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शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

पिता पर पूत .... सईस पर घोडा .... बहुत नहीं तो थोडा थोडा !!!

आज सुबह ही लौटना हुआ दिल्ली से ....पर यह पोस्ट मेरी दिल्ली यात्रा पर नहीं है .... वह तो बाद में आएगी !
फिलहाल तो आप सब को दो चित्र दिखाने की ललक है .........लीजिये आप भी देखिये और अपनी अपनी राय दीजिये !
ललित भाई पिस्टल पर हाथ अजमाते हुए !

" मैं पापा से कुछ कम हूँ क्या ?? " उदय बाबु शायद यही पूछ रहे है पिस्टल से निशाना साधते हुए !

गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010

महफूज़ भाई, जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं |




महफूज़ भाई, जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं |
बस एक ही दुआ है कि
खुदा 'महफूज़' रखे हर बला से ... हर बला से !!

मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010

..और भी फिल्में हुई हैं 50 की...क्या आप जानते है ??


इन दिनों मुगलेआजम के प्रदर्शन की स्वर्णजयंती मनायी जा रही है। हर तरफ इस फिल्म की भव्यता, आकर्षण और महत्ता की चर्चा हो रही है, पर क्या आपको पता है कि वर्ष 1960 में मुगलेआजम के साथ-साथ कई और क्लासिक फिल्मों के प्रदर्शन ने हिंदी सिनेमा को समृद्ध बनाया था। बंबई का बाबू, चौदहवीं का चांद, छलिया, बरसात की रात, अनुराधा और काला बाजार जैसी फिल्मों ने मधुर संगीत और शानदार कथ्य से दर्शकों का दिल जीत लिया था। आज भी जब ये फिल्में टेलीविजन चैनलों पर दिखायी जाती हैं, तो दर्शक इन क्लासिक फिल्मों के मोहपाश में बंध से जाते हैं।

'छलिया मेरा नाम.हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सबको मेरा सलाम' इस गीत से बढ़कर सांप्रदायिक सौहा‌र्द्र का संदेश क्या हो सकता है? एक साधारण इंसान के असाधारण सफर की कहानी बयां करती छलिया को राज कपूर, नूतन और प्राण ने अपने बेहतरीन अभिनय और मनमोहन देसाई ने सधे निर्देशन से यादगार फिल्मों में शुमार कर दिया।

प्रयोगशील सिनेमा की तरफ राज कपूर के झुकाव की एक और बानगी उसी वर्ष जिस देश में गंगा बहती है में दिखी। राज कपूर-पद्मिनी अभिनीत और राधु करमाकर निर्देशित इस फिल्म को उस वर्ष की सर्वश्रेष्ठ फिल्म के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सर्वश्रेष्ठ संपादन और सर्वश्रेष्ठ कला निर्देशन का भी फिल्मफेयर पुरस्कार इस फिल्म को मिला। राज कपूर को उनके स्वाभाविक और संवेदनशील अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

राज कपूर के समकालीन अभिनेता देव आनंद की दो यादगार फिल्में बंबई का बाबू और काला बाजार भी इसी वर्ष प्रदर्शित हुई थीं। प्रेम, स्नेह और दोस्ती के धागे को मजबूत करती बंबई का बाबू में बंगाली फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री सुचित्रा सेन ने अपने आकर्षण से हिंदी फिल्मी दर्शकों को भी मंत्रमुग्ध कर दिया। देव आनंद के साथ ने सुचित्रा सेन के आत्मविश्वास को और भी बढ़ा दिया। राज खोंसला निर्देशित बंबई का बाबू में दो प्रेमियों के वियोग की पीड़ा को बखूबी चित्रित किया गया था। विवाह के बाद विदाई की ड्योढ़ी पर खड़ी युवती के हाल-ए-दिल को बयां करते गीत 'चल री सजनी अब क्या सोचें' आज भी जब कानों में गूंजता है, तो आंखें भर जाती हैं। मजरूह सुल्तानपुरी के कलम से निकले गीतों को एस. डी. बर्मन ने अपनी मधुर धुनों में सजाकर बंबई का बाबू के संगीत को यादगार बना दिया। इस फिल्म में जहां देव आनंद ने पारंपरिक नायक की भूमिका निभायी वहीं, काला बाजार में वे एंटी हीरो की भूमिका में नजर आए। वहीदा रहमान और नंदा काला बाजार में देव आनंद की नायिकाएं थीं। सचिन देब बर्मन के संगीत से सजी काला बाजार के मधुर संगीत की बानगी 'खोया खोया चांद, खुला आसमान', 'अपनी तो हर सांस एक तूफान है', 'रिमझिम के तराने लेकर आयी बरसात' जैसे कर्णप्रिय गीतों में मिल जाती है।

वर्ष 1960 में जब देव आनंद का आकर्षण चरम पर था, तब गुरूदत्ता ने भी चौदहवीं का चांद में अपनी बोलती आंखों और गजब के अभिनय से दर्शकों को सम्मोहित किया था। 'चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो' किसी प्रेमिका के लिए इससे बेहतर तारीफ के बोल क्या हो सकते हैं? वहीदा रहमान की खूबसूरती में डूबे गुरूदत्ता को देखने के लिए दर्शकों की बेचैनी को आज के युवा दर्शक भी समझ सकते हैं। निर्देशक मुहम्मद सादिक ने चौदहवीं का चांद की कहानी को लखनऊ की नवाबी शानौशौकत की पृष्ठभूमि में ढाल कर और भी यादगार बना दिया।

गुरूदत्ता यदि वहीदा रहमान के हुस्न के आगोश में खोए थे, तो दूसरी तरफ भारत भूषण भी उसी वर्ष प्रदर्शित हुई बरसात की रात में मधुबाला के साथ प्रेम-गीत गा रहे थे। जब सिल्वर स्क्रीन पर प्यार-मुहब्बत और जीवन के दु:ख-दर्द की कहानी कही जा रही थी, तभी रहस्य और रोमांच से भरपूर फिल्म प्रदर्शित हुई कानून। कानून के लिए बी। आर. चोपड़ा को उस वर्ष सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला था। वर्ष 1960 में प्रदर्शित हुई मुख्य धारा की यादगार फिल्मों में सबसे उल्लेखनीय है अनुराधा। सर्वश्रेष्ठ फिल्म के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित होने के साथ-साथ अनुराधा बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में गोल्डेन बियर अवार्ड के लिए भी नामांकित की गयी। लीला नायडू और बलराज साहनी अभिनीत यह फिल्म अपनी कलात्मकता के लिए आज भी याद की जाती है!

आलेख :- सौम्या अपराजिता

रविवार, 24 अक्टूबर 2010

मैं हर एक पल का शायर हूँ ...


