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सोमवार, 7 जून 2010

त्रासदी के 25 वर्ष बाद आया फैसला - भोपाल गैस कांड के सभी आरोपी दोषी करार




भोपाल की यूनियन कार्बाइड गैस त्रासदी को 25 वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद न्यायालय ने 23 साल की सुनवाई के बाद सोमवार को इस मामले में आठ लोगों को दोषी करार दिया और यह फैसला सुनाने वाले मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी मोहन पी तिवारी मामले की सुनवाई करने वाले 19वें न्यायाधीश रहे।

गौरतलब है कि सीबीआई द्वारा इस मामले में आरोपपत्र इस घटना के लगभग तीन साल बाद एक दिसंबर 1987 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के. ए. सिसोदिया की अदालत में पेश किया गया था।

सिसोदिया के बाद मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी आर सी मिश्रा ने इस मामले की सुनवाई 30 सितंबर 1988 से शुरु की। उनके बाद लाल सिंह भाटी की अदालत में इस मामले की सुनवाई 26 जुलाई 1989 से 27 नवंबर 1991 तक चली।

मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी गुलाब शर्मा ने इस प्रकरण की सुनवाई के बाद मामले को 22 जून 1992 को सत्र न्यायालय को स्थानांतरित कर दिया और सत्र न्यायाधीश एस। पी. खरे ने 13 जुलाई 1992 से सुनवाई शुरु की।

वर्ष 1984 की दुनिया की भीषणतम औद्योगिक त्रासदी भोपाल गैस कांड के 25 साल बाद इस मामले के आठों आरोपियों को सोमवार को दोषी करार दिया गया। यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन अध्यक्ष सहित सभी आठ आरोपियों को दोषी करार दिया गया।

मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी मोहन पी तिवारी ने इन आरोपियों को धारा 304 [ए] और धारा 304 के तहत दोषी करार दिया। जिन लोगों को दोषी ठहराया गया है उनके नाम हैं:- यूसीआईएल के तत्कालीन अध्यक्ष केशव महेन्द्रा, प्रबंध संचालक विजय गोखले, उपाध्यक्ष किशोर कामदार, व‌र्क्स मैनेजर जे मुकुंद, प्रोडक्शन मैनेजर एस पी चौधरी, प्लांट सुपरिंटेंडेंट के वी शे्टटी, प्रोडक्शन इंचार्ज एस आई कुरैशी और यूसीआईएल कलकत्ता। मामले की सुनवाई के दौरान सभी आरोपी अदालत में मौजूद थे।

उल्लेखनीय है कि 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी में कुल नौ लोगों को अभियुक्त बनाया गया था, जिनमें से यूसीआईएल के तत्कालीन व‌र्क्स मैनेजर आर बी रायचौधरी की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई।

पर सवाल यह उठता है क्या यह फैसला सही है ??
इतने लम्बे इतजार के बाद क्या इसी न्याय की आस लगाये बैठ थे सब ??
जो धाराएँ लगाई गयी है क्या वह उचित है ??
क्या इतनी बड़ी लापरवाही की बस यही सजा है ??

इस फैसले ने एक बार फिर देश की न्याय व्यवस्था पर कई सवाल खड़े कर दिए है |



6 टिप्‍पणियां:

  1. ये फ़ैसला निष्पक्ष होगा .. इस बात पर संदेह है ...

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  2. लोकतंत्र , इन हमारे कानूनविदों और जजों ने भी तो अपने घर भरने थे , राजनितिज्ञो के साथ मिलकर तुरंत फैसला दे देंगे तो इनको doggy भी नहीं पूछेगा !

    घृणा होती है कभी-कभी ऐसे लोकतंत्र से

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  3. क्या इस मै कोई अमेरिकन नही था जिम्मेदार???

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  4. ग़ौर करिएगा त इसमें खुस होने वाला कोनो बात नहीं है... कहते हैं कानून में देर है, मगर अंधेर नहीं...इसीलिए ई लोग देरी पर टिक गया हैं…

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  5. सही है कई सवाल खड़े हो गए हैं।

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