फिलहाल तो आप सब को दो चित्र दिखाने की ललक है .........लीजिये आप भी देखिये और अपनी अपनी राय दीजिये !
पूरे दिन में हमारे साथ जो जो होता है उसका ही एक लेखा जोखा " बुरा भला " के नाम से आप सब के सामने लाने का प्रयास किया है | यह जरूरी नहीं जो हमारे साथ होता है वह सब " बुरा " हो, साथ साथ यह भी एक परम सत्य है कि सब " भला " भी नहीं होता | इस ब्लॉग में हमारी कोशिश यह होगी कि दिन भर के घटनाक्रम में से हम " बुरा " और " भला " छांट कर यहाँ पेश करे |
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शनिवार, 30 अक्टूबर 2010
पिता पर पूत .... सईस पर घोडा .... बहुत नहीं तो थोडा थोडा !!!
फिलहाल तो आप सब को दो चित्र दिखाने की ललक है .........लीजिये आप भी देखिये और अपनी अपनी राय दीजिये !
गुरुवार, 28 अक्टूबर 2010
महफूज़ भाई, जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं |
मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010
..और भी फिल्में हुई हैं 50 की...क्या आप जानते है ??
इन दिनों मुगलेआजम के प्रदर्शन की स्वर्णजयंती मनायी जा रही है। हर तरफ इस फिल्म की भव्यता, आकर्षण और महत्ता की चर्चा हो रही है, पर क्या आपको पता है कि वर्ष 1960 में मुगलेआजम के साथ-साथ कई और क्लासिक फिल्मों के प्रदर्शन ने हिंदी सिनेमा को समृद्ध बनाया था। बंबई का बाबू, चौदहवीं का चांद, छलिया, बरसात की रात, अनुराधा और काला बाजार जैसी फिल्मों ने मधुर संगीत और शानदार कथ्य से दर्शकों का दिल जीत लिया था। आज भी जब ये फिल्में टेलीविजन चैनलों पर दिखायी जाती हैं, तो दर्शक इन क्लासिक फिल्मों के मोहपाश में बंध से जाते हैं।
'छलिया मेरा नाम.हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सबको मेरा सलाम' इस गीत से बढ़कर सांप्रदायिक सौहार्द्र का संदेश क्या हो सकता है? एक साधारण इंसान के असाधारण सफर की कहानी बयां करती छलिया को राज कपूर, नूतन और प्राण ने अपने बेहतरीन अभिनय और मनमोहन देसाई ने सधे निर्देशन से यादगार फिल्मों में शुमार कर दिया।
प्रयोगशील सिनेमा की तरफ राज कपूर के झुकाव की एक और बानगी उसी वर्ष जिस देश में गंगा बहती है में दिखी। राज कपूर-पद्मिनी अभिनीत और राधु करमाकर निर्देशित इस फिल्म को उस वर्ष की सर्वश्रेष्ठ फिल्म के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सर्वश्रेष्ठ संपादन और सर्वश्रेष्ठ कला निर्देशन का भी फिल्मफेयर पुरस्कार इस फिल्म को मिला। राज कपूर को उनके स्वाभाविक और संवेदनशील अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
राज कपूर के समकालीन अभिनेता देव आनंद की दो यादगार फिल्में बंबई का बाबू और काला बाजार भी इसी वर्ष प्रदर्शित हुई थीं। प्रेम, स्नेह और दोस्ती के धागे को मजबूत करती बंबई का बाबू में बंगाली फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री सुचित्रा सेन ने अपने आकर्षण से हिंदी फिल्मी दर्शकों को भी मंत्रमुग्ध कर दिया। देव आनंद के साथ ने सुचित्रा सेन के आत्मविश्वास को और भी बढ़ा दिया। राज खोंसला निर्देशित बंबई का बाबू में दो प्रेमियों के वियोग की पीड़ा को बखूबी चित्रित किया गया था। विवाह के बाद विदाई की ड्योढ़ी पर खड़ी युवती के हाल-ए-दिल को बयां करते गीत 'चल री सजनी अब क्या सोचें' आज