मशहूर गीतकार साहिर लुधियानवी का जन्म मार्च १९२१ को लुधियाना, पंजाब में एक मुस्लिम जमींदार परिवार में हुआ था। साहिर जी का पूरा व्यक्तित्व ही शायराना था। 25 साल की उम्र में उनकी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसका शीर्षक था तल्खियां।

बतौर गीतकार उनकी पहली फिल्म थी बाजी, जिसका गीत तकदीर से बिगड़ी हुई तदबीर बना ले..बेहद लोकप्रिय हुआ। उन्होंने हमराज, वक्त, धूल का फूल, दाग, बहू बेगम, आदमी और इंसान, धुंध, प्यासा सहित अनेक फिल्मों के यादगार गीत लिखे। साहिर जी ने शादी नहीं की पर प्यार के एहसास को उन्होंने अपने नगमों में कुछ इस तरह पेश किया कि लोग झूम उठते। निराशा, दर्द, कुंठा, विसंगतियों और तल्खियों के बीच प्रेम, समर्पण, रूमानियत से भरी शायरी करने वाले साहिर लुधियानवी के लिखे नग्में दिल को छू जाते हैं। लिखे जाने के 50 साल बाद भी उनके गीत उतने ही जवां है जितने पहले थे,

ये वादियां से फिजाएं बुला रही हैं..

ना मुंह छुपा के जिओ और न सिर झुका के..

तुम अगर साथ देने का वादा करो, मैं यूं ही मस्त नग्में..

चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं..(गुमराह)

समाज के खोखलेपन को अपनी कड़वी शायरी के मार्फत लाने वाले इस विद्रोही शायर की जरा बानगी तो देखिए,

जिंदगी सिर्फ मोहब्बत ही नहीं कुछ और भी है

भूख और प्यास की मारी इस दुनिया में

इश्क ही एक हकीकत नहीं कुछ और भी है..

इन सब के बीच संघर्ष के लिए प्रेरित करता गीत,

जिंदगी भीख में नहीं मिलती

जिंदगी बढ़ के छीनी जाती है

अपना हक संगदिल जमाने में

छीन पाओ को कोई बात बने..

बेटी की बिदाई पर एक पिता के दर्द और दिल से दिए आशीर्वाद को उन्होंने कुछ इस तरह बयान किया,

बाबुल की दुआएं लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले..(नीलकमल)

समाज में आपसी भाईचारे और इंसानियत का संदेश उन्होंने अपने गीत में इस तरह पिरोया,

तू न हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा

इंसान की औलाद है इंसान बनेगा ..(धूल का फूल)

साहिर जी को अनेक पुरस्कार मिले, पद्म श्री से उन्हें सम्मानित किया गया, पर उनकी असली पूंजी तो प्रशंसकों का प्यार था। अपने देश भारत से वह बेहद प्यार करते थे। इस भावना को उन्होंने कुछ इस तरह बयां किया....

ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों..

उनका निधन २५ अक्टूबर १९८० को हुआ था पर ऐसे महान शायर की स्मृतियां हमेशा रहेंगी अमर।

आलेख - रमा चंद्र भट्ट

सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से साहिर लुधियानवी जी को शत शत नमन !

शनिवार, 23 अक्टूबर 2010

कैसे हुआ मूवी का नामकरण :- आइये जाने !


फिल्मों के लिए एक प्रचलित शब्द है 'मूवी'। मूवी नाम कैसे पड़ा? यह जानना महत्वपूर्ण है। आप पूछेंगे क्यों? क्योंकि हमारे समाज में नामकरण का बड़ा महत्व है। और जब यह किसी आविष्कार या प्रचलित विधा का नामकरण हो, तो उसकी अहमियत और बढ़ जाती है।

माना यह जाता है कि काफी सोच-विचार कर ही वह नाम रखा गया होगा, लेकिन यकीन मानिए, हमेशा ऐसा नहीं होता। जैसे कि मूवी के नामकरण के बारे में हुआ। 1912 में न्यूयॉर्क से एक किताब प्रकाशित हुई थी, जिसका शीर्षक था 'मूवीज ऐंड द लॉ'। चलने-फिरने या मूव करने वाली तस्वीरों के कारण इसे मूवी कहा गया था। लोगों ने इसे सुना और यूं ही शुरू हो गया इस शब्द का चलन।

जबकि इस दौर में यूनानी नामों यानी क्लासिक नामों का ही प्रचलन था। दरअसल, इस समय कई महत्वपूर्ण आविष्कार हुए थे। सबके नाम यूनानी भाषा में ही थे। मसलन, कैमरा काइनेटोग्राफ, प्रोजेक्टर काइनेटोस्कोप आदि। इसी तरह, टेलीग्राफ, फोटोग्राफ, टेलीफोन, सीजमोग्राफ आदि शब्दों का जन्म हुआ, जो यूनानी मूल से बने हैं। लेकिन 'मूवी' शब्द के प्रचलन पर यूनानी प्रभाव नहीं पड़ सका।

हां, जब फिल्मों में आवाज शामिल कर ली गई, इसे कुछ दिनों तक 'टॉकीज' कहा जाने लगा। लेकिन जब आवाज हर फिल्म में इस्तेमाल की जाने लगी, तो फिर से मूवी शब्द चलन में आ गया। यानी बिना किसी मशक्कत के मूवी शब्द ने लोगों के जेहन में गहरी पैठ बना ली, जिसे निकालना बेहद मुश्किल था और शायद है भी। आपको क्या लगता है?

गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010

मुन्ना भाई को मिली दोहरी खुशी !


बॉलीवुड अभिनेता संजय दत्त की पत्नी मान्यता ने गुरुवार को उन्हें दोहरी खुशी दी। 32 वर्षीय मान्यता ने यहां ब्रीच कैंडी अस्पताल में जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। इनमें एक बेटा और एक बेटी है।

संजय दत्त के सचिव ने बताया कि गुरुवार दोपहर बच्चों के जन्म के वक्त दत्त भी अस्पताल में मौजूद थे। 51 वर्षीय दत्त पहले से ही एक बेटी के पिता हैं, जिसका नाम त्रिशाला है। त्रिशाला को दत्त की पहली पत्नी ऋचा शर्मा ने जन्म दिया था। ऋचा का निधन हो चुका है। त्रिशाला अपने नाना-नानी के पास अमेरिका में रहती है और हाल ही में उसने न्यूयॉर्क कॉलेज से स्नातक किया है। मान्यता, दत्त की तीसरी पत्नी हैं। मान्यता से पहले दत्त ने 1998 में रिया पिल्लै से शादी रचाई थी। दोनों का 2005 में तलाक हो गया था।

मान्यता और दत्त की 2008 में शादी हुई थी। जुड़वां बच्चों के जन्म पर फिल्म दुनिया से जुड़े लोगों ने दत्त दंपती को बधाई दी है। दत्त के साथ फिल्मों में काम कर चुकीं अभिनेत्री शिल्पा शेंट्टी ने ट्विटर पर लिखा है, 'जुड़वां बच्चों के जन्म पर संजय और मान्यता को बधाई। मैं बहुत खुश हूँ ।

सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से दत्त दंपती को बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

