पूर्व उप राष्ट्रपति और तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री की कमान संभालने वाले भैरोंसिंह शेखावत का शनिवार को सवाई मान सिंह अस्पताल में निधन हो गया। तबीयत बिगड़ने के कारण उन्हें दो दिन पहले ही अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वह 87 वर्ष के थे।
सवाई मान सिंह अस्पताल के अधीक्षक डा नरपत सिंह शेखावत ने बताया कि शेखावत को 13 मई को सांस और रक्तचाप की तकलीफ के कारण गहन चिकित्सा कक्ष में भर्ती कराया गया था। कल रात तक उनका स्वास्थ्य स्थिर था, लेकिन आज सुबह उनकी तबीयत अचानक खराब हो गई और 11:20 बजे उन्होंने अन्तिम सांस ली।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आज सुबह ही शेखावत का हालचाल पूछने सवाई मान सिंह अस्पताल गए थे और उन्होंने शेखावत का इलाज कर रहे डाक्टरों से उनकी तबीयत के बारे में पूछताछ की थी। अधिकारिक सूत्रों के अनुसार शेखावत का अंतिम संस्कार कल जयपुर में किया जाएगा। शेखावत के निधन का समाचार मिलते ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सवाई मानसिंह अस्पताल पहुंचे और परिजनों को ढाढ़स बंधाया। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री नमो नारायण मीणा ने भी सवाई मानसिंह अस्पताल पहुंच कर शेखावत के निधन पर संवेदना जताई।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डा अरुण चतुर्वेदी, भारतीय जनता पार्टी के सांसद राम दास अग्रवाल ने शेखावत के असामयिक निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया। शेखावत के निधन का समाचार मिलते ही उनके ननिहाल, पैतृक निवास स्थान खाचरियावास समेत देश भर में शोक की लहर दौड़ गई।
अपने समर्थकों द्वारा 'राजस्थान का एक ही सिंह' कहलाने वाले पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत देश के 11वें उपराष्ट्रपति थे जो इस पद पर 19 अगस्त 2002 से लेकर 21 जुलाई 2007 तक काबिज रहे। राजनीति के धुरंधर कहे जाने वाले शेखावत अपने पूर्ववर्ती कृष्णकांत के निधन के बाद उप राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए थे। प्रतिभा पाटिल से राष्ट्रपति पद का चुनाव हारने के बाद उन्होंने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था।
23 अक्टूबर 1923 को राजस्थान में सीकर जिले के खचरियावास गांव में जन्मे शेखावत को सांस में तकलीफ की शिकायत के बाद 13 मई की रात जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां आज उन्होंने अंतिम सांस ली। वह 1977 से लेकर 1980 तक, 1990 से लेकर 1992 तक और 1993 से लेकर 1998 तक, तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे।
भैरोंसिह शेखावत ने हाईस्कूल पास किया लेकिन अपने पिता देवी सिंह शेखावत के निधन के बाद अपनी शिक्षा जारी नहीं रख सके। उन्हें अपने परिवार के भरण पोषण की जिम्मेदारी उठानी थी। पहले उन्होंने किसान के रूप में काम किया और फिर पुलिस में बतौर उपनिरीक्षक भर्ती हो गए।
शेखावत को उनके लाखों समर्थकों द्वारा 'राजस्थान का एक ही सिंह' के नाम से पुकारा जाता था। राजनीतिज्ञ के रूप में उनकी किसानों, ब्राह्मणों, वैश्य ्रसिख, जैन और यहां तक कि मुस्लिमों में भी अच्छी पकड़ थी। वह 1952 में राजनीति में आए। 1977 तक भारत के अधिकतर राज्यों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की जीत होती थी, लेकिन राजस्थान में शेखावत कांग्रेस के लिए हमेशा खतरा बने रहे। 1967 के चुनावों में भारतीय जनसंघ [शेखावत की पार्टी] और स्वतंत्र पार्टी का गठबंधन बहुमत के नजदीक पहुंच गया पर सरकार नहीं बना पाया लेकिन 1977 में उनकी जबर्दस्त जीत हुई और 200 सीटों में से 151 पर कब्जा जमा लिया। 1980 में बिखराव के बाद शेखावत ने अपने समर्थकों के साथ भारतीय जनता पार्टी में जाने का फैसला किया। 1980 में विपक्ष के मतों में बिखराव के चलते कांग्रेस की जीत हुई। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति लहर में भाजपा एक बार फिर जबर्दस्त तरीके से हार गई। कांग्रेस को राजस्थान में 200 में से 114 सीटें मिलीं। विपक्ष बिखरा हुआ था, नहीं तो शेखावत इतिहास रच सकते थे, लेकिन शेखावत के इरादे कायम रहे और उन्होंने 1989 में इतिहास रच डाला जब भाजपा-जनता दल गठबंधन ने राजस्थान में लोकसभा की सभी 25 सीटों पर कब्जा जमा लिया और विधानसभा चुनाव में 140 सीटों पर विजय दर्ज की। शेखावत एक बार फिर राजस्थान के मुख्यमंत्री बने। अगले चुनाव में गठबंधन में बिखराव के बाद शेखावत के करिश्मे से भाजपा 96 सीटों के साथ एकमात्र सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। भाजपा समर्थित तीन निर्दलीय भी चुनाव जीत गए और सीटों की संख्या बढ़कर 99 हो गई।
