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शनिवार, 20 जून 2009

" फादर'स डे "

वैसे हम हिन्दुस्तानियों को अपने माता - पिता के प्रति अपना प्यार और आदर दिखाने के लिए किसी खास दिन कि कोई जरूरत नहीं है पर फ़िर भी .................................

अपने भीतर उलांचे भरते रक्त को महसूस किया है आपने,

अपनी आंखों में बसी दिशाओं को देखा है कभी,
कभी बांचा है, अपनी आदतों को,
अपने साहस को टटोला है कभी,
अपनी बद्धि, अपने बल, अपनी सोच और,अपने आत्मविश्वास से रूबरू हुए है कभी,
अगर नहीं, तो मिलिए अपने पिता से,जिनसे मिला है आपको यह सब कुछ।
21 जून को ‘फादर डे’ हैं।
पिता को महसूस करने के इस दिन को कुछ महान शायरों नें अपने अंदाज में बयान किया है तो आज बात पिता की................


बाबूजी
घर की बुनियादें दीवारें, बामो दर थे बाबूजी,
सबको बांधे रखने वाला, खास हुनर थे बाबूजी।
अब तो उस सूने माथे पर कोरेपन की चादर है,
अम्मा की सारी सजधज, औ सब जेवर थे बाबूजी।
तीन मोहल्लों में उन जैसी कद काठी का कोई न था,
अच्छे खासे उंचे पूरे कद्दावर थे बाबूजी।
भीतर से खालिस जज्बाजी, और उपर से ठेठ पिता,
अलग, अनूठा, अनबूझा सा, इक तेवर थे बाबूजी।
कभी बड़ा सा हाथ खर्च थे, कभी हथेली की सूजन,
मेरे मन का आधा साहस, आधा डर थे बाबूजी।
-आलोक श्रीवास्तव


पिता
तुम्हारी क्रब पर मैं फातिया पढ़ने नहीं आया,
मुझे मालूम था, तुम मर नहीं सकते,
तुम्हारी मौत की सच्ची खबर, जिसने उड़ाई थी
वह झूठा था, वह झूठा था।
वह तुम कब थे,
कोई सूखा हुआ पत्ता हवा से हिल के टूटा था।
मेरी आखें मंजरों में कैद है अब तक,
मैं जो भी देखता हूँ, सोचता हूँ वह वही हैं,
जो तुम्हारी नेकनामी और बदनामी की दुनिया थी,
कहीं कुछ भी नहीं बदला,
तुम्हारे हाथ मेरी अंगुलियों में सांस लेते हैं।
मैं लिखने के लिये जब कलम कागज उठाता हू
तुम्हे बैठा हुआ मैं अपनी कुर्सी पे पाता हूँ
बदन में मेरे जितना भी लहू है,
वह तुम्हारी लग़जिषों-ऩाकामियों के साथ बहता हैं।
मेरी आवाज में छुपकर तुम्हारा जहन रहता हैं।
मेरी बीमारियों में तुम, मेरी लाचारियों में तुम।
तुम्हारी कब्र पर जिसने तुम्हारा नाम लिखा था,
वह झूठा था, वह झूठा था,
तुम्हारी क्रब में मैं दफन हूँ, तुम मुझमें जिंदा हो।
कभी फुरसत मिले तो फातिया पढ़ने चले आना।
-निदा फाज़ली


सीने में जो आग है, जो पानी है ओखों में,
और जो गति है पैरों में,आखिर कहा से आये ये सब,
कहने को,कुछ नही लिया, मैनें अपने पिता से,
-मणीमोहन मेहता


तुम्हारे खून से, मेरी रगों में ख्वाब रोशन हैं,
तुम्हारी आदतों में, खुद को ढलते हुवे मैनें देखा हैं,

- अज्ञात



वैसे अक्सर यह दुआ एक बाप अपने बेटे के लिए करता है पर आज मैं अपने खुदा से यह मांगता हूँ कि मेरी तमाम उमर मेरे पिता को लग जाए क्यूकी किसी ने ठीक ही कहा है कि " बाप, बाप ही होता है |"

LOVE YOU PAPA.


HAPPY FATHER ' s DAY.




1 टिप्पणी:

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