बुधवार, 20 अक्टूबर 2010

सिरेमिक इनसर्ट : नी रिप्लेसमेंट में नया दौर


वीरेन्द्र सिंहल की उम्र केवल 32 वर्ष थी कि रयूमैटायड आथ्र्राइटिस के कारण उनके दाएं घुटने में टेढ़ापन आ चुका था। इस कारण उनके घुटने में दर्द रहने लगा। केवल 6 माह बाद ही सिंहल की तकलीफ इतनी बढ़ी कि उन्हें चलने- फिरने में परेशानी होने लगी। दवाओं के लेने के बाद भी उन्हे आराम नहीं मिला। कुछ परीक्षणों के बाद मैंने उन्हे घुटना प्रत्यारोपण कराने की सलाह दी, लेकिन ऑपरेशन का नाम लेते ही वह परेशान हो गये और बोले कि अभी मेरी उम्र ज्यादा नहीं है और प्रत्यारोपण तो 50 से 60 साल की उम्र के बाद ही होता है। ऐसे में उन्हे समझाया गया कि अब सिरेमिक इनसर्ट वाले ट्रेवीकुलर मेटल के अनसीमेंटेड नी इंप्लांट उपलब्ध है, जो लंबी अवधि तक चलते हैं। सिंहल, प्रत्यारोपण के लिए तैयार हो गए। अब वह बिना किसी तकलीफ के चल रहे हैं।

[इम्प्लांट के लाभ]

* अनसीमेन्टेड सिरेमिक इनसर्ट वाले ये इंप्लान्ट कम से कम 40 वर्ष तक चलते है।

* इनके ढीले होने का खतरा नहीं होता है, क्योंकि इन्हें लगाने में सीमेंट का प्रयोग नहीं किया जाता।

* सिरेमिक इनसर्ट के कारण इनमें 'जीरो फ्रिक्शन' होता है, जिससे चलने में कोई परेशानी नहीं होती।

* इसके लगने के बाद रोगी पाल्थी मार सकता है।

* इनमें ट्रेवीक्युलर मेटल का प्रयोग किया जाता है। यह मेटल 'बॉयो फ्रेन्डली' होने के साथ छिद्रदार सरीखा होता है। ऐसे में जब इस इम्प्लांट को लगाया जाता है तो कुछ समय बाद इस मेटल्स के छिद्रदार भाग में 'बोन ग्रो' कर जाती है जिससे वे इंप्लान्ट को पूरी तरह से जकड़ लेती है और फिर इसके ढीले होने का कोई खतरा नहीं होता।

* कम उम्र वाले लोगों के लिए ये ज्यादा उपयुक्त होते है, क्योंकि इनके लगने के बाद वे सक्रिय जिंदगी बिता सकते है।

[तकनीक]

* यह इंप्लांट केवल 3.5 इंच के चीरे से ही लग जाता है।

* रक्त प्राय: बिल्कुल नहीं निकलता । इसलिए सामान्य हीमोग्लोबिन होने पर रक्त की जरूरत नहीं पड़ती।

* ऑपरेशन टाइम 45 मिनट का होता है।

* किसी भी मांसपेशी को काटने की जरूरत नहीं पड़ती। इसलिए रोगी को ऑपरेशन के तीसरे दिन ही खड़ा कर दिया जाता है।

[सावधानियां]

* 45 वर्ष की उम्र के बाद दो साल में एक बार 'बीएमडी' चेक अॅप करा लेना चाहिए।

आलेख - डॉ.आर. के. सिंह

सीनियर ज्वाइंट एन्ड स्पाइन सर्जन

सोमवार, 18 अक्टूबर 2010

रामजी की लीला है न्यारी - देश विदेश हर जगह प्यारी !


उत्तर भारत में इन दिनों रामलीला की धूम है। न केवल जगह-जगह रामलीला का मंचन हो रहा है, बल्कि कुछ रामलीला समितियां तो अब इंटरनेट द्वारा इसका दुनिया भर में सीधा प्रसारण भी कर रही हैं। इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि राष्ट्रमंडल खेलों का आनंद लेने भारत आए कई विदेशी खेलप्रेमी न केवल राजधानी दिल्ली में, बल्कि कुमायूँ और रामनगर-वाराणसी तक पहुँच कर भगवान राम के जीवनचरित्र का मंचन देख रहे हैं।

[रामनगर से शुरुआत]

क्या आप जानते हो कि मंच पर रामलीला की शुरुआत कब हुई थी? कहा जाता है कि इसकी शुरुआत वर्ष 1621 में रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास की प्रेरणा से हुई और आयोजक थे तत्कालीन काशी नरेश। इसी साल काशी के अस्सीघाट पर गोस्वामी तुलसीदास ने एक नाटक के रूप में रामलीला का विमोचन किया था। इसके बाद काशी नरेश ने हर साल रामलीला करवाने का संकल्प लिया और इसके लिये रामनगर में रामलीला की भव्य प्रस्तुति करवाई। रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला 22 दिनों में पूरी होती है।

[शरदपूर्णिमा पर समापन]

कल दशहरा था और अधिकतर लोग यही मानते हैं कि इस दिन भगवान राम द्वारा रावण के वध और इसके पुतले में आग लगाए जाने के साथ रामलीला समाप्त हो जाती है। ऐसा नहीं है महाराज , दरअसल रामलीला विजयदशमी के पाँच दिन बाद अर्थात शरदपूर्णिमा तक चलती रहती है। हाँ, यह बात और है कि तब इसका मंचन विशाल स्टेज पर न होकर किसी मंदिर अथवा धर्मशाला के भीतर भक्तों के बीच हो रहा होता है। इसका समापन शरदपूर्णिमा की चाँदनी रात में (जिसे हिंदुओं में बहुत पवित्र माना जाता है) रामलीला के पात्रों को खीर खिलाकर होता है। इस दिन रोज की चटख पोशाकों की जगह सभी पात्र दूधिया सफेद कपड़ों में होते हैं और यह दृश्य देखते ही बनता है।

[अलग-अलग हैं रंग]

'कोस-कोस पर बानी बदले, सात कोस पर पानी' की तर्ज पर भारत के अलग-अलग इलाकों में रामलीला के अलग-अलग रंग है। आप अयोध्या की रामलीला की तुलना कुमायूँ की रामलीला से नहीं कर सकते और दिल्ली में ही लालकिला की रामलीला और श्रीराम भारतीय कला केंद्र की रामलीला के मंचन में बहुत अंतर है। यह तो बात हुई भारत की, विदेशों में होने वाली रामलीलाओं के रंग तो और भी निराले हैं।

[भारत के बाहर रामलीला]

दक्षिण-पूर्व एशिया के इतिहास में कुछ ऐसे प्रमाण मिलते है, जिनसे ज्ञात होता है कि इस क्षेत्र में प्राचीन काल से ही रामलीला का प्रचलन था। इस क्षेत्र के विभिन्न देशों में रामलीला के अनेक नाम और रूप हैं। इन्हें मुख्य रूप से दो वर्गों 'मुखौटा रामलीला' और 'छाया रामलीला' में विभाजित किया जा सकता है। इंडोनेशिया और मलेशिया में खेली जाने वाली लाखोन, कंपूचिया की ल्खोनखोल तथा म्यांमार में मंचित होने वाली यामप्वे मुखौटा रामलीलाओं के उदाहरण हैं। मुखौटों के माध्यम से प्रदर्शित की जाने वाली रामलीला को थाईलैंड में खौन कहा जाता है। पुतलियों की छाया के माध्यम से प्रदर्शित की जाने वाली रामलीला मुखौटा रामलीला से भी निराली है। इसमें जावा तथा मलेशिया की वेयाग और थाईलैंड की नंग काफी मशहूर हैं!