भी जब कानों में गूंजता है, तो आंखें भर जाती हैं। मजरूह सुल्तानपुरी के कलम से निकले गीतों को एस. डी. बर्मन ने अपनी मधुर धुनों में सजाकर बंबई का बाबू के संगीत को यादगार बना दिया। इस फिल्म में जहां देव आनंद ने पारंपरिक नायक की भूमिका निभायी वहीं, काला बाजार में वे एंटी हीरो की भूमिका में नजर आए। वहीदा रहमान और नंदा काला बाजार में देव आनंद की नायिकाएं थीं। सचिन देब बर्मन के संगीत से सजी काला बाजार के मधुर संगीत की बानगी 'खोया खोया चांद, खुला आसमान', 'अपनी तो हर सांस एक तूफान है', 'रिमझिम के तराने लेकर आयी बरसात' जैसे कर्णप्रिय गीतों में मिल जाती है।
वर्ष 1960 में जब देव आनंद का आकर्षण चरम पर था, तब गुरूदत्ता ने भी चौदहवीं का चांद में अपनी बोलती आंखों और गजब के अभिनय से दर्शकों को सम्मोहित किया था। 'चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो' किसी प्रेमिका के लिए इससे बेहतर तारीफ के बोल क्या हो सकते हैं? वहीदा रहमान की खूबसूरती में डूबे गुरूदत्ता को देखने के लिए दर्शकों की बेचैनी को आज के युवा दर्शक भी समझ सकते हैं। निर्देशक मुहम्मद सादिक ने चौदहवीं का चांद की कहानी को लखनऊ की नवाबी शानौशौकत की पृष्ठभूमि में ढाल कर और भी यादगार बना दिया।
गुरूदत्ता यदि वहीदा रहमान के हुस्न के आगोश में खोए थे, तो दूसरी तरफ भारत भूषण भी उसी वर्ष प्रदर्शित हुई बरसात की रात में मधुबाला के साथ प्रेम-गीत गा रहे थे। जब सिल्वर स्क्रीन पर प्यार-मुहब्बत और जीवन के दु:ख-दर्द की कहानी कही जा रही थी, तभी रहस्य और रोमांच से भरपूर फिल्म प्रदर्शित हुई कानून। कानून के लिए बी। आर. चोपड़ा को उस वर्ष सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला था। वर्ष 1960 में प्रदर्शित हुई मुख्य धारा की यादगार फिल्मों में सबसे उल्लेखनीय है अनुराधा। सर्वश्रेष्ठ फिल्म के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित होने के साथ-साथ अनुराधा बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में गोल्डेन बियर अवार्ड के लिए भी नामांकित की गयी। लीला नायडू और बलराज साहनी अभिनीत यह फिल्म अपनी कलात्मकता के लिए आज भी याद की जाती है!
आलेख :- सौम्या अपराजिता
रविवार, 24 अक्टूबर 2010
मैं हर एक पल का शायर हूँ ...
मशहूर गीतकार साहिर लुधियानवी का जन्म ८ मार्च १९२१ को लुधियाना, पंजाब में एक मुस्लिम जमींदार परिवार में हुआ था। साहिर जी का पूरा व्यक्तित्व ही शायराना था। 25 साल की उम्र में उनकी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसका शीर्षक था तल्खियां।
बतौर गीतकार उनकी पहली फिल्म थी बाजी, जिसका गीत तकदीर से बिगड़ी हुई तदबीर बना ले..बेहद लोकप्रिय हुआ। उन्होंने हमराज, वक्त, धूल का फूल, दाग, बहू बेगम, आदमी और इंसान, धुंध, प्यासा सहित अनेक फिल्मों के यादगार गीत लिखे। साहिर जी ने शादी नहीं की पर प्यार के एहसास को उन्होंने अपने नगमों में कुछ इस तरह पेश किया कि लोग झूम उठते। निराशा, दर्द, कुंठा, विसंगतियों और तल्खियों के बीच प्रेम, समर्पण, रूमानियत से भरी शायरी करने वाले साहिर लुधियानवी के लिखे नग्में दिल को छू जाते हैं। लिखे जाने के 50 साल बाद भी उनके गीत उतने ही जवां है जितने पहले थे,
ये वादियां से फिजाएं बुला रही हैं..
