क्या आप ने नेत्रदान किया है ??
आज वर्ल्ड साइट डे (8 अक्टूबर) की पृष्ठभूमि में इस सवाल का महत्व अपने देश के संदर्भ में अत्यंत प्रासंगिक हो जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि विश्व के 3 करोड़ 70 लाख दृष्टिहीनों में से 1 करोड़ 50 लाख से अधिक भारतीय शामिल है। इस क्रम में सर्वाधिक दुखद बात यह है कि देश के इन अंधे व्यक्तियों में से ७५% का अंधापन ऐसा है, जिसका समय रहते निवारण हो सकता था। अंधेपन की इस समस्या के मुख्य कारणों को समझे बगैर इससे निपटना असंभव है। समाज के एक बड़े वर्ग में आंखों की देखभाल संबंधी अज्ञानता, जनसंख्या के अनुपात में नेत्र-चिकित्सकों का बड़े पैमाने पर अभाव, सरकारी अस्पतालों में नेत्र-चिकित्सा से संबंधित सुविधाओं की कमी और नेत्र-प्रत्यारोपण के लिए कार्निया की उपलब्धता की कमी देश में बढ़ती अंधता के कुछ प्रमुख कारण है। सरकार व चिकित्सकों के अलावा गैर-सरकारी समाजसेवी संगठन भी अन्धता निवारण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। सही समय पर दी गयी जानकारी से अन्धता के शिकार वयस्कों के अलावा बच्चों में भी विभिन्न रोगों व कारणों से होने वाली अंधता को रोका जा सकता है। अगर अधिक से अधिक संख्या में लोग नेत्रदान के लिए आगे आएं, तो लाखों नेत्रों को ज्योति प्रदान की जा सकती है। अगर हम समय रहते अंधेपन की समस्या पर काबू पाना चाहते हैं, तो नेत्र-चिकित्सकों को भी इस समस्या के समाधान के लिए अपने स्तर से कारगर प्रयास करने होंगे।
पिछले दिनों झा जी के ब्लॉग में पढने को मिला कि कैसे उन्होंने सपत्नी अपना नेत्रदान किया हुआ है , जान बहुत ख़ुशी हुयी साथ साथ एक गर्व की अनुभूति भी हुयी ! झा जी इसके लिए साधुवाद के पात्र है !
क्यों ना हम सभी ब्लॉगर मिल कर एक मुहीम चलाये और अपने अपने हिसाब से इस समस्या से छुटकारा पाने का प्रयास करे | आप सभी अपनी राय जरूर दे इस पहल को शुरू करने के विषय में | कृपया बताये हम क्या कर सकते है अपने अपने स्तर पर ?
क्या यह विचार अपने आप में सुखद नहीं है कि जब आप और हम इस दुनिया में नहीं होगे, फ़िर भी इस दुनिया को देख रहे होगे !!
जैसे हम जीते जी अपने वारिस के लिए कुछ ना कुछ जमा करते रहते है वैसे ही अपनी आखें अगर किसी के नाम कर जाये तो क्या हर्ज़ है ?? जाहिर सी बात है कोई भी हमसे यह तो नहीं कह रहा कि अभी निकल कर दे दो अपनी आखें !! जब हम नहीं होगे यह तब भी किसी के काम आने वाली बात है !! इसलिए आज ही अपने नेत्रदान के लिए पंजीकरण करवायें !
पिछले दिनों झा जी के ब्लॉग में पढने को मिला कि कैसे उन्होंने सपत्नी अपना नेत्रदान किया हुआ है , जान बहुत ख़ुशी हुयी साथ साथ एक गर्व की अनुभूति भी हुयी ! झा जी इसके लिए साधुवाद के पात्र है !
क्यों ना हम सभी ब्लॉगर मिल कर एक मुहीम चलाये और अपने अपने हिसाब से इस समस्या से छुटकारा पाने का प्रयास करे | आप सभी अपनी राय जरूर दे इस पहल को शुरू करने के विषय में | कृपया बताये हम क्या कर सकते है अपने अपने स्तर पर ?