आलेख :- मनीष त्रिपाठी

शनिवार, 16 अक्टूबर 2010

एक रि पोस्ट :- बॉस को शुक्रिया कहने का दिन - 16 अक्टूबर

बॉस को शुक्रिया कहने का दिन - 16 अक्टूबर


यदि बॉस ने आपकी तरक्की या आपके कल्याण के लिए कुछ किया है तो 16 अक्टूबर का दिन उसका शुक्रिया अदा करने के लिए सबसे उपयुक्त दिन है, क्योंकि इस तारीख को बॉस दिवस जो पड़ता है।
हालांकि बहुत से परामर्शदाता यह भी मानते हैं कि यदि बॉस ने आपके लिए कुछ नहीं किया है, तब भी मधुर संबंध बनाए रखने के लिए किसी न किसी बहाने 16 अक्टूबर को उनको शुक्रिया जरुर बोलिए।
बॉस डे की शुरुआत 1958 में अमेरिका के डीरफील्ड, इलिनोइस स्थित फार्म इंश्योरेंस कंपनी की सचिव पैट्रिसा बेज हैरोस्की ने की थी। भारत में हालांकि यह दिवस लोकप्रिय नहीं है और बहुत से लोग इसके बारे में नहीं जानते। हिंदुस्तान कंप्यूटर्स लिमिटेड में अभियंता के रूप में कार्यरत ऋषि कुमार ने कहा कि वह बॉस डे के बारे में नहीं जानते और बॉस का आभार व्यक्त करने के लिए किसी दिन विशेष की जरूरत भी नहीं समझते। वैसे उनके अपने बॉस के साथ दोस्ताना रिश्ते हैं।
अमेरिका में 16 अक्टूबर को इस दिन की शुरुआत इसलिए हुई, क्योंकि इस तारीख को पैट्रिसा के बॉस का जन्मदिन था। इसलिए उन्होंने यूएस चैम्बर ऑफ कॉमर्स में इस दिन का पंजीकरण बॉस डे के रूप में करा दिया। पंजीकरण के चार साल बाद 1962 में इलिनोइस राज्य के गवर्नर ओटो केरनर ने भी हैरोस्की की पहल का समर्थन किया और 16 अक्टूबर को बॉस डे मनाए जाने की आधिकारिक घोषणा कर दी।
इसके बाद अमेरिका में यह दिन काफी लोकप्रिय हो गया और अब इसे वहां राष्ट्रीय बॉस दिवस का दर्जा मिल गया है। अमेरिका से निकलकर बॉस डे अब ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और आयरलैंड जैसे देशों में भी मनाया जाने लगा है। अमेरिका में बॉस डे के अस्तित्व में आने के बाद कई ऐसी किताबें भी लिखी गईं जिनमें बॉस से मधुर संबंध स्थापित करने के तौर-तरीके बताए गए हैं। हेनरी रिच‌र्ड्सन की पुस्तक 'बॉस एंड हिज एंप्लॉई' में कहा गया है कि यदि जीवन में आगे बढ़ना है तो हर हाल में बॉस से बनाकर रखिए।
उन्होंने लिखा है कि यदि बॉस तुनकमिजाज हो तो अत्यंत सावधानी बरतने की जरूरत है। जब वह गुस्से में हो तो उसकी बात को कभी मत काटिए और हां में हां मिलाइए। कोई भी काम करने से पहले उसका परामर्श जरूर लीजिए। इससे बॉस और कर्मचारी के बीच स्वस्थ संबंधों का विकास होगा।
समाजशास्त्री स्वर्ण सहगल का कहना है कि बॉस का आभार व्यक्त करने के लिए किसी खास दिन की जरूरत नहीं है। आभार कभी भी व्यक्त किया जा सकता है। उनका कहना है कि बॉस और अधीनस्थ कर्मचारी, दोनों समाज का ही हिस्सा हैं और उन्हें एक दूसरे के साथ सामाजिक व्यवहार करना चाहिए। बॉस में न तो अहं और तुनकमिजाजी होनी चाहिए और न ही कर्मियों में बॉस के आदेश का उल्लंघन करने की मनोवृत्ति होनी चाहिए।

हैप्पी बर्थडे चाचा कलाम !!

कल हम सब के चहेते, भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ..पी.जे.अब्दुल कलाम का जन्मदिन था
पर नेट की समस्या के कारण समय पर पोस्ट नहीं कर पाए !
खैर, देर आमद .... दुरुस्त आमद !

डॉ..पी.जे.अब्दुल कलाम का जन्म तमिलनाडु में १५ अक्टूबर सन १९३१ को हुआ थाडॉ. .पी.जे.अब्दुल कलाम सन २००२ से २००७ तक भारत के राष्ट्रपति रहे हमारे देश के राष्ट्रपति बनने से पहले डॉ..पी.जे.अब्दुल कलाम इसरो में साइंटिस्ट भी रहे हैहमारे देश में डॉ.कलाम को 'मिसाईल मैन ऑफ़ इंडिया' के नाम से भी जाना जाता हैडॉ.कलाम ने भारत में स्पेस टेक्नोलोजी में महत्वपूरण योगदान दियासन १९९८ में भारत में पोखरण परमाणु परीक्षण के समय डॉ.कलाम ने अहम् भूमिका अदा की। आज भी डॉ.कलाम अन्ना यूनिवर्सिटी, चेन्नई में प्रोफ़ेसर है और भारत के विभिन्न रिसर्च संस्थानों में भी समय समय पर अपने विचारो और ज्ञान से छात्रो को मार्गदर्शित करते रहते हैं।

डॉ.कलाम ने अपनी पढाई के लिए एक अखवार विक्रेता का कार्य भी किया इस बात का विवरण उन्होने अपनी पुस्तक "A Boy and His Dream" में किया हैडॉ.कलाम ने काफी प्रेणादायक पुस्तके भी लिखी हैं, उन्होने अपनी पुस्तक "Wings Of Fire" में भारतीय युवको को मार्गदर्शित किया हैउन्होने अपनी पुस्तक "Guiding Souls Dialougues on the Purpose of Life" में अपने अध्यात्मिक विचारो का विवरण किया हैडॉ.कलाम तमिल भाषा में कविता भी लिखते हैं