ना मुंह छुपा के जिओ और न सिर झुका के..
तुम अगर साथ देने का वादा करो, मैं यूं ही मस्त नग्में..
समाज के खोखलेपन को अपनी कड़वी शायरी के मार्फत लाने वाले इस विद्रोही शायर की जरा बानगी तो देखिए,
जिंदगी सिर्फ मोहब्बत ही नहीं कुछ और भी है
भूख और प्यास की मारी इस दुनिया में
इश्क ही एक हकीकत नहीं कुछ और भी है..
इन सब के बीच संघर्ष के लिए प्रेरित करता गीत,
जिंदगी भीख में नहीं मिलती
जिंदगी बढ़ के छीनी जाती है
अपना हक संगदिल जमाने में
छीन पाओ को कोई बात बने..
बेटी की बिदाई पर एक पिता के दर्द और दिल से दिए आशीर्वाद को उन्होंने कुछ इस तरह बयान किया,
समाज में आपसी भाईचारे और इंसानियत का संदेश उन्होंने अपने गीत में इस तरह पिरोया,
तू न हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा ..(धूल का फूल)
साहिर जी को अनेक पुरस्कार मिले, पद्म श्री से उन्हें सम्मानित किया गया, पर उनकी असली पूंजी तो प्रशंसकों का प्यार था। अपने देश भारत से वह बेहद प्यार करते थे। इस भावना को उन्होंने कुछ इस तरह बयां किया....
ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों..
उनका निधन २५ अक्टूबर १९८० को हुआ था पर ऐसे महान शायर की स्मृतियां हमेशा रहेंगी अमर।
शनिवार, 23 अक्टूबर 2010
कैसे हुआ मूवी का नामकरण :- आइये जाने !
फिल्मों के लिए एक प्रचलित शब्द है 'मूवी'। मूवी नाम कैसे पड़ा? यह जानना महत्वपूर्ण है। आप पूछेंगे क्यों? क्योंकि हमारे समाज में नामकरण का बड़ा महत्व है। और जब यह किसी आविष्कार या प्रचलित विधा का नामकरण हो, तो उसकी अहमियत और बढ़ जाती है।
माना यह जाता है कि काफी सोच-विचार कर ही वह नाम रखा गया होगा, लेकिन यकीन मानिए, हमेशा ऐसा नहीं होता। जैसे कि मूवी के नामकरण के बारे में हुआ। 1912 में न्यूयॉर्क से एक किताब प्रकाशित हुई थी, जिसका शीर्षक था 'मूवीज ऐंड द लॉ'। चलने-फिरने या मूव करने वाली तस्वीरों के कारण इसे मूवी कहा गया था। लोगों ने इसे सुना और यूं ही शुरू हो गया इस शब्द का चलन।
जबकि इस दौर में यूनानी नामों यानी क्लासिक नामों का ही प्रचलन था। दरअसल, इस समय कई महत्वपूर्ण आविष्कार हुए थे। सबके नाम यूनानी भाषा में ही थे। मसलन, कैमरा काइनेटोग्राफ, प्रोजेक्टर काइनेटोस्कोप आदि। इसी तरह, टेलीग्राफ, फोटोग्राफ, टेलीफोन, सीजमोग्राफ आदि शब्दों का जन्म हुआ, जो यूनानी मूल से बने हैं। लेकिन 'मूवी' शब्द के प्रचलन पर यूनानी प्रभाव नहीं पड़ सका।
हां, जब फिल्मों में आवाज शामिल कर ली गई, इसे कुछ दिनों तक 'टॉकीज' कहा जाने लगा। लेकिन जब आवाज हर फिल्म में इस्तेमाल की जाने लगी, तो फिर से मूवी शब्द चलन में आ गया। यानी बिना किसी मशक्कत के मूवी शब्द ने लोगों के जेहन में गहरी पैठ बना ली, जिसे निकालना बेहद मुश्किल था और शायद है भी। आपको क्या लगता है?
गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010
मुन्ना भाई को मिली दोहरी खुशी !
संजय दत्त के सचिव ने बताया कि गुरुवार दोपहर बच्चों के जन्म के वक्त दत्त भी अस्पताल में मौजूद थे। 51 वर्षीय दत्त पहले से ही एक बेटी के पिता हैं, जिसका नाम त्रिशाला है। त्रिशाला को दत्त की पहली पत्नी ऋचा शर्मा ने जन्म दिया था। ऋचा का निधन हो चुका है। त्रिशाला अपने नाना-नानी के पास अमेरिका में रहती है और हाल ही में उसने न्यूयॉर्क कॉलेज से स्नातक किया है। मान्यता, दत्त की तीसरी पत्नी हैं। मान्यता से पहले दत्त ने 1998 में रिया पिल्लै से शादी रचाई थी। दोनों का 2005 में तलाक हो गया था।
मान्यता और दत्त की 2008 में शादी हुई थी। जुड़वां बच्चों के जन्म पर फिल्म दुनिया से जुड़े लोगों ने दत्त दंपती को बधाई दी है। दत्त के साथ फिल्मों में काम कर चुकीं अभिनेत्री शिल्पा शेंट्टी ने ट्विटर पर लिखा है, 'जुड़वां बच्चों के जन्म पर संजय और मान्यता को बधाई। मैं बहुत खुश हूँ ।
सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से दत्त दंपती को बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
बुधवार, 20 अक्टूबर 2010
सिरेमिक इनसर्ट : नी रिप्लेसमेंट में नया दौर
वीरेन्द्र सिंहल की उम्र केवल 32 वर्ष थी कि रयूमैटायड आथ्र्राइटिस के कारण उनके दाएं घुटने में टेढ़ापन आ चुका था। इस कारण उनके घुटने में दर्द रहने लगा। केवल 6 माह बाद ही सिंहल की तकलीफ इतनी बढ़ी कि उन्हें चलने- फिरने में परेशानी होने लगी। दवाओं के लेने के बाद भी उन्हे आराम नहीं मिला। कुछ परीक्षणों के बाद मैंने उन्हे घुटना प्रत्यारोपण कराने की सलाह दी, लेकिन ऑपरेशन का नाम लेते ही वह परेशान हो गये और बोले कि अभी मेरी उम्र ज्यादा नहीं है और प्रत्यारोपण तो 50 से 60 साल की उम्र के बाद ही होता है। ऐसे में उन्हे समझाया गया कि अब सिरेमिक इनसर्ट वाले ट्रेवीकुलर मेटल के अनसीमेंटेड नी इंप्लांट उपलब्ध है, जो लंबी अवधि तक चलते हैं। सिंहल, प्रत्यारोपण के लिए तैयार हो गए। अब वह बिना किसी तकलीफ के चल रहे हैं।
[इम्प्लांट के लाभ]
* अनसीमेन्टेड सिरेमिक इनसर्ट वाले ये इंप्लान्ट कम से कम 40 वर्ष तक चलते है।
* इनके ढीले होने का खतरा नहीं होता है, क्योंकि इन्हें लगाने में सीमेंट का प्रयोग नहीं किया जाता।
* सिरेमिक इनसर्ट के कारण इनमें 'जीरो फ्रिक्शन' होता है, जिससे चलने में कोई परेशानी नहीं होती।
* इसके लगने के बाद रोगी पाल्थी मार सकता है।
* इनमें ट्रेवीक्युलर मेटल का प्रयोग किया जाता है। यह मेटल 'बॉयो फ्रेन्डली' होने के साथ छिद्रदार सरीखा होता है। ऐसे में जब इस इम्प्लांट को लगाया जाता है तो कुछ समय बाद इस मेटल्स के छिद्रदार भाग में 'बोन ग्रो' कर जाती है जिससे वे इंप्लान्ट को पूरी तरह से जकड़ लेती है और फिर इसके ढीले होने का कोई खतरा नहीं होता।
* कम उम्र वाले लोगों के लिए ये ज्यादा उपयुक्त होते है, क्योंकि इनके लगने के बाद वे सक्रिय जिंदगी बिता सकते है।
[तकनीक]
* यह इंप्लांट केवल 3.5 इंच के चीरे से ही लग जाता है।
* रक्त प्राय: बिल्कुल नहीं निकलता । इसलिए सामान्य हीमोग्लोबिन होने पर रक्त की जरूरत नहीं पड़ती।
* ऑपरेशन टाइम 45 मिनट का होता है।
* किसी भी मांसपेशी को काटने की जरूरत नहीं पड़ती। इसलिए रोगी को ऑपरेशन के तीसरे दिन ही खड़ा कर दिया जाता है।
[सावधानियां]
* 45 वर्ष की उम्र के बाद दो साल में एक बार 'बीएमडी' चेक अॅप करा लेना चाहिए।
आलेख - डॉ.आर. के. सिंह
सीनियर ज्वाइंट एन्ड स्पाइन सर्जन
सोमवार, 18 अक्टूबर 2010
रामजी की लीला है न्यारी - देश विदेश हर जगह प्यारी !
