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बुधवार, 13 अक्टूबर 2010

कलकत्ता की दुर्गा पूजा


मेरी पैदाइश और परवरिश दोनों कलकत्ता की है ! १९९७ में कलकात्ता छोड़ कर मैं मैनपुरी आया और तब से यहाँ का हो कर रह गया हूँ ! आज भी अकेले में कलकत्ता की यादो में खो सा जाता हूँ | कलकत्ता बहुत याद आता है , खास कर दुर्गा पूजा के मौके पर, इस लिए सोचा आज आप को अपने कलकत्ता या यह कहे कि बंगाल की दुर्गा पूजा के बारे में कुछ बताया जाये !

यूँ तो महाराष्ट्र की गणेश पूजा पूरे विश्व में मशहूर है, पर बंगाल में दुर्गापूजा के अवसर पर गणेश जी की पत्नी की भी पूजा की जाती है।

जानिए और क्या खास है यहां की पूजा में।

[षष्ठी के दिन]






मां दुर्गा का पंडाल सज चुका है। धाक, धुनुचि और शियूली के फूलों से मां की पूजा की जा रही है। षष्ठी के दिन भक्तगण पूरे हर्षोल्लास के साथ मां दुर्गा की प्राण प्रतिष्ठा करते हैं। यह दुर्गापूजा का बोधन, यानी शुरुआत है। इसी दिन माता के मुख का आवरण हटाया जाता है।

[कोलाबोऊ की पूजा]

सप्तमी के दिन दुर्गा के पुत्र गणेश और उनकी पत्नी की विशेष पूजा होती है। एक केले के स्तंभ को लाल बॉर्डर वाली नई सफेद साड़ी से सजाकर उसे उनकी पत्नी का रूप दिया जाता है, जिसे कोलाबोऊ कहते हैं। उन्हें गणेश की मूर्ति के बगल में स्थापित कर पूजा की जाती है। साथ ही, दुर्गा पूजा के अवसर एक हवन कुंड बनाया जाता है, जिसमें धान, केला आम, पीपल, अशोक, कच्चू, बेल आदि की लकडि़यों से हवन किया जाता है। इस दिन दुर्गा के महासरस्वती रूप की पूजा होती है।

[108 कमल से पूजा]



माना जाता है कि अष्टमी के दिन देवी ने महिषासुर का वध किया था, इसलिए इस दिन विशेष पूजा की जाती है। 108 कमल के फूलों से देवी की पूजा की जाती है। साथ ही, देवी की मूर्ति के सामने कुम्हरा (लौकी-परिवार की सब्जी) खीरा और केले को असुर का प्रतीक मानकर बलि दी जाती है। संपत्ति और सौभाग्य की प्रतीक महालक्ष्मी के रूप में देवी की पूजा की जाती है।

[संधि पूजा]

अष्टमी तिथि के अंतिम 24 मिनट और नवमी तिथि शुरू होने के 24 मिनट, यानी कुल 48 मिनट के दौरान संधि पूजा की जाती है। 108 दीयों से देवी की पूजा की जाती है और नवमी भोग चढ़ाया जाता है। इस दिन देवी के चामुंडा रूप की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इसी दिन चंड-मुंड असुरों का विनाश करने के लिए उन्होंने यह रूप धारण किया था।

[सिंदूर खेला व कोलाकुली]




दशमी पूजा के बाद मां की मूर्ति का विसर्जन होता है। श्रद्धालु मानते हैं कि मां पांच दिनों के लिए अपने बच्चों, गणेश और कार्तिकेय के साथ अपने मायके, यानी धरती पर आती हैं और फिर अपनी ससुराल, यानी कैलाश पर्वत चली जाती हैं। विसर्जन से पहले विवाहित महिलाएं मां की आरती उतारती हैं, उनके हाथ में पान के पत्ते डालती हैं, उनकी प्रतिमा के मुख से मिठाइयां लगाती हैं और आंखों (आंसू पोंछने की तरह) को पोंछती हैं। इसे दुर्गा बरन कहते हैं। अंत में विवाहित महिलाएं मां के माथे पर सिंदूर लगाती हैं। फिर आपस में एक-दूसरे के माथे से सिंदूर लगाती हैं और सभी लोगों को मिठाइयां खिलाई और बांटी जाती है। इसे सिंदूर खेला कहते हैं। वहीं, पुरुष एक-दूसरे के गले मिलते हैं, जिसे कोलाकुली कहते हैं। यहाँ सब एक दुसरे को विजय दशमी की बधाई 'शुभो बिजोया' कह कर देते है | यहाँ एक दुसरे को रसगुल्लों से भरी हंडी भेंट करना का भी प्रचालन है |



[मां की सवारी]

वैसे तो हम सब जानते है की माँ दुर्गा सिंह की सवारी करती हैं, पर बंगाल में पूजा से पहेले और बाद में माँ की सवारी की चर्चा भी जोरो से होती है | यह माना जाता है कि यह उनकी एक अतरिक्त सवारी है जिस पर वो सिंह समेत सवार होती हैं |
इस वर्ष देवी दुर्गा पालकी पर सवार होकर आ रही हैं और हाथी की सवारी कर लौटेंगी। पालकी की सवारी से माँ का आना बहुत ही शुभ माना जाता है ....कहा जाता है की माँ अपने साथ सब के लिए कुछ ना कुछ ले कर आ रही है हर जगह सुख ही सुख होगा साथ ही, हाथी की सवारी कर जाना भी मंगलकारी माना जाता है , इसलिए देवी का जाना भी शुभ फलदायक माना जा रहा है।


6 टिप्‍पणियां:

  1. हमलोग बंगाल से सटे इलाके में ही हैं .. इसलिए यहां भी पूजा की खूब धूमधाम रहती है .. लगभग इसी प्रकार के रस्‍मोरिवाज के साथ .. पर कलकत्‍ते के दुर्गा पूजा की बात तो बिल्‍कुल निराली है !!

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  2. ओह मिश्र जी ! आपने तो सारी यादें ताज़ा कर दी .... यहाँ विदेश में हूँ, और यहाँ पर दुर्गा पूजा या दशेरे नहीं मनाई जाती है .... ऐसे मौके पर घर की याद बहुत आती है ... बचपन की यादें सताती हैं जब दोस्तों संग दुर्गा पूजा का आनंद उठाया करते थे ... मन में कहीं अन्दर से एक टीस सी उठती है ....

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  3. सिवम बाबू, धन्यवाद हमरा मान रखने का कि आप यह पोस्ट प्रस्तुत किए! हमरे लिए तो यह फिर से जीने का अनुभब है.. एकदम जीवंत कर दिया आपने षष्ठी पूजो से बिजोया तक का दृस्य!!आज षष्ठी पूजन है, आपको अऊर समस्त परिवार व मैंअपुरी वासियों को बधाई!!

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  4. बहुत अच्छी जानकारी ....कुछ समय कोलकता में रहने का मौका मिला ..वहाँ की दुर्गा पूजा देखी ...बहुत जोश रहता है पूजा का ..

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  5. बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने धन्यवाद

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