डॉ.कलाम ने "Madras Institute Of Technology " से Areonautical Engineering से Graducation कीडॉ.कलाम ने भारत के प्रथम "Satellite Launch Vehicle(SLV-III)" के Project दिरेक्टोर के पद पर भी काम किया हैइसके बाद डॉ.कलाम ने भारत की प्रमुख मिसाईल अग्नि और प्रथ्वी के विकास में भी Chief Executive की भूमिका अदा की हैडॉ.कलाम सन १९९२ से १९९९ तक "Department of Defence Research & Development" के प्रमुख वैज्ञानिक सलहाकार भी रहे हैडॉ.कलाम को अब तक ३० से भी अधिक विश्वविद्यालय Doctrate की उपाधि प्रदान कर चुके हैं


भारत सरकार ने डॉ.कलाम को सन १९८१ में पदम् भूषण और सन १९९० में पदम् विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया है और सन १९९७ में उनको इसरो में महत्वपूरण कार्यो और योगदान के लिए भारत रतन की उपाधि से भी सम्मानित किया है

डॉ.कलाम विज्ञानं द्वारा समाज की समस्याओ को दूर करने में विश्वास रखते हैडॉ.कलाम ने अपनी पुस्तक "इंडिया २०२०" में भारत को एक 'नालेज पॉवर' और विकसित देश बनने के एक्शन प्लान पर महत्व दिया हैडॉ.कलाम आज भी विज्ञानं के विकास कार्यो में समय समय पर अपना योगदान देते रहते हैं

उनका कहना है कि, "हम सबको सपने देखने चाहिए फिर उन सपनो को पूरा करने के लिए मेहनत करनी चाहिए जब तक कि हमारे सपने पूरे हो जाए ।"
( साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन से साभार )
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डॉ..पी.जे.अब्दुल कलाम को सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक बधाईयां और शुभकामनयें !

बुधवार, 13 अक्टूबर 2010

कलकत्ता की दुर्गा पूजा


मेरी पैदाइश और परवरिश दोनों कलकत्ता की है ! १९९७ में कलकात्ता छोड़ कर मैं मैनपुरी आया और तब से यहाँ का हो कर रह गया हूँ ! आज भी अकेले में कलकत्ता की यादो में खो सा जाता हूँ | कलकत्ता बहुत याद आता है , खास कर दुर्गा पूजा के मौके पर, इस लिए सोचा आज आप को अपने कलकत्ता या यह कहे कि बंगाल की दुर्गा पूजा के बारे में कुछ बताया जाये !

यूँ तो महाराष्ट्र की गणेश पूजा पूरे विश्व में मशहूर है, पर बंगाल में दुर्गापूजा के अवसर पर गणेश जी की पत्नी की भी पूजा की जाती है।

जानिए और क्या खास है यहां की पूजा में।

[षष्ठी के दिन]






मां दुर्गा का पंडाल सज चुका है। धाक, धुनुचि और शियूली के फूलों से मां की पूजा की जा रही है। षष्ठी के दिन भक्तगण पूरे हर्षोल्लास के साथ मां दुर्गा की प्राण प्रतिष्ठा करते हैं। यह दुर्गापूजा का बोधन, यानी शुरुआत है। इसी दिन माता के मुख का आवरण हटाया जाता है।

[कोलाबोऊ की पूजा]

सप्तमी के दिन दुर्गा के पुत्र गणेश और उनकी पत्नी की विशेष पूजा होती है। एक केले के स्तंभ को लाल बॉर्डर वाली नई सफेद साड़ी से सजाकर उसे उनकी पत्नी का रूप दिया जाता है, जिसे कोलाबोऊ कहते हैं। उन्हें गणेश की मूर्ति के बगल में स्थापित कर पूजा की जाती है। साथ ही, दुर्गा पूजा के अवसर एक हवन कुंड बनाया जाता है, जिसमें धान, केला आम, पीपल, अशोक, कच्चू, बेल आदि की लकडि़यों से हवन किया जाता है। इस दिन दुर्गा के महासरस्वती रूप की पूजा होती है।

[108 कमल से पूजा]



माना जाता है कि अष्टमी के दिन देवी ने महिषासुर का वध किया था, इसलिए इस दिन विशेष पूजा की जाती है। 108 कमल के फूलों से देवी की पूजा की जाती है। साथ ही, देवी की मूर्ति के सामने कुम्हरा (लौकी-परिवार की सब्जी) खीरा और केले को असुर का प्रतीक मानकर बलि दी जाती है। संपत्ति और सौभाग्य की प्रतीक महालक्ष्मी के रूप में देवी की पूजा की जाती है।

[संधि पूजा]

अष्टमी तिथि के अंतिम 24 मिनट और नवमी तिथि शुरू होने के 24 मिनट, यानी कुल 48 मिनट के दौरान संधि पूजा की जाती है। 108 दीयों से देवी की पूजा की जाती है और नवमी भोग चढ़ाया जाता है। इस दिन देवी के चामुंडा रूप की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इसी दिन चंड-मुंड असुरों का विनाश करने के लिए उन्होंने यह रूप धारण किया था।

[सिंदूर खेला व कोलाकुली]




दशमी पूजा के बाद मां की मूर्ति का विसर्जन होता है। श्रद्धालु मानते हैं कि मां पांच दिनों के लिए अपने बच्चों, गणेश और कार्तिकेय के साथ अपने मायके, यानी धरती पर आती हैं और फिर अपनी ससुराल, यानी कैलाश पर्वत चली जाती हैं। विसर्जन से पहले विवाहित महिलाएं मां की आरती उतारती हैं, उनके हाथ में पान के पत्ते डालती हैं, उनकी प्रतिमा के मुख से मिठाइयां लगाती हैं और आंखों (आंसू पोंछने की तरह) को पोंछती हैं। इसे दुर्गा बरन कहते हैं। अंत में विवाहित महिलाएं मां के माथे पर सिंदूर लगाती हैं। फिर आपस में एक-दूसरे के माथे से सिंदूर लगाती हैं और सभी लोगों को मिठाइयां खिलाई और बांटी जाती है। इसे सिंदूर खेला कहते हैं। वहीं, पुरुष एक-दूसरे के गले मिलते हैं, जिसे कोलाकुली कहते हैं। यहाँ सब एक दुसरे को विजय दशमी की बधाई 'शुभो बिजोया' कह कर देते है | यहाँ एक दुसरे को रसगुल्लों से भरी हंडी भेंट करना का भी प्रचालन है |



[मां की सवारी]

वैसे तो हम सब जानते है की माँ दुर्गा सिंह की सवारी करती हैं, पर बंगाल में पूजा से पहेले और बाद में माँ की सवारी की चर्चा भी जोरो से होती है | यह माना जाता है कि यह उनकी एक अतरिक्त सवारी है जिस पर वो सिंह समेत सवार होती हैं |
इस वर्ष देवी दुर्गा पालकी पर सवार होकर आ रही हैं और हाथी की सवारी कर लौटेंगी। पालकी की सवारी से माँ का आना बहुत ही शुभ माना जाता है ....कहा जाता है की माँ अपने साथ सब के लिए कुछ ना कुछ ले कर आ रही है हर जगह सुख ही सुख होगा साथ ही, हाथी की सवारी कर जाना भी मंगलकारी माना जाता है , इसलिए देवी का जाना भी शुभ फलदायक माना जा रहा है।


मंगलवार, 12 अक्टूबर 2010

खुदा 'महफूज़' रखे हर बला से .... हर बला से !!


