वीरेन्द्र सिंहल की उम्र केवल 32 वर्ष थी कि रयूमैटायड आथ्र्राइटिस के कारण उनके दाएं घुटने में टेढ़ापन आ चुका था। इस कारण उनके घुटने में दर्द रहने लगा। केवल 6 माह बाद ही सिंहल की तकलीफ इतनी बढ़ी कि उन्हें चलने- फिरने में परेशानी होने लगी। दवाओं के लेने के बाद भी उन्हे आराम नहीं मिला। कुछ परीक्षणों के बाद मैंने उन्हे घुटना प्रत्यारोपण कराने की सलाह दी, लेकिन ऑपरेशन का नाम लेते ही वह परेशान हो गये और बोले कि अभी मेरी उम्र ज्यादा नहीं है और प्रत्यारोपण तो 50 से 60 साल की उम्र के बाद ही होता है। ऐसे में उन्हे समझाया गया कि अब सिरेमिक इनसर्ट वाले ट्रेवीकुलर मेटल के अनसीमेंटेड नी इंप्लांट उपलब्ध है, जो लंबी अवधि तक चलते हैं। सिंहल, प्रत्यारोपण के लिए तैयार हो गए। अब वह बिना किसी तकलीफ के चल रहे हैं।
[इम्प्लांट के लाभ]
* अनसीमेन्टेड सिरेमिक इनसर्ट वाले ये इंप्लान्ट कम से कम 40 वर्ष तक चलते है।
* इनके ढीले होने का खतरा नहीं होता है, क्योंकि इन्हें लगाने में सीमेंट का प्रयोग नहीं किया जाता।
* सिरेमिक इनसर्ट के कारण इनमें 'जीरो फ्रिक्शन' होता है, जिससे चलने में कोई परेशानी नहीं होती।
* इसके लगने के बाद रोगी पाल्थी मार सकता है।
* इनमें ट्रेवीक्युलर मेटल का प्रयोग किया जाता है। यह मेटल 'बॉयो फ्रेन्डली' होने के साथ छिद्रदार सरीखा होता है। ऐसे में जब इस इम्प्लांट को लगाया जाता है तो कुछ समय बाद इस मेटल्स के छिद्रदार भाग में 'बोन ग्रो' कर जाती है जिससे वे इंप्लान्ट को पूरी तरह से जकड़ लेती है और फिर इसके ढीले होने का कोई खतरा नहीं होता।
* कम उम्र वाले लोगों के लिए ये ज्यादा उपयुक्त होते है, क्योंकि इनके लगने के बाद वे सक्रिय जिंदगी बिता सकते है।
[तकनीक]
* यह इंप्लांट केवल 3.5 इंच के चीरे से ही लग जाता है।
* रक्त प्राय: बिल्कुल नहीं निकलता । इसलिए सामान्य हीमोग्लोबिन होने पर रक्त की जरूरत नहीं पड़ती।
* ऑपरेशन टाइम 45 मिनट का होता है।
* किसी भी मांसपेशी को काटने की जरूरत नहीं पड़ती। इसलिए रोगी को ऑपरेशन के तीसरे दिन ही खड़ा कर दिया जाता है।
[सावधानियां]
* 45 वर्ष की उम्र के बाद दो साल में एक बार 'बीएमडी' चेक अॅप करा लेना चाहिए।
आलेख - डॉ.आर. के. सिंह
सीनियर ज्वाइंट एन्ड स्पाइन सर्जन
उपयोगी सुझावों से लवरेज पोस्ट!
जवाब देंहटाएंअच्छभ् पोस्ट !!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी, धन्यबाद
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