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मंगलवार, 9 जून 2009

हिंदी मंचो के कविसूर्य श्रद्धेय श्री ओम प्रकाश 'आदित्य'

हिंदी मंचों के कविसूर्य थे ओम प्रकाश आदित्य

कल हिन्दी कविता की मंचीय परम्परा को समृद्ध करने वाले वरिष्ठ हास्य-व्यंग्य कवि ओमप्रकाश आदित्य की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई। हिन्दी काव्य जगत इस कवि के चले जाने के बाद शोकाकुल है। हिन्द-युग्म के कवि अरुण मित्तल अद्‍भुत कवि आदित्य के प्रति अपनी यह श्रद्धाँजलि अर्पित की है-


हिंदी मंचो के कविसूर्य श्रद्धेय श्री ओम प्रकाश 'आदित्य'


हिंदी काव्य मंचो पर यदि तीन शब्दों को जोड़ा जाए - कविता, हास्य और छंद, तो मात्र एक ही नाम जहन में आएगा और वो होगा श्री ओम प्रकाश 'आदित्य', सुकोमल चेहरा, अल्हड भाषा, उच्चारण में मिठास, शब्दों में सम्मोहन की शक्ति, क्या नहीं था उस महान साहित्य मनीषी के पास, आज गजल और गीत में संस्कार है, जीवन दर्शन है, छंद है परन्तु वो इस पीढी के एकमात्र ऐसे रचनाकार दिखे जिन्होंने इन सभी जरूरी भावों को हास्य की सहजता के साथ प्रस्तुत किया. सचमुच आदित्य दादा ने मंचो पर हास्य का एक ऐसा युग जिया, और एक ऐसा स्तर स्थापित किया जिसे आने वाले युग में किसी कवि द्बारा छू पाना सरल नहीं होगा. उनका कोई सानी नहीं था. मंच पर आते ही मधुर सी भूमिका, सरल और अल्हड शब्दों में कवियों का अभिवादन, छोटे बड़े सभी कवियों को प्यार और सम्मान उनका नियम था.

सादगी आदित्य दा की पोशाक थी. उन्होंने काव्य पाठ के लिए कभी चुटकुलों का सहारा नहीं लिया, कभी किसी पर फब्तियां नहीं कसी, कभी किसी का भूल से भी मजाक नहीं बनाया, मंचों के स्तरहीन टोटकों से हमेशा परे रहकर अपनी बात कहने का अद्भुत हुनर हर किसी को उनका दीवाना बना देता था.
आदित्य जी घनाक्षरी छंदों से काव्यपाठ की शुरुआत करते थे दो चार छंद और एक दो प्रतिनिधि कवितायेँ और बीच बीच में उनके संस्मरण जो वास्तव में प्रेरणा दायक होते थे, मैं हरदम कहता हूँ की "हास्य में कविता" और वो भी 'छंद' के साथ, मुझे बहुत ज्यादा नाम नहीं सूझते 'गोपाल प्रसाद व्यास, काका हाथरसी और फिर घूम फिरकर आदित्य दा. उनके छंद पढने का अंदाज़ निराला था. हर शब्द को चबा चबा कर बोलना और साहित्यिक शैली में हास्य की बात घनाक्षरी छंदों में लिखना एक छोटा सा उदहारण है


"अबके चुनाव की लहर ने कहर ढाया, नदियों के साथ कैसे कैसे नाले बह गए
उल्लुओं को अम्बुआ की डाल पर देख कर, हौसले बसंत के अनंत तक ढह गए
भारत में कभी गंगू तेलियों का राज होगा, जाते जाते राजा भोज मंत्रियों से कह गए
चाँद से चरित्र वाले नेता सब चले गए, नेताओं के नाम पर ये कलंक रह गए


उनकी उपमाएं और उपमान अद्वितीय थे. उन्होंने हर प्रकार का हास्य लिखा, छोटी बहर के छन्दों में भी, घनाक्षरी तो उनका प्रिय छंद रहा ही, आल्हा छंद में पूरी राजनीति का चरित्र बांधकर जब वो सुनाते थे तो श्रोता झूम उठते थे, एक उदहारण है

सुमरण कर के मंत्रिपद का, भ्रष्टाचार का ध्यान लगाय
करुँ वंदना उस कुर्सी की, जिस पे सबका मन ललचाय
बिन बिजली के कैसा बादल, बिन पूँजी क्या साहूकार

बिन बन्दूक करे क्या गोली, बिना मूठ कैसी तलवार

बिना डंक बिच्छु क्या मारे, फन बिन सांप डसे क्या जाय,
रूप बिना वेश्या क्या पावै, घूस बिना अफसर क्या खाय

बिन जल के मछली ना जीवे, बिन जंगल न जिए सियार
बिन कुर्सी मंत्री न जीवे, जो जीवे उसको धिक्कार


इसी आल्हा में हर्षद मेहता काण्ड के कारण हुए विवाद पर लिखा-

"कुर्सी छोडो, कुर्सी छोडो गूँज उठा संसद में नाद,
दिल्ली में नरसिम्हा रोये, आँसू गिरे हैदराबाद