बहुत से निर्दलियों ने भाजपा को समर्थन दिया और अंतत: सीटों का आंकड़ा 116 तक पहुंच गया। कांग्रेस ने शेखावत को सरकार बनाने से रोकने के लिए हरसंभव कोशिश की, लेकिन निर्दलियों के समर्थन के चलते शेखावत सरकार बनाने में सफल रहे। 1998 के अगले चुनाव में प्याज की कीमत बढ़ जाने के कारण शेखावत सरकार नहीं जीत सकी, लेकिन भाजपा अगले साल 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज कर फिर से केंद्र में पहुंच गई। राजस्थान में भाजपा को 25 में से 16 सीटें मिलीं।
शेखावत 2002 में देश के उप राष्ट्रपति बने और उन्होंने विपक्ष के उम्मीदवार सुशील कुमार शिन्दे को 149 मतों से हराया। जुलाई 2007 में शेखावत ने निर्दलीय के रूप में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा जिन्हें राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन [राजग] का समर्थन प्राप्त था, लेकिन वह संप्रग उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल से हार गए। 21 जुलाई 2007 को उन्होंने उप राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया। वह 1952 से लेकर 1972 तक राजस्थान विधानसभा के सदस्य रहे। 1974 से लेकर 1977 तक मध्य प्रदेश से राज्यसभा के सदस्य रहे। शेखावत 1977 से 2002 तक राजस्थान विधानसभा के सदस्य और 22 जून 1977 से 16 फरवरी 1980 तक राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे। शेखावत 1980 में राजस्थान विधानसभा में नेता विपक्ष तथा चार मार्च 1990 से 15 दिसंबर 1992 तक दूसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे।
वह चार दिसंबर 1993 से 29 नवंबर 1998 तक तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे और दिसंबर 1998 से अगस्त 2002 तक राजस्थान विधानसभा में नेता विपक्ष रहे। शेखावत 19 अगस्त 2002 को देश उपराष्ट्रपति बने और 21 जुलाई 2007 तक इस पद पर काबिज रहे।
हम सब की ओर से पूर्व उप राष्ट्रपति श्री भैरोंसिंह शेखावत जी को भावभीनी और विनम्र श्रद्धांजलि |
विनम्र श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंभाई कोई ऎसा काम किया हि जिस से हम सान से कह सके कि भैरोंसिह शेखावत ने देश के लिये, देश वासियो के लिये कोई अलग हट के काम किया है तो हम भी श्रद्धांजलि देने को तेयार है, अगर यह वेसे ही नेता है जो सिर्फ़ अपनी गरीबी ही दुर करते रहे तो हमे क्या
जवाब देंहटाएंराजनीति के इस पुरोधा को भावभीनी श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंsachmuch rajasthaan ke sher the ve.........
जवाब देंहटाएंvinamra shraddhanjli !
राज भाई, आप की भावनाओ की कद्र करता हूँ पर यहाँ बात अपने देश भारत के पूर्व उप राष्ट्रपति की हो रही है क्या यह काफी नहीं है ??
जवाब देंहटाएंराज भाटिया जी
जवाब देंहटाएंभैरों सिंह जी ने अपनी गरीबी कभी दूर नहीं की | आप शायद मानेंगे नहीं उन्होंने अब तक अपना कोई निजी घर तक नहीं बनवाया | रही बात उनके द्वारा किये गये जनकार्यों की |
१९७७ में मुख्यमंत्री बनने के बाद श्री शेखावत ने अन्त्योदय योजना के तहत जो विकास कार्य सिर्फ ढाई साल में करवा दिए उतने तो राजस्थान में देश की आजादी के बाद से लेकर १९७७ तक नहीं हुए थे | राजस्थान के हर गांवों में बिजली भी उनके ही ढाई वर्षों के शासन में पहुंची और तभी कृषि की पैदावार से किसान की माली हालत सुधरी |
भैरों सिंह जी ने कभी जातिवाद का न तो सहारा लिया और न ही कभी कोई एसा कार्य किया जिसका फायदा सिर्फ उनकी ही जाति को मिल सकता हो |
जागीरदारी उन्मूलन कानून का अपनी जाति के खिलाफ होने के बावजूद भैरों सिंह जी ने जनहित में उसका खुलकर समर्थन किया था | एसा मेरे ख्याल से कोई नेता नहीं कर सकता |