क्या यह विचार अपने आप में सुखद नहीं है कि जब आप और हम इस दुनिया में नहीं होगे, फ़िर भी इस दुनिया को देख रहे होगे !!
जैसे हम जीते जी अपने वारिस के लिए कुछ ना कुछ जमा करते रहते है वैसे ही अपनी आखें अगर किसी के नाम कर जाये तो क्या हर्ज़ है ?? जाहिर सी बात है कोई भी हमसे यह तो नहीं कह रहा कि अभी निकल कर दे दो अपनी आखें !! जब हम नहीं होगे यह तब भी किसी के काम आने वाली बात है !! इसलिए आज ही अपने नेत्रदान के लिए पंजीकरण करवायें !
मैं अपना नेत्रदान सन २००० में कर चूका हूँ , आज तक बहुत लोगो को यह समझाया भी है कि इसमें कोई गलत बात नहीं है, आगे भी यही प्रयास करता रहूगा यह वादा है अपने आपसे |
नेत्रदान महादान !!
यह मुहीम चलाई जानी चाहिये ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा बिचार है यह कर्म में उतरना यानी जगह-जगह आइ.बैंक इत्यादि खोलने और इस मुहीम पर जोर देना चाहिए. बहुत-बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। नवरात्रा की हार्दिक शुभकामनाएं!
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जवाब देंहटाएंशिवम् भाई! इस ब्लाग का नाम अब तो बदल कर "अच्छा भला" कर दो :-)
मेरा एक सुझाव है कि मृत्यु के बाद सिर्फ नेत्रदान ही नहीं शरीर के सारे अंगों के साथ, शरीर दान भी क्यों न किया जाए ...अंतिम संस्कार की जगह यही शरीर कम से कम १० लोगों के कार्य आएगा !
मृत्यु के तुरंत बाद, आँख , दिल,गुर्दा, जिगर आदि कहीं न कहीं किसी रूप में जीवित रहेंगे यह सोचना भी आनंद दायक है ! इसके लिए अपोलो हॉस्पिटल में एक फार्म भर यह कार्य में बहुत पहले कर चुका हूँ ! इससे बेहद शांति मिली लगा कि कम से कम मरने के बाद तो किसी के कार्य आऊँगा !
हाँ इस दान के बारे में सगे सम्बंद्धियों तथा मित्रो को बताना बहुत आवश्यक है ताकि वे इस पुनीत कार्य में व्यवधान न पैदा करें और तत्काल इस दान की सूचना देते हुए अस्पताल को मृत्यु की सूचना दे दें !
मैंने भी काफी पहले अपना नेत्र दान कर दिया है | कई बार होता ये है की लोग करना तो चाहते है पर उनको पता नहीं होता है की वो नेत्रदान करे कहा इसलिए आप ब्लॉग पर हर संभव छोटे बड़े शहर के उन संस्थानों का पता और फोन नंबर दे दे तो हो सकता है जो लोग आलस में या जानकारी ना होने के कारण ये काम नहीं कर रहे है उनके लिए ये आसान बना देगा | हो सकता है उसका पता मिलने से लोग ये काम करे और दूसरो को भी प्रोत्साहन दे | इसके लिए विभिन्न शहरों के जागरुक ब्लोगरो से मदद ली जा सकती है |
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायक बात कही है ..आभार
जवाब देंहटाएंहम आपके साथ हैं इस महायज्ञ में-
जवाब देंहटाएंनेत्रदान महादान !!
यह मुहीम चलाई जानी चाहिये..........
जवाब देंहटाएंनेत्रदान महादान............
ओह शिवम भाई ..अभिभूत हूं इसलिए नहीं कि आपने मेरा नाम लिया बल्कि सही में ब्लॉगिंग की सार्थकता को एक मुकाम दे रहे हैं आप इस ब्लॉग के माध्यम से ....सच में अनुकरणीय है आपका प्रयास ..आपको नमन ..नतमस्तक हूं
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