उत्तर भारत में इन दिनों रामलीला की धूम है। न केवल जगह-जगह रामलीला का मंचन हो रहा है, बल्कि कुछ रामलीला समितियां तो अब इंटरनेट द्वारा इसका दुनिया भर में सीधा प्रसारण भी कर रही हैं। इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि राष्ट्रमंडल खेलों का आनंद लेने भारत आए कई विदेशी खेलप्रेमी न केवल राजधानी दिल्ली में, बल्कि कुमायूँ और रामनगर-वाराणसी तक पहुँच कर भगवान राम के जीवनचरित्र का मंचन देख रहे हैं।
[रामनगर से शुरुआत]
क्या आप जानते हो कि मंच पर रामलीला की शुरुआत कब हुई थी? कहा जाता है कि इसकी शुरुआत वर्ष 1621 में रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास की प्रेरणा से हुई और आयोजक थे तत्कालीन काशी नरेश। इसी साल काशी के अस्सीघाट पर गोस्वामी तुलसीदास ने एक नाटक के रूप में रामलीला का विमोचन किया था। इसके बाद काशी नरेश ने हर साल रामलीला करवाने का संकल्प लिया और इसके लिये रामनगर में रामलीला की भव्य प्रस्तुति करवाई। रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला 22 दिनों में पूरी होती है।
[शरदपूर्णिमा पर समापन]
कल दशहरा था और अधिकतर लोग यही मानते हैं कि इस दिन भगवान राम द्वारा रावण के वध और इसके पुतले में आग लगाए जाने के साथ रामलीला समाप्त हो जाती है। ऐसा नहीं है महाराज , दरअसल रामलीला विजयदशमी के पाँच दिन बाद अर्थात शरदपूर्णिमा तक चलती रहती है। हाँ, यह बात और है कि तब इसका मंचन विशाल स्टेज पर न होकर किसी मंदिर अथवा धर्मशाला के भीतर भक्तों के बीच हो रहा होता है। इसका समापन शरदपूर्णिमा की चाँदनी रात में (जिसे हिंदुओं में बहुत पवित्र माना जाता है) रामलीला के पात्रों को खीर खिलाकर होता है। इस दिन रोज की चटख पोशाकों की जगह सभी पात्र दूधिया सफेद कपड़ों में होते हैं और यह दृश्य देखते ही बनता है।
[अलग-अलग हैं रंग]
'कोस-कोस पर बानी बदले, सात कोस पर पानी' की तर्ज पर भारत के अलग-अलग इलाकों में रामलीला के अलग-अलग रंग है। आप अयोध्या की रामलीला की तुलना कुमायूँ की रामलीला से नहीं कर सकते और दिल्ली में ही लालकिला की रामलीला और श्रीराम भारतीय कला केंद्र की रामलीला के मंचन में बहुत अंतर है। यह तो बात हुई भारत की, विदेशों में होने वाली रामलीलाओं के रंग तो और भी निराले हैं।
[भारत के बाहर रामलीला]
दक्षिण-पूर्व एशिया के इतिहास में कुछ ऐसे प्रमाण मिलते है, जिनसे ज्ञात होता है कि इस क्षेत्र में प्राचीन काल से ही रामलीला का प्रचलन था। इस क्षेत्र के विभिन्न देशों में रामलीला के अनेक नाम और रूप हैं। इन्हें मुख्य रूप से दो वर्गों 'मुखौटा रामलीला' और 'छाया रामलीला' में विभाजित किया जा सकता है। इंडोनेशिया और मलेशिया में खेली जाने वाली लाखोन, कंपूचिया की ल्खोनखोल तथा म्यांमार में मंचित होने वाली यामप्वे मुखौटा रामलीलाओं के उदाहरण हैं। मुखौटों के माध्यम से प्रदर्शित की जाने वाली रामलीला को थाईलैंड में खौन कहा जाता है। पुतलियों की छाया के माध्यम से प्रदर्शित की जाने वाली रामलीला मुखौटा रामलीला से भी निराली है। इसमें जावा तथा मलेशिया की वेयाग और थाईलैंड की नंग काफी मशहूर हैं!
