदगी सिर्फ मोहब्बत ही नहीं कुछ और भी है
भूख और प्यास की मारी इस दुनिया में
इश्क ही एक हकीकत नहीं कुछ और भी है..
इन सब के बीच संघर्ष के लिए प्रेरित करता गीत,
जिंदगी भीख में नहीं मिलती
जिंदगी बढ़ के छीनी जाती है
अपना हक संगदिल जमाने में
छीन पाओ को कोई बात बने..
बेटी की बिदाई पर एक पिता के दर्द और दिल से दिए आशीर्वाद को उन्होंने कुछ इस तरह बयान किया,
समाज में आपसी भाईचारे और इंसानियत का संदेश उन्होंने अपने गीत में इस तरह पिरोया,
तू न हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा ..(धूल का फूल)
साहिर जी को अनेक पुरस्कार मिले, पद्म श्री से उन्हें सम्मानित किया गया, पर उनकी असली पूंजी तो प्रशंसकों का प्यार था। अपने देश भारत से वह बेहद प्यार करते थे। इस भावना को उन्होंने कुछ इस तरह बयां किया....
ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों..
उनका निधन २५ अक्टूबर १९८० को हुआ था पर ऐसे महान शायर की स्मृतियां हमेशा रहेंगी अमर।
महान शायर साहिर लुधियानवी को मेरा नमन!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लगा साहिर जी के बारे पढ कर धन्यवाद, मेरा भी नमन साहिर जी को
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट .. साहिर लुधियानवी जी को शत शत नमन !
जवाब देंहटाएंशकील बदायूँनी साहब का एक गीत बहुत मशहूर हुआ था..
जवाब देंहटाएंइक शहंशाह ने, बनवा के हसीं ताजमहल
सारी दुनिया को मुहब्बत की निशानी दी है.
और इसपर साहिर साहब ने एक लंबी नज़्म लिखी थी, कभी वक़्त मिला तो उसपर चर्चा करूँगा..लेकिन उसकी दो लाइनें शकील साहब का जवाब थी.
इक शहेंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल
हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक,
मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझसे!
साहिर साहब की शायरी और नग़्मे, रोमैंटिसिज़्म और इंक़लाब की वो बुलंदी है जिसकी ओर देखने की नहीं, उसपर सिर झुकाने की ज़रूरत है!
शिवम जी! बहुत अच्छा!!