खुदा 'महफूज़' रखे हर बला से ...हर बला से !!


कौन बनेगा करोड़पति ?


देवियों और सज्जनों.. स्वागत है आपका 'कौन बनेगा करोड़पति 2010' में। 10 वर्ष बाद अमिताभ बच्चन इस चिरपरिचित वाक्य के साथ वापसी करेंगे। उल्लेखनीय है कि इस बार 'केबीसी' में कई नए प्रयोग किए जा रहे हैं। अब प्रतियोगियों को 60 मिनट में पांच करोड़ जीतने का अवसर मिल सकेगा। इसके निर्माता सिद्धार्थ बसु कहते हैं, इस बार 15 की बजाय 12 प्रश्न होंगे। 12 के जवाब देने के बाद एक जैकपॉट प्रश्न होगा जिसका जवाब देने के बाद प्रतियोगी पांच करोड़ रूपए जीत सकता है। 'कौन बनेगा..' के नए रूप-रंग को लेकर अमिताभ भी उत्साहित हैं। वह कहते हैं, मैं बहुत कृतज्ञ और आभारी हूं कि दर्शक उत्साह से केबीसी का इंतजार कर रहे हैं।'

[नए बदलाव]

[घड़ियाल बाबू]: घड़ी की टिक-टिक को घड़ियाल बाबू नाम दिया गया है।

[डबल डुबकी]: ये है नयी लाइफलाइन। इसका प्रयोग कर प्रतियोगी दो जवाब दे सकता है। यदि एक जवाब गलत हुआ, तो वह बचे हुए विकल्पों में एक विकल्प चुन सकता है।

[एक्सपर्ट से पूछें]: इस लाइफलाइन का प्रयोग कर प्रतियोगी विशेषज्ञ की सहायता ले सकता है।

[एक सप्ताह तक मौका]: फास्टेस्ट फिंगर फ‌र्स्ट के प्रतियोगी पूरे सप्ताह हॉटसीट के लिए अपनी किस्मत आजमा सकते हैं।

[फेस्टिव लुक में होंगे बिग बी]

[रवि बजाज]

अमिताभ बच्चन की ड्रेस डिजाइन करते समय सबसे पहले यह ध्यान में रखना पड़ता है कि वे ऐसे स्टार हैं, जिनकी लोकप्रियता में उनकी बढ़ती उम्र आड़े नहीं आती। मैं चाहता था कि 'कौन बनेगा करोड़पति' में वे ग्रेसफुल और स्लीक लगें। अमित जी क्लासिक लुक में ज्यादा कंफर्टेबल रहते हैं। इसलिए मैंने उनके लुक के साथ बहुत ज्यादा एक्सपेरिमेंट नहीं किया है। उनके कपड़ों के लिए गहरे रंगों का और एक्सेसरीज के लिए हल्के रंगों का इस्तेमाल किया है। मेरी जब उनसे मेरी मुलाकात हुई थी, तभी मैंने कह दिया था कि मैं आपके लिए वार्डरोब डिजाइन करूंगा न कि कॉस्ट्यूम। दीवाली के दौरान 'कौन बनेगा करोड़पति' के एपिसोड में अमिताभ फेस्टिव लुक में दिखेंगे। वे उस दौरान पारंपरिक भारतीय पोशाक में नजर आएंगे, पर उसमें भी आधुनिकता का पुट होगा।

रविवार, 10 अक्टूबर 2010

अग्निपक्षी अमिताभ - कल भी और आज भी !




मादाम तुसाद के लंदन स्थित संग्रहालय में अमिताभ बच्चन का मोम का पुतला मौजूद है। इस पुतले को सुरक्षित रखने के लिए विशेष तापमान की जरूरत होती है। मोम के पुतले तो सुरक्षित रखे जा सकते हैं, लेकिन जिंदगी की तीखी और कड़ी धूप में हर तरह के पुतले पिघल जाते हैं। फिर भी हमारे साथ सभी मनुष्यों की तरह हाड़-मांस का बना एक ऐसा चलता-फिरता पुतला है, जो कई बार टूटता, गिरता, बिखरता और पिघलता दिखाई दिया ऐसा लगा कि अब इस पुतले को नहीं बचाया जा सकता। आलोचकों ने श्रद्वांजलियां भी लिख डालीं, लेकिन एक अंतराल के बाद अपनी ही जीवनी शक्ति से यह पुतला अधिक ऊर्जा के साथ उठ खड़ा हुआ। पहले से ज्यादा वेगवान और ताकतवर नजर आया। हम जिस पुतले की बात कर रहे हैं, वे हम सभी के चहेते अमिताभ बच्चन हैं, जो सिर्फ अपनी इच्छा शक्ति के दम पर अपने नाम को चरितार्थ कर रहे हैं। उम्र के साथ उनकी ऊर्जा बढ़ती जा रही है। हम चाहेंगे कि वे यों ही बढ़ते, दमकते और चमकते रहें।

[तीन चित्रात्मक प्रतीक]


पिछले साल लगभग इसी समय ही उनका नया शो बिग बॉस आरंभ हुआ था । इसके विज्ञापन में उनकी तीन तस्वीरों की होर्डिग पूरे देश में लगी थी। एक तस्वीर में वे कांच में बंद नाचती गुड़िया के सामने बैठे हैं। दूसरी तस्वीर में उनके सामने फिश बॉल में तैरती सोनमछलियां हैं और तीसरी तस्वीर में एक गिरगिट है। तीनों ही तस्वीरों में अमिताभ बच्चन सोचने की मुद्रा में कैमरे में देख रहे हैं। इन तस्वीरों के भाव और बिंब बिग बॉस के प्रतियोगियों के निमित्त हैं, लेकिन प्रतीकात्मक रूप में ये स्वयं अमिताभ बच्चन पर भी लागू होते हैं। पहली तस्वीर की कांच की गुड़िया की तरह ही चौबीसों घंटे दुनिया की नजर में रहते हुए भी वे अपना स्वाभाविक संतुलन नहीं खोते हैं। अमिताभ बच्चन ने अपनी प्रसिद्धि को हमेशा प्रशंसकों के प्रेम और आशीर्वाद के रूप में लिया। दूसरी तस्वीर की सोनमछलियों की तरह अमिताभ बच्चन को भी अब प्राकृतिक वातावरण से अलग विशेष माहौल में जीना पड़ता है। फिर भी गौर करें कि उनकी संवेदना और स्पंदन में कोई कमी नहीं आई है। इसकी बानगी उनके ब्लॉग पर व्यक्त हो रहे विचार हैं। तीसरी तस्वीर गिरगिट की है, जो सकारात्मक रूप में लें तो हर अभिनेता का स्वभाव होता है। हमारी अपेक्षा रहती है कि हर चरित्र के साथ उसका रंग और रूप बदले। अपने चालीस सालों के कॅरिअर में अमिताभ बच्चन ने अनगिनत चरित्रों को धारण करने के बावजूद अपनी वैयक्तिकता बरकरार रखी है। प्रकारांतर से तीनों विज्ञापन अमिताभ बच्चन के बारे में भी बताते हैं।

और इस साल आज से उनके प्रसिद शो ' कौन बनेगा करोडपति ' का चौथा संस्करण शुरू होने जा रहा है जिस का इंतज़ार पूरे भारत को है | शो के प्रोमो के हिसाब से अमिताभ भी पूरी तरह से तैयार दिखते है अपने फैन्स को रिझाने के लिए !