आलेख :- मनीष त्रिपाठी
शनिवार, 16 अक्टूबर 2010
एक रि पोस्ट :- बॉस को शुक्रिया कहने का दिन - 16 अक्टूबर
बॉस को शुक्रिया कहने का दिन - 16 अक्टूबर
हैप्पी बर्थडे चाचा कलाम !!
पर नेट की समस्या के कारण समय पर पोस्ट नहीं कर पाए !
खैर, देर आमद .... दुरुस्त आमद !
डॉ.कलाम ने "Madras Institute Of Technology " से Areonautical Engineering से Graducation की । डॉ.कलाम ने भारत के प्रथम "Satellite Launch Vehicle(SLV-III)" के Project दिरेक्टोर के पद पर भी काम किया है । इसके बाद डॉ.कलाम ने भारत की प्रमुख मिसाईल अग्नि और प्रथ्वी के विकास में भी Chief Executive की भूमिका अदा की है । डॉ.कलाम सन १९९२ से १९९९ तक "Department of Defence Research & Development" के प्रमुख वैज्ञानिक सलहाकार भी रहे है । डॉ.कलाम को अब तक ३० से भी अधिक विश्वविद्यालय Doctrate की उपाधि प्रदान कर चुके हैं।
भारत सरकार ने डॉ.कलाम को सन १९८१ में पदम् भूषण और सन १९९० में पदम् विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया है और सन १९९७ में उनको इसरो में महत्वपूरण कार्यो और योगदान के लिए भारत रतन की उपाधि से भी सम्मानित किया है।
बुधवार, 13 अक्टूबर 2010
कलकत्ता की दुर्गा पूजा
मंगलवार, 12 अक्टूबर 2010
कौन बनेगा करोड़पति ?
देवियों और सज्जनों.. स्वागत है आपका 'कौन बनेगा करोड़पति 2010' में। 10 वर्ष बाद अमिताभ बच्चन इस चिरपरिचित वाक्य के साथ वापसी करेंगे। उल्लेखनीय है कि इस बार 'केबीसी' में कई नए प्रयोग किए जा रहे हैं। अब प्रतियोगियों को 60 मिनट में पांच करोड़ जीतने का अवसर मिल सकेगा। इसके निर्माता सिद्धार्थ बसु कहते हैं, इस बार 15 की बजाय 12 प्रश्न होंगे। 12 के जवाब देने के बाद एक जैकपॉट प्रश्न होगा जिसका जवाब देने के बाद प्रतियोगी पांच करोड़ रूपए जीत सकता है। 'कौन बनेगा..' के नए रूप-रंग को लेकर अमिताभ भी उत्साहित हैं। वह कहते हैं, मैं बहुत कृतज्ञ और आभारी हूं कि दर्शक उत्साह से केबीसी का इंतजार कर रहे हैं।'
[नए बदलाव]
[घड़ियाल बाबू]: घड़ी की टिक-टिक को घड़ियाल बाबू नाम दिया गया है।
[डबल डुबकी]: ये है नयी लाइफलाइन। इसका प्रयोग कर प्रतियोगी दो जवाब दे सकता है। यदि एक जवाब गलत हुआ, तो वह बचे हुए विकल्पों में एक विकल्प चुन सकता है।
[एक्सपर्ट से पूछें]: इस लाइफलाइन का प्रयोग कर प्रतियोगी विशेषज्ञ की सहायता ले सकता है।
[एक सप्ताह तक मौका]: फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट के प्रतियोगी पूरे सप्ताह हॉटसीट के लिए अपनी किस्मत आजमा सकते हैं।
[फेस्टिव लुक में होंगे बिग बी]
