'टाइगर हिल की वह रात आज भी मुझे पूरी तरह से याद है, जब दुश्मनों ने मुझ पर गोलियां चलाईं तो मेरी जेब में पड़े पांच रुपये के सिक्कों ने मेरी जान बचाई थी। दुश्मनों द्वारा फेंके गए हैंड ग्रेनेड से मेरा बायां हाथ भी जख्मी हो गया था। एक हाथ में एके-47 राइफल लेकर दुश्मनों पर गोली चलाई।'
यह कहना है कारगिल के योद्धा व परमवीर चक्र विजेता जोगेंद्र सिंह यादव का। वह बताते हैं- 'पांच जुलाई 1999 को कमांडर ने हमें सात जवानों के साथ टाइगर हिल पर दुश्मनों से मोर्चा लेने के लिए रवाना किया। टाइगर हिल काफी ऊंचाई पर है। ऐसे में दुश्मनों को हम जल्दी दिख गए। उन्होंने फायरिंग के साथ ही गोलाबारी शुरू कर दी। इसमें साथ के छह जवानों के साथ ही मैं स्वयं भी घायल हो गया। इसके बाद दुश्मनों ने घायल पड़े एक-एक जवान को गोली मारी। संयोग से दुश्मनों की गोली मेरी जेब में पांच रुपये के कुछ सिक्कों को लगी। उन सिक्कों ने वह गोली झेल ली। मेरा बायां हाथ पहले ही लहूलुहान हो चुका था।'
आगे बताते हैं- 'जब दुश्मन वापस लौटने लगे, तो चुपके से लुढ़क कर मैं एक पत्थर की आड़ में हो गया और राइफल उठाकर दुश्मनों के ऊपर फायरिंग शुरू कर दी, जख्मी हाथ से मांस झूल रहा था जिससे राइफल चलाने में दिक्कत हो रही थी। कुछ फायरिंग एक पत्थर के पीछे से, तो कुछ फायरिंग दूसरे पत्थर के पीछे से की। इस तरह से कुछ ही सेकेंड में लुढ़कते हुए कई स्थानों से फायरिंग की, जिस पर दुश्मनों को यह अहसास हुआ कि भारतीय फौजी काफी संख्या में उनकी तरफ बढ़ रहे हैं और वे दूर भाग गए।'
मूलरूप से बुलंदशहर के औरंगाबाद अहीर के निवासी जोगेंद्र यादव साहिबाबाद के लाजपत नगर ई-130/1 में रहते हैं और जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में नियुक्त हैं। भारत सरकार ने उन्होंने 26 जनवरी 2000 में परमवीर चक्र से सम्मानित किया। उनका एक भाई जितेंद्र सिंह यादव भी सेना में हैं और बड़ौदा में नियुक्त है।
मिश्रा जी पहले तो आपने कारगिल के विजय दिवस कि याद में एक अच्छा लेख लिखा फिर कारगिल के एक शेर से परिचय करवाया धन्यवाद. आप ब्लॉग्गिंग माध्यम का सही उपयोग कर रहे हैं.
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण जानकारी पढ़ने को मिली ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट और बहुत अच्छी जानकारी. हमें "पप्पाराज़ी" और "सेलिब्रिटी" के बदले इन सबकी ज्यादा ज़रूरत है. थैंक्स भईया!
जवाब देंहटाएंजोगेंद्र सिंह यादव जी की हिम्मत और जज्बे को सलाम
जवाब देंहटाएंसिवम बाबू! इन अनसंग हीरो को हमारा सैल्युट... अमिताभ के जेब में रखा बिल्ला नं. 786 गोली खाकर जान बचाता है तो लोग ताली बजाता है... लेकिन जोगेंद्र जी जैसा हीरो गुमनामी में जिन्नगी बिताता है... अख़बार में ई खबर पढने के बाद ऑफिस में चर्चा का बिसय इनका बहादुरी नहीं था, बल्कि हजारो वाट के आर्क लाईट में अमिताभ बच्चन के फिलिम दीवार के साथ जोगेंद्र जी के बहादुरी का घटना का तुलना था...
जवाब देंहटाएंआपका बिसेसता हर पोस्ट के जईसा इस पोस्ट में भी झलकता है...
जोगेन्द्र सिंह के जज्बे को हम सैल्युट करते हैं।
जवाब देंहटाएंबहादुरों को जब भी मौका मिलता है
अपना हौसला दिखाने का वह चुकते नहीं हैं।
जाको राखे राखे सांईया मार सके ना कोई।
हिंद के इन जांबाज सिपाहियों पर हमें गर्व है।
अच्छी पोस्ट
आभार
शिवम, ऐसे ही बहादुरों के दम-खम पर यह देश चल रहा है.अन्यथा नेताओं, नौकरशाहों, ठेकेदारों और दलालों ने तो इसे हजम ही कर लिया है.
जवाब देंहटाएंऐसे वीर सपूत को सलाम और आपका आभार.
जवाब देंहटाएंयादव जी को सलाम ! सुन्दर पोस्ट के लिए बधाई !
जवाब देंहटाएंआपकी वीरता को नमन।
जवाब देंहटाएंaap jaise veer bahut kam hote hain
जवाब देंहटाएंऐसे वीर सपूत को सलाम .
जवाब देंहटाएंभारत के इस वीर सपूत को हमारा कोटि कोटि नमन है।
जवाब देंहटाएंभारत माँ के वीर सपूतों को नमन!
जवाब देंहटाएंबढिया लेख....