[पारिवारिक मूल्यों के पक्षधर]


हिंदी के कवि और गद्यकार हरिवंश राय बच्चन के मध्यवर्गीय परिवार में पले-बढ़े और भारतीय संस्कारों में समृद्ध अमिताभ बच्चन ने संयुक्त परिवार के मूल्यों को अपने व्यवहार से स्थापित किया। उन्होंने माता-पिता को अपने साथ रखा और अब उनके ख्यातिलब्ध बेटे-बहू उनके साथ रहते हैं। पिछले दिनों ऐश्वर्या राय बच्चन और अभिषेक मशहूर टीवी होस्ट ओपरा विनफ्रे के मेहमान थे। उस शो में दोनों का परिचय देते हुए ओपरा ने जोर देकर बताया और दो बार दोहराया कि दोनों अपने माता-पिता के साथ रहते हैं। भारतीय संदर्भ में यह मामूली और साधारण बात लग सकती है, लेकिन पश्चिम के पूंजीवादी समाज में बिखर और टूट रहे परिवारों के बीच जब किसी भारतीय सेलिब्रिटी के संयुक्त परिवार में साथ रहने का उदाहरण सामने आता है तो उसका प्रभाव व्यापक और दूरगामी होता है। अमिताभ बच्चन ने नितांत वैयक्तिक छवि के लिए छटपटा रहे माहौल में आदर्श बेटे, पति और पिता की भारतीय छवि को मजबूत किया है। पिता की कृति और कृत्यों के आगे खुद को छोटा और तुच्छ बना कर वे अपने प्रशंसकों की निगाह में अधिक बड़े और महत्वपूर्ण बन जाते हैं।

[अप्रतिम इच्छाशक्ति के धनी]



है कुछ बात उनमें तभी तो अवसरों और स्थितियों से ठुकराए जाने के बाद मटियामेट होने की जगह पौराणिक अग्निपक्षी की तरह वे फिर से उठ खड़े होते हैं। सात हिंदुस्तानी जैसी गैरपारंपरिक और असामान्य फिल्म से शुरूआत करने और उसके बाद भी विभिन्न बैनरों, निर्माताओं और निर्देशकों द्वारा तिरस्कृत, अपमानित और नजरअंदाज किए जाने के बावजूद अमिताभ बच्चन ने मेनस्ट्रीम फिल्मों में अपनी जगह बनायी। बाक्स आफिस कलेक्शन और दर्शकों के बीच अप्रतिम लोकप्रियता की वजह से उन्हें 'वन मैन इंडस्ट्री' का खिताब दिया गया। याद करें कि हृषीकेष मुखर्जी और कुंदन कुमार की फिल्मों की चंद रीलों की शूटिंग के बाद फिल्म से हटा दिए जाने पर भी उन्होंने आत्मबल नहीं खोया। वे अपनी इच्छाशक्ति के दम पर टिके रहे। कुली की दुर्घटना से आए व्यवधान, खुदा गवाह के बाद फिल्मी करिअर में आए उतार, एबीसीएल के क्रिएटिव एडवेंचर से हुए आर्थिक नुकसान, राजनीति के संक्षिप्त प्रवास में लगे आक्षेप और बेटे की शादी के समय हुए सामाजिक और मीडिया बहिष्कार के बावजूद अमिताभ बच्चन आज भी एक्टिव हैं। वे आक्षेपों और आरोपों से बेदाग निकले। उन्होंने कॅरिअर की हर फिसलन को अगली छलांग और ऊंचाई की पींग के रूप में इस्तेमाल किया। अमिताभ बच्चन ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वे यश चोपड़ा से

फिल्म मांगने गए थे और तब आदित्य चोपड़ा ने उन्हें मोहब्बतें फिल्म दी थी। कौन बनेगा करोड़पति होस्ट करने के उनके ऐतिहासिक फैसले से सभी परिचित हैं। वे इसी शो से ऐसे मापदंड बन गए कि शाहरुख खान अपनी अदम्य लोकप्रियता के बावजूद स्टार प्लस के इसी शो की तृतीय कड़ी के लिए वह टीआरपी नहीं ला सके।
सब कुछ छोड़कर आगामी फिल्मों में उनके चरित्र की विविधता पर ही नजर डालें तो पता चल जाएगा कि हिंदी फिल्मों का यह अद्वितीय अभिनेता जीवन के उत्तरकाल में ऐसी लकीर खींचता जा रहा है, जिसे पार करना भविष्य के अभिनेताओं के लिए बड़ी चुनौती होगी। वे अलादीन में जिन्न बने हैं तो पा में बारह वर्ष के बालक की भूमिका निभा रहे हैं। कुणाल में प्रियदर्शी अशोक की भूमिका निभाएंगे तो रण में मीडिया टायकून के रूप में नजर आएंगे। तीन पत्ती और बुद्धं शरणं गच्छामि में वे अभिनय को नया विस्तार देंगे।

[धर्म पर अटूट है विश्वास]


अभिनय की अमित आभा से संपन्न अमिताभ बच्चन तुलसीदास कृत रामचरितमानस के सुंदरकांड और गीता का नियमित पाठ करते हैं। धार्मिकता के संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने एक बार कहा था, ''हमें नहीं मालूम कि हमारे साथ कुछ खास क्यों घटता है और हमें यह भी नहीं मालूम कि हम कैसे उस घटना पर विजय पा लेते हैं। मैं जैसी परिस्थितियों से गुजरा हूं और उनमें मेरे शरीर ने जिस ढंग से रिएक्ट किया है, वह अचरज का विषय है। निस्संदेह इस रहस्य ने मुझे धार्मिक बना दिया है।'' हमें याद है कि पिछले साल जन्मदिन की पूर्वसंध्या को उनकी तबियत बिगड़ी थी और अपने जन्मदिन के दिन वे अस्पताल में थे। यह उनकी विल पॉवर ही है कि वे असाध्य बीमारियों को पछाड़ कर हमारे बीच आ जाते हैं। ऊंचे कद के अभिनेता अमिताभ बच्चन चलते समय लंबे डग भरते हैं। हम यही चाहेंगे कि वे सफलता और लोकप्रियता की अधिकतम दूरी और ऊंचाई नाप सकें।
- अजय ब्रह्मंत्मज
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सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से श्री अमिताभ बच्चन को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाईयां और शुभकामनाएं !

शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010

एक रि पोस्ट :- देवी पूजा के नियम


द का अर्थ है-जो स्थिर है और ग का अर्थ है- जिसमें गति है। उ का अर्थ है स्थिर और गतिमान के बीच का संतुलन और अ का अर्थ है अजन्मे ईश्वर की शक्ति। यानी दुर्गा का अर्थ हुआ, परमात्मा की वह शक्ति, जो स्थिर और गतिमान है, लेकिन संतुलित भी है। किसी भी प्रकार की साधना के लिए शक्ति का होना जरूरी है और शक्ति की साधना का पथ अत्यंत गूढ़ और रहस्यपूर्ण है। हम नवरात्र में व्रत इसलिए करते हैं, ताकि अपने भीतर की शक्ति, संयम और नियम से सुरक्षित हो सकें, उसका अनावश्यक अपव्यय न हो। संपूर्ण सृष्टि में जो ऊर्जा का प्रवाह है, उसे अपने भीतर रखने के लिए स्वयं की पात्रता तथा इस पात्र की स्वच्छता भी जरूरी है।



देवी दुर्गा की उपासना करने से पहले हमें कुछ नियमों का भी ध्यान रखना चाहिए।

1. पूजा-पाठ, साधना के समय साधक को साज-श्रृंगार, शौक-मौज और कामुक विचारों से अलग रहना चाहिए।
2. मंत्र जप प्रतिदिन नियमित संख्या में करना चाहिए। कभी ज्यादा या कभी कम मंत्र जाप नहीं करना चाहिए।
3. किसी भी पदार्थ का सेवन करने से पूर्व उसे अपने आराध्य देव को अर्पित करें। उसके बाद ही स्वयं ग्रहण करें।
4. मंत्र जाप के समय शरीर के किसी भी अंग को नहीं हिलाएं।
5. दुर्गा की उपासना में मंत्र जप के लिए चंदन की माला को श्रेष्ठ माना जाता है।
6. माता लक्ष्मी की उपासना के लिए स्फटिक माला या कमलगट्टे की माला का उपयोग करना चाहिए।
7. बैठने के लिए ऊन या कंबल के आसन का उपयोग करना चाहिए।
8. काली की आराधना में काले रंग की वस्तुओं का विशेष महत्व होता है। काले वस्त्र एवं काले रंग के आसन का प्रयोग करना चाहिए।
9. दुर्गा आराधना के समय अपना मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए।
10. आप किसी भी देवी की आराधना करते हों, लेकिन नवरात्र में व्रत भी करना चाहिए।
11. घर में शक्ति की तीन मूर्तियां वर्जित हैं, अर्थात घर या पूजाघर में देवी की तीन मूर्तियां नहीं होनी चाहिए।
12. देवी के जिस स्वरूप की आराधना आप कर रहे हैं, उसका ध्यान मन ही मन करते रहना चाहिए।

- शशिकांत सदैव

गुरुवार, 7 अक्टूबर 2010

एक रि पोस्ट :- व‌र्ल्ड साइट डे (8 अक्टूबर) - क्या आप ने नेत्रदान किया है ??


क्या आप ने नेत्रदान किया है ??

आज र्ल्ड साइट डे (8 अक्टूबर) की पृष्ठभूमि में इस सवाल का महत्व अपने देश के संदर्भ में अत्यंत प्रासंगिक हो जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि विश्व के 3 करोड़ 70 लाख दृष्टिहीनों में से 1 करोड़ 50 लाख से अधिक भारतीय शामिल है। इस क्रम में सर्वाधिक दुखद बात यह है कि देश के इन अंधे व्यक्तियों में से ७५% का अंधापन ऐसा है, जिसका समय रहते निवारण हो सकता था। अंधेपन की इस समस्या के मुख्य कारणों को समझे बगैर इससे निपटना असंभव है। समाज के एक बड़े वर्ग में आंखों की देखभाल संबंधी अज्ञानता, जनसंख्या के अनुपात में नेत्र-चिकित्सकों का बड़े पैमाने पर अभाव, सरकारी अस्पतालों में नेत्र-चिकित्सा से संबंधित सुविधाओं की कमी और नेत्र-प्रत्यारोपण के लिए कार्निया की उपलब्धता की कमी देश में बढ़ती अंधता के कुछ प्रमुख कारण है। सरकार चिकित्सकों के अलावा गैर-सरकारी समाजसेवी संगठन भी अन्धता निवारण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। सही समय पर दी गयी जानकारी से अन्धता के शिकार वयस्कों के अलावा बच्चों में भी विभिन्न रोगों कारणों से होने वाली अंधता को रोका जा सकता है। अगर अधिक से अधिक संख्या में लोग नेत्रदान के लिए आगे आएं, तो लाखों नेत्रों को ज्योति प्रदान की जा सकती है। अगर हम समय रहते अंधेपन की समस्या पर काबू पाना चाहते हैं, तो नेत्र-चिकित्सकों को भी इस समस्या के समाधान के लिए अपने स्तर से कारगर प्रयास करने होंगे।

पिछले दिनों झा जी के ब्लॉग में पढने को मिला कि कैसे उन्होंने सपत्नी अपना नेत्रदान किया हुआ है , जान बहुत ख़ुशी हुयी साथ साथ एक गर्व की अनुभूति भी हुयी ! झा जी इसके लिए साधुवाद के पात्र है !

क्यों ना हम सभी ब्लॉगर मिल कर एक मुहीम चलाये और अपने अपने हिसाब से इस समस्या से छुटकारा पाने का प्रयास करे | आप सभी अपनी राय जरूर दे इस पहल को शुरू करने के विषय में | कृपया बताये हम क्या कर सकते है अपने अपने स्तर पर ?

क्या यह विचार अपने आप में सुखद नहीं है कि जब आप और हम इस दुनिया में नहीं होगे, फ़िर भी इस दुनिया को देख रहे होगे !!

जैसे हम जीते जी अपने वारिस के लिए कुछ ना कुछ जमा करते रहते है वैसे ही अपनी आखें अगर किसी के नाम कर जाये तो क्या हर्ज़ है ?? जाहिर सी बात है कोई भी हमसे यह तो नहीं कह रहा कि अभी निकल कर दे दो अपनी आखें !! जब हम नहीं होगे यह तब भी किसी के काम आने वाली बात है !! इसलिए आज ही अपने नेत्रदान के लिए पंजीकरण करवायें !


मैं अपना नेत्रदान सन २००० में कर चूका हूँ , आज तक बहुत लोगो को यह समझाया भी है कि इसमें कोई गलत बात नहीं है, आगे भी यही प्रयास करता रहूगा यह वादा है अपने आपसे |

नेत्रदान महादान !!

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