[रवि बजाज]
अमिताभ बच्चन की ड्रेस डिजाइन करते समय सबसे पहले यह ध्यान में रखना पड़ता है कि वे ऐसे स्टार हैं, जिनकी लोकप्रियता में उनकी बढ़ती उम्र आड़े नहीं आती। मैं चाहता था कि 'कौन बनेगा करोड़पति' में वे ग्रेसफुल और स्लीक लगें। अमित जी क्लासिक लुक में ज्यादा कंफर्टेबल रहते हैं। इसलिए मैंने उनके लुक के साथ बहुत ज्यादा एक्सपेरिमेंट नहीं किया है। उनके कपड़ों के लिए गहरे रंगों का और एक्सेसरीज के लिए हल्के रंगों का इस्तेमाल किया है। मेरी जब उनसे मेरी मुलाकात हुई थी, तभी मैंने कह दिया था कि मैं आपके लिए वार्डरोब डिजाइन करूंगा न कि कॉस्ट्यूम। दीवाली के दौरान 'कौन बनेगा करोड़पति' के एपिसोड में अमिताभ फेस्टिव लुक में दिखेंगे। वे उस दौरान पारंपरिक भारतीय पोशाक में नजर आएंगे, पर उसमें भी आधुनिकता का पुट होगा।
रविवार, 10 अक्टूबर 2010
अग्निपक्षी अमिताभ - कल भी और आज भी !
और इस साल आज से उनके प्रसिद शो ' कौन बनेगा करोडपति ' का चौथा संस्करण शुरू होने जा रहा है जिस का इंतज़ार पूरे भारत को है | शो के प्रोमो के हिसाब से अमिताभ भी पूरी तरह से तैयार दिखते है अपने फैन्स को रिझाने के लिए !
शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010
एक रि पोस्ट :- देवी पूजा के नियम
गुरुवार, 7 अक्टूबर 2010
एक रि पोस्ट :- वर्ल्ड साइट डे (8 अक्टूबर) - क्या आप ने नेत्रदान किया है ??
पिछले दिनों झा जी के ब्लॉग में पढने को मिला कि कैसे उन्होंने सपत्नी अपना नेत्रदान किया हुआ है , जान बहुत ख़ुशी हुयी साथ साथ एक गर्व की अनुभूति भी हुयी ! झा जी इसके लिए साधुवाद के पात्र है !
क्यों ना हम सभी ब्लॉगर मिल कर एक मुहीम चलाये और अपने अपने हिसाब से इस समस्या से छुटकारा पाने का प्रयास करे | आप सभी अपनी राय जरूर दे इस पहल को शुरू करने के विषय में | कृपया बताये हम क्या कर सकते है अपने अपने स्तर पर ?
क्या यह विचार अपने आप में सुखद नहीं है कि जब आप और हम इस दुनिया में नहीं होगे, फ़िर भी इस दुनिया को देख रहे होगे !!
जैसे हम जीते जी अपने वारिस के लिए कुछ ना कुछ जमा करते रहते है वैसे ही अपनी आखें अगर किसी के नाम कर जाये तो क्या हर्ज़ है ?? जाहिर सी बात है कोई भी हमसे यह तो नहीं कह रहा कि अभी निकल कर दे दो अपनी आखें !! जब हम नहीं होगे यह तब भी किसी के काम आने वाली बात है !! इसलिए आज ही अपने नेत्रदान के लिए पंजीकरण करवायें !
मेरा परिचय
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- हैप्पी बर्थडे चाचा कलाम !!
- कलकत्ता की दुर्गा पूजा
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