उन्होंने हास्य के हर पहलू को जिया, एक छंद की अंतिम पंक्ति है :

पिछले चुनावों से वो मेरा गधा लापता है,
ढूँढने आया हूँ उसे संसद भवन में


एक और कविता में उन्होंने बहुत अच्छा हास्य और व्यंग पिरोया है, जो पिछले दिनों काफी चर्चित रही :

इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं
जिधर देखता हूँ गधे ही गधे हैं
......
घोडों को मिलती नहीं घास देखो
गधे खा रहे हैं च्वयनप्राश देखो


आदित्य जी के साहित्य के बारे में जितना लिखो कम है उन्होंने एक ऐसा प्रयोग भी किया जो सचमुच उनके साहित्य के प्रति समर्पण और अपने साथी और अग्रज कवियों के प्रति सम्मान को दिखता है. इतना ही नहीं उस प्रयोग से उनकी साहित्यिक प्रतिभा के विस्तार का भी सहज ही अनुमान हो जाता है. उन्होंने एक ऐसी कविता लिखी कि एक विशेष स्थिति पर यदि १०-१२ हिंदी के प्रसिद्द कवियों को लिखने के लिए कहा जाता तो वो कैसा लिखते. स्थिति थी की एक लड़की अपने घर वालों से लड़कर छत पर बैठी है और कूदकर मरना चाहती है, हालांकि इस कविता में काफी कवियों की शैली में उन्होंने लिखा है परन्तु मैं दो उदाहरण जो सचमुच विचित्र ही नहीं बल्कि विधा में भी विपरीत से ही लगते हैं प्रस्तुत कर रहा हूँ

सुमित्रा नंदन पन्त जी की शैली में :


स्वर्ण शोध के रजत शिखर पर
चिर नूतन चिर सुन्दर प्रतिपल
उन्मन उन्मन अपलक नीरव
शशि मुख पर कोमल कुंतल पट
कसमस कसमस चिर यौवन घट
पल पल प्रतिपल, छल छल करती निर्मल दृगजल
ज्यों निर्झर के दो नील कवँल
ये रूप चपल ज्यों धुप धवल
अति मौन कौन, रूपसी बोलो
प्रिय बोलो न


काका हाथरसी जी की शैली में

गौरी बैठी छत पर, कूदन को तैयार
नीचे पक्का फर्श है, भली करै करतार
भली करै करतां, न दे दे कोई धक्का
ऊपर मोटी नार के नीचे पतरे कक्का
कह काका कविराय, अरी मत आगे बढ़ना
उधर कूदना, मेरे ऊपर मत गिर पड़ना



और न जाने कितनी ही कवितायेँ मेरे मन में रम, रच बस गयी हैं, विद्यार्थी की प्रार्थना, दुल्हे की घोडी, संपादक पर कविता, बूढा, आधुनिक शादी, नोट की आरती आदि आदि ..... आदित्य जी ने देश के स्वाभिमान की बात जहाँ भी आई वहाँ वहाँ खुलकर बोला, अंग्रेजी के प्रसिद्द लेखक और पत्रकार खुशवंत सिंह द्बारा हिंदी भाषा पर की गयी अपमानजनक टिप्पणी पर उन्होंने "ओ खुशवन्ता" नाम से कविता लिखी जिसे मंचो पर काफी स्नेह मिला...

कविता की प्रारंभिक पंक्तियाँ थी


ओ खुशवन्ता
भारत में चरता विचरंता
अंग्रेजी की बात करंता
हिंदी दिए दरिद्र दिखंता
क्यों लन्दन जा नहीं बसंता


केवल हास्य ही नहीं जहाँ कही भी उन्हें लगा की रस परिवर्तन की जरूरत है, उन्होंने वो भी किया उनकी कविता "सैनिक की पत्नी का पत्र" इस बात का प्रमाण है जिसमे एक छंद में उन्होंने लिखा:

"आप सीमा पर गए चिंता इसकी नहीं है
दुःख यही है की प्राण मैं भी कुछ धारती
मुझे एक बन्दूक थमा के चले जाते
चुन चुन कर यहाँ देश द्रोहियों को मारती
आप क्रुद्ध होके वहां सीमा पर युद्ध करें
पूजा पाठ में समय मैं यहाँ गुजारती
मात्रि भूमि मंदिर में वन्दे मातरम गाके
विजयी तिरंगे की उतारती हूँ आरती


मैंने उनको बचपन से सुना है, पढ़ा है और मनन भी किया है, मेरे पापा श्री महावीर प्रसाद मित्तल न केवल कविताओं के शौकीन रहे बल्कि उन्होंने मुझे आदित्य जी की कई कवितायेँ सुनाई भी और याद भी करवा दी, आदित्य जी की पहली कविता जो मुझे याद हुई वो चुनावी परिप्रेक्ष्य में थी जिसमे प्रधानमंत्री की कुर्सी की पीडा का वर्णन था.

देखो पी एम् की कुर्सी बिचारी बताओ मैं किसको वरूं
न मैं ब्याही रही न कुवांरी बताओ मैं किसको वरूं


और अनेक कवितायेँ और अनेक रूप हैं आदित्य जी के साहित्य सृजन के, जीवन की सरलता के सम्बन्ध में उनका एक सार्थक छंद, भाई चिराग जैन जी के ब्लॉग से उठाकर परोस रहा हूँ,

दाल-रोटी दी तो दाल-रोटी खा के सो गया मैं
आँसू दिये तूने आँसू पिए जा रहा हूँ मैं
दुख दिए तूने मैंने कभी न शिक़ायत की
जब सुख दिए सुख लिए जा रहा हूँ मैं
पतित हूँ मैं तो तू भी तो पतित पावन है
जो तू करा ता है वही किए जा रहा हूँ मैं
मृत्यु का बुलावा जब भेजेगा तो आ जाउंगा
तूने कहा जिए जा तो जिए जा रहा हूँ मैं


सचमुच "दुल्हे की घोडी", एक विशुध्ध हास्य कविता में "जीवन दर्शन" की इतनी सार गर्भित पंक्तियाँ सुनकर उन्हें नमन करने पर विवश हो गया: (घोडी भाग रही है और दूल्हा पीठ से चिपका हुआ है, घोडी के भागने की गति पर)

घोडी चलचित्र सी
युग के चरित्र सी
कुल के कुपात्र सी
आवारा छात्र से
पथ भ्रष्ट योगी सी
कामातुर भोगी सी
उच्छल तरंग सी
अतुकांत कविता सी
और छंद भंग सी

दौडी चली जा रही थी ...........


१५ नवम्बर, २००७ को दस्तक नयी पीढी नाम से एक काव्य संध्या का आयोजन हुआ जिसमे १५ युवा कवियों ने काव्य पाठ किया, जिनमे एक मैं भी था, सञ्चालन भाई चिराग जैन ने किया, आदित्य दादा, अल्हड बीकानेरी जी और डॉ कुंवर बेचैन जी उसमे विशेष रूप से युवा कवियों में संभावनाएं तलाशने के लिए उपस्थित थे, पूरे कवि सम्मलेन में न केवल उन्होंने हर कवि को मन से सुना बल्कि अंत में आदित्य जी ने सबकी प्रतिभा की सराहना भी की और लगभग हर कवि से सम्बंधित बात करते हुए आशीर्वचन भी कहे.... ये प्रमाण था उनके साहित्य के प्रति समर्पण का, वो चाहते थे की मंच पर अच्छे स्तर की कविता हो और उसी की तलाश में उन्होंने हर नौसीखिए कवि के एक एक शब्द को सुना.

यह तय है की आदित्य जी की रचना धर्मिता को शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता, वो एक ऐसा व्यक्तित्व था जो हमेशा हमेशा के लिए अपनी कविताओं से हमारे दिल में बस गया। उनका कवि परवार से अकस्मात चले जाना एक अपूर्णीय क्षति है, आदित्य जी आज भी कहीं आँखों में तस्वीर बनकर बसे हैं सीरी फोर्ट ऑडिटोरियम दिल्ली में, काव्य पाठ करते कवि ओमप्रकाश आदित्य, हिंदी भवन में "दस्तक नयी पीढी की' कार्यक्रम में श्री जगदीश मित्तल जी के जन्मदिवस पर युवा कवियों को आर्शीवाद देते पितामह कवि आदित्य जी. हर समय उतने ही सरल, सौम्य, और सचमुच के बड़े कवि. कौन कहता है की वो चले गए ......... साहित्यकार कभी नहीं मरते, अमर होते हैं .... आदित्य दादा आज भी हम सब के दिलों में हैं, हर मंच पर आज भी उनकी अमिट छाप है, हमारी जुबान पर आज भी उनकी कवितायेँ हैं, वो हम सब में बसे हैं ........ समस्त हिंदी साहित्य उनके ईमानदार साहित्य सृजन का ऋणि रहेगा|


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समस्त मैनपुरी वासीयों का आपको अश्रुपूर्ण नमन |

3 टिप्‍पणियां:

  1. दोस्त मुझे इस बात की उम्मीद कम थी.....आप इस ब्लॉग इतना खुबसूरत और प्रासंगिक बना दोगे.ब्लॉग की दुनिया में ''भला बुरा'' नए कीर्तमान रचने जा रहा हैं.अडवांस मे मेरी शुभकामनायें स्वीकार करें...दोस्त मुझे तुम पर फक्र हैं.दयार इश्क में अपना मुकाम पैदा कर. नई ज़मीन नए सुबह-ओ शाम पैदा कर.मेरा दरिक अमीरी नहीं हैं फकीरी हैं खुदी ना बेंच गरीबी में नाम पैदा कर.

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  2. I don't want my blog to get publicity at this much big cost.

    We have lost such great talents that it will be very hard for the present and the future generations to fulfill the gap in the coming decades.

    My heartiest condolences.

    जवाब देंहटाएं

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